पटना, संवाददाता। “सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसबा से मोरे प्रान बसे हिम खोह रे बटोहिया” जैसी प्राण-प्रवाही और मर्म-स्पर्शी रचना के अमर रचयिता बाबू रघुवीर नारायण भोजपुरी और हिन्दी के महान कवि ही नहीं एक बलिदानी देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ‘बटोहिया-गीत’ से अत्यंत लोकप्रिय हुए इस महान कवि ने घूम-घूम कर देश में स्वतंत्रता का अलख-जगाया और यह गीत गा-गा कर, संपूर्ण भारत-वासियों को, विशेष कर समग्र पूर्वांचल को, उसकी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति और महानता का स्मरण दिलाया। पूर्वी-धुन पर रचित यह गीत अपने काल में बिहार और उत्तरप्रदेश के स्वतंत्रता-सेनानियों के जिह्वा पर देश का ‘राष्ट्रीय-गीत’ की तरह चढ़ा रहा। पूर्वी भारत में आज भी इसकी मान्यता राष्ट्रीय लोक गीत के रूप में है।
यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बाबू रघुवीर नारायण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर, सम्मेलन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘बटोहिया के अमर गायक बाबू रघुवीर नारायण’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, एक भी महान और लोकप्रिय रचना किसी व्यक्ति को साहित्य-संसार में अमर कर सकती है, ‘बटोहिया गीत’ और बाबू रघुवीर नारायण इसके महान उदाहरण हैं। साहित्य सम्मेलन के लिए भी उनका अवदान सदा स्मरणीय रहेगा। इन्ही की प्रेरणा से बनैली के राजा कीर्त्यानंद सिंह जी ने सम्मेलन भवन के निर्माण में वर्ष १९३७ में दस हज़ार रूपए का दान दिया था। जिन दिनों ४५ रूपए में एक तोला सोना मिला करता था।
हिन्दी और भोजपुरी के वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बाबू रघुवीर नारायण विलक्षण प्रतिभा के कवि थे। उन पर आध्यात्मिक चिंतन और राष्ट्रीयता का गहरा प्रभाव था। बिहार के कांग्रेस अधिवेशन में, जब पहली बार यह गीत पढ़ा गया तो महात्मा गांधी इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे भोजपुरी का ‘वन्दे मातरम’ बताया। यह गीत राष्ट्रीय आंदोलन के आयोजनों का मंगलाचरण बन गया। आज भी भोजपुरी साहित्य के उत्सवों में इसे मंगलाचरण के रूप में गाया जाता है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी डा उपेंद्रनाथ पांडेय ने कहा कि बाबू रघुवीर नारायण हमारे इतिहास-पुरुष हैं। रघुवीर बाबू का जो समय था वह, हमारे देश के नव-जागरण का काल था। ‘बटोहिया-गीत’ में एक अद्भुत ऊर्जा है, जो किसी भी श्रोता के मन में राष्ट्रीय-भाव भर देती है।
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पुस्तक के संपादक और श्री नारायण के पौत्र प्रताप नारायण ने सम्मेलन के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह पुस्तक अपने पितामह के प्रति मेरी विनम्र श्रद्धांजलि है। वे एक बड़े साहित्यकार तो थे ही, एक आध्यात्मिक संत थे। देश और साहित्य की सेवा उन्होंने ईश्वर की पूजा की तरह की। उनकी संतति के रूप में,हम अपने को अत्यंत सौभाग्यशाली समझते हैं।
कवि की पौत्र-वधु उर्मिला नारायण, कमल नारायण श्रीवास्तव, डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा सुषमा कुमारी ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम के आरंभ में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘बटोहिया-गीत’ का सस्वर पाठ किया। इस अवसर पर आयोजित लोक-भाषा कवि-सम्मेलन में, वरिष्ठ कवयित्री डा मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा शंकर प्रसाद, डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय तथा पूनम आनंद ने भोजपुरी में, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ तथा डा आर प्रवेश ने अंगिका में, डा पुष्पा जमुआर, श्याम बिहारी प्रभाकर तथा अर्चना सिन्हा ने मगही में तथा डा अलका वर्मा ने मैथिली में अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, डा पुरुषोत्तम कुमार, ज्ञानेश्वर शर्मा, राज नन्दन प्रसाद, स्वस्ति सिन्हा, डा कुंदन लोहानी, अजीत कुमार भारती, जगत नन्दन प्रसाद, श्रीकांत राकेश, यतींद्र नाथ समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।