अरवल, संवाददाता। अहसास कलाकृति, रंगमंडल द्वारा दीपक श्रीवस्ताव लिखित एवं कुमार मानव निर्देशित हास्य व्यंग्य हिंदी नाटक अंधा मानव विशाल राष्ट्रीय शहीद जगदेव मेला, कुर्था, अरवल में प्रस्तुत की गई।
हास्य व्यंग्य नाटक अंधा मानव समाज में व्यपाप्त कई जवलंत मुद्दों मसलन घुसखोरी, भ्रष्टाचार, नकारात्मक राजनीति, ठगी, छिनतई, अन्याय, बेरोजगारी, भूखमरी जैसे यथार्थ को दर्शाता है। एक चौराहे पर घटित घटनाओं के माध्यम से समाजिक विद्रुपताओं पर कड़ा प्रहार करता है।
नाटक की शुरूआत एक महिला के आगमन से होता है जो हिन्दुस्तान के लोगों पर रिसर्च कर रही है। तभी एक पागल किसी से खाना छीनकर भागते हुए मंच पर आता है, इस बात के लिए उसे पीटा जाता है। फिर बाल भिखारी का भीख मांगते हुए मंच पर आगमन होता है और वह पागल को खाना खाते देख उससे खाना मांगते है। मानवता का परिचय देते हुए पागल छीनकर लाये हुए खाने को देता है।
इसके बाद एक व्यस्क भिखारी आता है जो अपाहिज एवं अंधे का स्वांग रचते हुए आते जाते लोगों को ठग कर अपना पेट भरता है, वहां पर तैनात हवलदार इनसे पैसों की वसूली करता है। महिला रिसर्चर हवलदार से प्रश्न करती है कि आप पैसे क्यों लेते हैं। दोनों में बहस होती है। हवलदार रौब झाड़ते हुए चला जाता है। फिर एक नेता का कार्यकर्ताओं के साथ आगमन होता है, जो चुनाव में अपनी जीत पक्की करने हेतु भाषण देता है, पागल द्वारा रोटी मांगने पर कहता हे कि इतना जोरदार भाषण से भी तुम्हारा पेट नहीं भरा। मेरा दो चार भाषण अगले चौक चौराहे पर होने वाला है आकर सुन लेना तुम्हारा पेट हमेशा के लिए भर जाएगा। पागल और भिखारी को लगता है कि सभी लोग भ्रष्ट और बेइमान है।
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दोनों मिलकर एक राहगीर से लूटपाट करते हुए पुलिस द्वारा पकड़े जाते हैं। दोनो को अदालत से होकर गुजरना पड़ता है। अदालत में अपनी बात रखते हुए पागल की अचानक मौत हो जाती है और रिसर्च करने वाली महिला इस घटना को बर्दाश्त नहीं कर पाती है और वह भी विक्षिप्त हो जाती है और कह उठती है कि मानव अंधा हो गया, मेरा रिसर्च पूरा हुआ .. ….. अंधा मानव।
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नाटक में भाग लेनेवाले कलाकार थे कुमार मानव, भुनेश्वर कुमार, मंतोष कुमार, अर्चना कुमारी, सरबिंद कुमार, विजय कुमार चौधरी, मयंक कुमार, पृथ्वीराज पासवान, राजकिशोर पासवान, बलराम कुमार। मेला के अध्यक्ष अखिलेश कुमार ने कहा कि अंधा मानव नाटक आज के समाज में घट रही घटनाओं को दर्शाता है।