- रामायण सर्किट से जोड़ने का होगा प्रयास
पटना, संवाददाता।केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री Ashwini Chaubey ने कहा कि गंगा, सरयू ओर सोन नदी के संगम पर अवस्थित यह विश्व का अद्वितीय पुरातात्विक स्थल रामायण परिपथ को पुरातात्विक आधार देता हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री Ashwini Chaubey ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होने वाले चिरांद उत्सव के पूर्व संध्या बुधवार को “चिरांद: मानव सभ्यता की अनवरत विकास यात्रा का साक्षी” विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित कर रहे थे।
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Ashwini Chaubey ने कहा कि आदि कवि वाल्मीकि की रामायण, गोस्वामी तुलसीदास कृत राम चरित मानस में इस पवित्र स्थल का अत्यंत ओजपूर्ण वर्णन मिलता है। देव भगति सुर सरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजू सुहाई। सानुज राम समर जस पावन। मिलेउ महानद सोन सुहावन। युग बीच भगति देव धुनि धारा। सोहत सहित सुविरति विचारा। त्रिविध ताप त्रासक तिमुहानी।
रामचरित मानस की ये पंक्तियां इस स्थान के महत्व को उजागर करती है। इस स्थान के महत्व से लोगों को अवगत कराने के लिए वर्ष 2008 में पहली बार वहां समारोह का आोजन किया गया था। जिसके उद्घाटन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। तब से यह कार्यक्रम अनवरत जारी है। कोरोना काल में भी आभाषी माध्यम से यह जारी है।
Ashwini Chaubey ने कहा कि इस स्थल की खुदाई करने का प्रथम प्रयास प्रख्यात पुरातत्वविद एस अल्टेकर ने किया था। लेकिन, महाराष्ट्र को होने के कारण आरएसएस का व्यक्ति बताकर उस समय के प्रभावशाली राजनीतिक दल के लोगों ने उनका विरोध किया था। जिसके कारण व उस स्थल की खुदाई नहीं करा सके। बाद में अल्टेकर साहब की प्रेरणा से प्रख्यात पुरातत्वविद डा. बीएस वर्मा ने 1960 में सर्वेक्षण कर उस स्थल का उत्खनन प्रारंभ कराया। लगभग दस वर्षों बाद जब वहां अंतिम लेयर पर वे पहुंचे तो चोकाने वाले अवशेष मिले। उस स्थान से नवपाषण युगीन समृद्ध सभ्यता के अवशेष भारी मात्रा में मिले थे। गंगा के तट पर पहली बार प्राचीन मानव सभ्यता के अवशेष मिलने से बिहार का इतिहास कम से कम पांच हजार वर्ष और पहले से शुरू होता दिखने लगा। स्नानागार व समृद्ध जन निकासी व्यवस्था वाले भवन का अवशेष भी वहां से मिला था। जो मोहनजोदड़ो व हड़प्पा जैसी सभ्यता की याद दिलाता है। इसके बावजूद इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल की घोर उपेक्षा होती रही थी। उस स्थल का उत्खान रिपोर्ट तक प्रकाशित नहीं किया गया था। वर्ष 2005 में बिहार में जब भाजपा व एनडीए की सरकार बनी तब उसका रिर्पोट प्रकाशित हो सका। चिरांद की प्रामाणिकता व महत्व अब सरकारी दस्तावेज बन चुका है। अपने गुरु विश्वामित्र जी के साथ अयोध्या से चलकर भगवान श्रीराम यहां पहुंचे थे। रामायण के अनुसार तीन नदियों के इस पवित्र संगम पर रात्रि विश्राम के बाद विश्वामित्र ने श्रीराम व लक्ष्मण को बलाअतिबला विद्या प्रादन किया था। इसके बाद उन्हें लेकर सिद्धाश्रम यानी बक्सर आए थे। सिद्धाश्रम से चिरोद होते हुए महर्षि विश्वामित्र के साथ प्रभु श्रीराम जनकपुर गए थे। इस प्रकार रामायण परिपथ इस तीर्थ के बिना पूर्ण हो ही नहीं सकता।
बिहार सरकार के कला, संस्कृति व खेल मंत्री आलोक रंजन झा ने कहा कि बिहार सरकार उस स्थल को विश्व मानक के अनुरूप विकसित करने के लिए प्रयासरत है। पुरातात्विक स्थल पर आडिटोरियम व प्रदर्शनी गैलरी से युक्त थिमेटिक पार्क का निर्माण कराया गया है। वहां खुदाई के कार्य फिर से शुरू कराए गए जिसमें अत्यंत महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं उस स्थल का निरीक्षण करने गए थे। उस अवसर पर चिरांद विकास परिषद की ओर से वहां से प्राप्त अवशेष के चित्र प्रदर्शनी लगाए गए थे। उसके संरक्षण का कार्य जारी है। गंगा के कटाव से उस स्थल को बचाने का प्रयास भी जारी है।
विधान पार्षद सच्चिदानंद राय ने कहा कि रामायण परिपथ में शामिल होने की सारी शर्ताें को पूरा करने के बावजूद यह स्थल अभी तक रामायण परिपथ में शामिल नहीं हो सका है। पिछले ही सत्र में मैने विधान परिषद में प्रश्न कर इस स्थल को रामायण परिपथमें शामिल करने की मांग की थी। सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया था कि इस दिशा में उचित कार्रवाई होगी।
चिरांद विकास परिषद व प्रज्ञा प्रवाह की उतर बिहार इकाई चेतना के तत्वावधान में आयोजित इस वेबिनार में लक्ष्मण किलाधीश व रसिक शिरोमणि आचार्य पीठ के महंत श्री मैथिली रमण शरणजी महाराज, रामकृष्ण आश्रम के स्वामी दिव्यात्मानंदजी महाराज, चिरांद विकास परिषद के संरक्षक महंत श्रीकृणगिरी उपाख्या नागा बाबा, विभाग संघचालक श्रीविजय सिंह, डा. किरण सिंह, चिरांद विकास परिषद के रासेश्वर सिंह आदि ने अपने विचार रखे। चिरांद विकास परिषद के सचिव श्रीराम तिवारी ने चिरांद के महत्व व उसके विकास के प्रयासों पर जानकारी दी। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता देवेश नाथ दीक्षित ने धन्यवाद ज्ञापन किया।