पटना मुकेश महान। टी-24 डिसेबिलिटी फाउंडेशन बना रहा है मंदिरों के कचरों से रंग और गुलाल। मंदिरों का कचरा और इस कचरे में भारी मात्र में उपलब्ध फूलों का जैविक निष्पादन बिहार में आज भी सार्थक रूप से नहीं हो पा रहा है। यह जहां रखे/फेंके जाते हैं, वहां गंदगी और दुर्गंध ही मिलता है। नदी और तालाब में इसे विसर्जित करने की परंपरा से भी जल प्रदूषण ही बढ़ता है।
ऐसे में दिव्यांगों के लिए काम कर रही दिव्यांगों की ही एक संस्था टी-24 डिसेबिलिटी फाउंडेशन बिहार की राजधानी पटना में एक नई पहल शुरु कर चुकी है। इस संस्था से जुड़े 15 दिव्यांग शहर के मंदिरों के कचरे से फूलों को उठाते हैं। फिर उसे सुखाकर गुलाल बनाने के लिए इकट्ठा करते हैं। इसके बाद इसका डस्ट बना कर उसमें जरूरी सामग्री मसलन स्टार्च और हल्दी मिलाकर प्राकृतिक गुलाल बनाते हैं। होली निकट है। इसलिए गुलाल बनाने की यह तैयारी जोरों पर है।
जानकारी के अनुसार टी-24 डिसेबिलिटी फाउंडेशन की टीम ने अबतक लगभग 10 टन सूखे फूलों का डस्ट बना चुकी है। अब इन्हें स्टार्च और हल्दी जैसी जरूरी सामग्री की दरकार है। लेकिन इनके पास इसके लिए जरूरी पैसे नहीं है। फिर भी इन प्राकृतिक गुलाल बनाने वाले दिव्यांगों के पास बुलंद हौसले हैं। इन दिव्यांगों का कहना है कि हर हाल में इस होली के पूर्व हमारा शुद्ध और प्राकृतिक गुलाल बाजार में होगा। हमारा मकसद बिहार के बाजार को रासायनिक गुलाल से मुक्त करने का है।
टीम के ही एक सदस्य सौरवजीत ही गुलाल बनाने की ट्रेनिंग अपने साथियों को देते हैं।उन्होंने इसकी ट्रेनिंग 2011 मेंमुंबई से लीथी। तीन साल केअनुभवी सौरवजीतअपनी आंखों से देख नहींसकते हैं।लेकिन वो अपने साथियों को लगातार रंग और गुलाल बनाने का प्रशिक्षण देते हैं।
फाउंडेशन के डायरेक्टर हैं राजेंद्र। xposenow.com से बातचीत करते हुए राजेंद्र कहते हैं कि हमारे पास संसाधन की कमी है। हम चाहकर भी ऐसे अधिक अधिक फूलों का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास जरूरी संसाधन, उपयोगी मशीनें और रनिंग कैपिटल नहीं हैं। अगर हमारे पास ये सब जरूरी सामान उपलब्ध हो जाए तो हम इन फूलों से कई प्रोडक्ट बना सकते हैं। साथ ही भीख मांगने वाले दिव्यांगों को इसीसे रोजगार मिल सकता है।
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राजेंद्र कहते हैं कि गुलाल बनाने के लिए तीन मशीनें चाहिए, जिसकी कीमत लगभग दो लाख हैं। हम सब अपने लिए भोजन भी बहुत ही मुश्किल से जुटा पाते हैं। फिर मशील खरीदना तो हमारे असंभव ही है। हम इंतजार कर रहे हैं कि कहीं से भी हमें इस तरह की मदद मिल सके। हम सरकार से भी उम्मीद कर रहे हैं। हम वैसे एनजीओ से भी उम्मीद कर रहे हैं जो इस तरह की मदद करते हैं।
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टी-24 डिसेबिलिटी फाउंडेशन की स्थापना दिव्यांग जोड़ी राजेंद्र और मंजू की पहल पर की गई थी। धीरे धीरे इस फाउंडेशन से कई दिव्यांग जुड़ गए। फाउंडेशन से जुड़े 15 लोग अपने परिवार के साथ कंकड़बाग टेम्पो स्टैंड से जुड़े शिवाजी गोलंबर के आस-पास रहते हैं और इकट्ठे हो कर रंग और गुलाल बनाने में जुटे हैं।