कथा भर नहीं कोरोना-काल का इतिहास भी है ‘कोरोनाकालजयी लघु कहानियाँ’
लेखक अमरेन्द्र कुमार के लघु कथा संग्रह का पूर्व उपमुख्यमंत्री ने किया लोकार्पण
पटना / सवांददाता। लघु-कथा लेखन में अपना पैर जमा रहे कथाकार अमरेन्द्र कुमार के प्रथम लघुकथा संग्रह ‘कोरोनाकालजयी लघुकहानियाँ’, कथा मात्र नहीं, ‘कोरोना-काल’ का एक संक्षिप्त किंतु जीवंत इतिहास भी है। सभी कथाएँ, सत्य घटनाओं पर आधारित होने के कारण और अभिव्यक्ति की दृष्टि से यह, विश्व की इस सबसे बड़ी भयानक महामारी की रपट भी प्रस्तुत करती चलती है। इन कहानियों से आने वाली पीढ़ियाँ इस भयानक त्रासदी को सरलता से समझ पाएगी। लेखक का यह प्रथम प्रयास सराहनीय और लघु-कथा-साहित्य के विकास में मूल्यवान योगदान है।
यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डॉ.सुलभ ने कहा कि पुस्तक के लेखक में साहित्यिक प्रतिभा और संभावनाएँ है। इनकी साधना जैसे-जैसे बढ़ेगी, इनकी लेखनी उतनी ही परिष्कृत होती जाएगा। लोकार्पित पुस्तक पठनीय और स्वागत योग्य है।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जिस प्रकार देश के विश्वविद्यालयों से हिन्दी एवं अन्य भाषाओँ में विद्यार्थियों की संख्या घट रही है, उससे यह चिंता होती है कि नई पीढ़ी भाषा और साहित्य से कैसे जुड़ेगी। समाज के निर्माण और उन्नयन में साहित्य की बड़ी भूमिका है। कविताएँ, यहाँ तक के प्रभावशाली साहित्यिक नारे भी प्रेरणादायी होते हैं। कोरोना काल में, इस विषय पर, अनेक साहित्यिकों ने लिखा है। इस काल में हम अनेक नए शब्दों से परिचित हुए। इस पुस्तक के लेखक ने इस काल में २०० से अधिक कहानियाँ लिख डाली, जो उनकी क्षमता का परिचायक है।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कोरोना काल ने दुनिया को बदल दिया। इसने काल को दो भागों में बाँट दिया। आनेवाली पीढ़ियाँ कोरोना-काल के पूर्व और उसके पश्चात के काल-खंड को अलग-अलग अध्याय में पढ़ेगी।
मुख्य अतिथि और विधायक नंदकिशोर यादव ने लेखक के प्रति शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि लेखक से उनका परिचय बहुत पुराना है। इनके लेखकीय व्यक्तित्व से बाद में परिचित हुआ। इनके अंतर का लेखक प्रणम्य है।
कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए पुस्तक के लेखक अमरेन्द्र कुमार ने कहा कि ‘लौक-डाउन’ के एकांत के क्षणों में उन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और जी कुछ देखा, सुना और अनुभव किया उसे लघु-कथाओं में लिखता चला गया। अभिशाप के वे क्षण साहित्य-सृजन के ‘वरदान’ के रूप में परिणत हो गए। उन्होंने लोकार्पित पुस्तक से अपनी तीन लघु-कथाओं का पाठ भी किया।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, अमियनाथ चटर्जी, डॉ. नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्ण रंजन सिंह, चंदा मिश्र, चित रंजन लाल भारती, डा पंकज वासिनी, लता प्रासर, डॉ. मनोज गोवर्द्धनपुरी, डॉ. विनय कुमार विष्णुपुरी, आनंद किशोर मिश्र समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।