पटना, संवाददाता। युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए का विचार आज की जरूरत। कबीरपंथी आश्रम मीठापुर में शुक्रवार को सारनाथ से कुशीनगर की यात्रा पर निकले विहाराधिपति धर्मचक्र विहार डॉ. भदंत स्वरुपानन्द अपने शिष्य मण्डली के साथ कबीर पंथी आश्रम पधारे। आश्रम के महन्थ ब्रजेश मुनि एंव आश्रम के संत विवेक मुनी ने उनका स्वागत किया।
शनिवार को प्रातः धम्मपाठ के पश्चात बुद्धवाणी पर सत्संग करते हुए डॉ. भदंत स्वरुपानन्द ने कहा कि भगवान बुद्ध सच्चे अर्थ में भगवान हैं। भगवा से आशय है, जिसने राग, द्वेष, मोह को खत्म कर दिया। भगवान बुद्ध का धर्म लॉ ऑफ नेचर है। भगवान बुद्ध का धर्म दर्शन बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान ने दो प्रकार के धर्म बताए-कुशल धर्म और अकुशल धर्म। भगवान बुद्ध ने पाप को उत्पन्न करनेवाले सारे अकुशल धर्म को खत्म कर दिया, इसलिए वे भगवान है।
मानव-मानव में भेद नहीं है, इस आशय को स्पष्ट करते हुए भगवान बुद्ध ने कहा-कि सब्बे तस्सन्ति दंडस्स सब्बेसंग जीवितं पियं।
अत्तानं उपमं कत्वा ना हनैय न घातये।।
अपने समान ही सबको समझें न किसी को मारे न तकलीफ दें। भगवान बुद्ध के उपदेश में करुणा, शान्ति एवं मैत्री का संदेश है, सबको करुणा का भाव दिया है इसलिए उन्हें महाकारुणिक कहा जाता है।
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भगंवान बुद्ध ने विश्व समुदाय को एकात्म होने की सीख देते हुए कहा कि सीमा, देश, बन्धन हम बनाते हैं। पशु, पक्षी, मछली से सीख लेना चाहिए। ज्ञानियों को सीमा, देश आदि के बन्धन से मुक्त होना चाहिए। माता जैसे इकलौते पुत्र के प्रति स्नेह रखती है, वैसे ही हमें सबके प्रति स्नेह रखना चाहिए। इसलिए गलती होने पर भी दण्ड नहीं देना चाहिए।
वर्तमान में जहां विश्वयुद्ध की संभावना प्रबल हो गई है, ऐसे में भगवान बुद्ध का संदेश विश्व के नेताओं को आत्मसात करना चाहिए जो कहता है- हमें युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए, हमें क्रान्ति नहीं शान्ति चाहिए। वैर से वैर को समाप्त नहीं किस जा सकता है अवैर अर्थात मैत्री से ही वैर को समाप्त किया जा सकता है।
डॉ भदंत स्वरूपानन्द जी के शिष्य भिक्खु प्रियदर्शी, भंते कारुणिक सिद्धार्थ नन्दन ने भी बुद्धवाणी का सत्संग किया।आश्रम के महन्थ ब्रजेश मुनि ने कहा भगवान बुद्ध और सद्गुरु कबीर के दर्शन में मानव धर्म और जीवन मूल्य को ही महत्व दिया गया है। वर्तमान में तनाव, इर्ष्या, द्वेष को मिटाकर शान्ति की स्थापना के लिए बुद्धवाणी, कबीरवाणी की प्रासंगिकता बढ़ गई है। सत्संग में डॉ भदंत स्वरूपानन्द जी की शिष्य मंडली भी शामिल हुई। सत्संग पश्चात भंडारा प्रसाद का आयोजन भी किया गया था।