पटना,संवाददाता। मिथिलांचल ने देश की आजादी में कई कायस्थ महापुरुष दिए, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा महापुरुषों को जानें के लिए सभी स्कूल को दिए कैलेंडर में किसी कायस्थ सुपुत्र की चर्चा नहीं की गई। इस सम्बंध में कायस्थ संगठन से जुड़े जदयू नेता मनोज लाल दास मनु ने मुख्य्मंत्री और शिक्षा मंत्री को पत्र लिख कर अपना विरोध जताया है।
पत्र में श्री मनु ने कहा कि मिथिलांचल के कायस्थों की भूमिका स्वतंत्रा संग्राम में किसी से कम नहीं रही है। भच्छी गांव के युग पुरूष स्व चतुराणन दास ने जहां 1937 में हुए विधान सभा चुनाव में सबसे अधिक वोट से जितने वाले विधायक थे, वहीं केवटी के स्व नारायन दास आजादी के बाद दरभंगा से लगातार कई बार सांसद रहे। बेर के कारो बाबू गांधी जी के डांडी मार्च में एक मात्र बिहारी थे। मिथिलांचल के राम कृष्ण परहमंस के रूप में महर्षि मेहिं को आज देश विदेश में कौन नहीं जानता है। साहित्य और कविता के क्षेत्र में शायद ही कोई होगा जो महाकवि लाल दास, भोला लाल दास, मनी पदम, राधा कृष्ण चौधरी को नहीं जानता होगा। मुंशी रघुनंदन दास और मजदूरों के मसीहा केदार नाथ दास और जांवाज रणधीर वर्मा का नाम तो लोगों की जुवां पर ही रहता है। मिथिलांचल के कायस्थ समाज की महिलाओं की भूमिका भी अग्रणी रही है। सहरसा की प्रथम विधायक विंदेश्वरी देवी और कला के क्षेत्र में जगदम्बा देवी के नाम की चर्चा न हो तो उचित नहीं होगा।
अपने पत्र में श्री मनु ने मुख्य्मंत्री और शिक्षा मंत्री से आग्रह किया है कि इस ओर उचित कार्रवाई करें, अन्यथा इसके लिय आंदोलन करने पर विवश होंगे।
मिशन टू करोड़ चित्रांश के अंतराष्ट्रीय संयोजक अनिल कर्ण, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र कर्ण, उपाध्यक्ष राजेश कुमार कंठ, प्रधान सचिव रमाशंकर श्रीवास्तव, महिला प्रकोष्ठ बिहार के अध्यक्ष श्वेता श्रीवास्तव, कर्ण कायस्थ कल्याण मंच के अध्यक्ष संजय कुमार, महासचिव बैधनाथ लाल दास, उपाध्यक्ष वंदना सिन्हा, अमित कुमार, संजीत कर्ण आदि ने भी शिक्षा विभाग द्वारा महापुरुषों के लिए जारी किए कैलेंडर में कायस्थ समाज के महापुरुषों की उपेक्षा की निंदा की गई।
कायस्थों का अपना इतिहास रहा है। वह हर क्षेत्र में आगे रहे हैं। शिक्षा हो, सामाजिक क्षेत्र हो अथवा स्वतंत्रता आंदोलन। सभी क्षेत्र में सबसे आगे रहे है। अगर सरकार कायस्थ समाज के साथ भेदभाव बंद नहीं करती तो संगठन आंदोलन करने पर विवश होगा।