पटना, संवाददाता। बिहार की नाट्य संस्था बिहार आर्ट थियेटर ने अपने 63वें स्थापना दिवस, पर नाटक कांंचनरंग स्थानीय कालिदास रंगालय में प्रस्तुत किया। इस । लगभग 50वर्षों से रंगकर्म के क्षेत्र में सक्रिय निर्देशक, बिहार आर्ट थियेटर और बिहार नाट्यकला प्रशिक्षणालय के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके अरुण कुमार सिन्हा इस नाटक के निर्देशक थे। शंभू मित्र एवं अमित मैत्र संयुक्त रूप से इसके नाट्यकार थे।
नाटक यूं तो बहुत पहले का लिखा हुआ है और बिहार आर्ट थियेटर में इसका मंचन भी वर्षों से होता रहा है। लेकिन निर्देशक और कलाकार बदलते ही प्रस्तुति का स्वरूप भी बदल जाता है। इसबार भी कई नयापन के साथ यह प्रस्तुति देखने को मिली। जबकि कथ्य के साथ छेड–छाड़ निर्देशक ने नहीं की थी।
नाटक का कथ्य भोगवादी हो चुके लोगों के चरित्र को बड़ी ही बारिकी से उकेरता है। नौकर और नौकरानी के साथ मालिक के किये गए दुर्व्यवहार पर भी यह नाटक करारा तमाचा लगाता है। साथ ही यह नाटक यह भी संदेश देता है कि पैसे से कमजोर लोगों का कभी तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि पैसा तो कभी भी किसी के पास भी जा सकता है। अमीर तो कोई भी, कभी भी बन सकता है। एक पंक्ति में कहा जा सकता है कि यह नाटक सबसे बड़ा रूपैया की कहावत को चरितार्थ करता हुआ प्रतीत होता है।
मंच पर यदु गोपाल बाबू की भूमिका में विष्णु देव कुमार विशु और गृह स्वामी की पत्नी की भूमिका में अनामिका सिन्हा ने अपने अभिनय क्षमता से दर्शकों का दिल जीत लिया। वहीं किराएदार की भूमिका में उज्जवला गांगुली भी अपने अभिनय क्षमता को प्रस्थापित करने में सफल रही। सिद्धार्थ कुमार,तरला और रितु राज ने भी अपने चरित्र को मंच पर जीवंत करने की कोशिश की है। बड़ा बेटा के रूप में वीर कश्यप और छोटा बेटाकी भूमिका में रोबिन ने भी बेहतर अभिनय किया है। बेटी की भूमका कर रही कोमल श्रीवास्तव का अभिनय भी सराहा गया। इसके साथ पंकज कुमाररोहित राज, प्रवीण कुमार को भी मंच पर दर्शकों की तालियां मिलती रही।
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इस नाटक में राज कुमार शर्मा प्रकाश व्यवस्था थी। संगीत एवं रूप सज्जा– उपेंद्र कुमार ने किया था। प्रवीण कुमार ने मेकप में सहयोग किया था। प्रस्तुति में प्रदीप गांगुली का विशेष सहयोग रहाथा। इस प्रस्तुति के सहायक निर्देशक सुमित आर्य रहे। प्रस्तुति नियंत्रण एवं उद्घोषणा गुप्तेश्वर कुमार की थी। निर्देशक अरूण कुमार सिन्हा के निर्देशकीय परिपक्वता और अनुभव पूरी प्रस्तुति में परिलक्षित होती रही।