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नहीं तोड़ा जा सका बिहार में कांग्रेस को


मुकेश महान.
मंत्री मंडल का विस्तार भी हो गया और मंत्रालय भी आबँटित हो गए लेकिन कांग्रेस में टूट नही हुई। इसके साथ ही कांग्रेस विरोधी दलों के दावे ज्यों के त्यों धरे के धरे रह गए । जबकि मंत्रिमंडल विस्तार के पहले बिहार में कांग्रेस की टूट की चर्चा जोरों पर थी। कांग्रेस विरोधियों का दावा था कि इसके 19 में से 11 विधायक टूट सकते हैं और सत्ताधारी दल में मिल सकते हैं।जबकि कांग्रेस इसे सिरे से नकार रही थी।हालाँकि जदयू कांग्रेस से टूटे विधायकों के लिए सहारा बनने को तैयार थी । फिर भी ऐसा हो नही पाया।
वैसे भी बिहार कांग्रेस या बिहार में कांग्रेस, मतलब बंजर हो चुकी जमीन पर घास का इक्का दुक्का उग आना ही है, इससे अधिक कुछ भी नहीं। जी हां, कमोवेश बिहार में काग्रेस की ये ही स्थिति है। ऊपर से दुर्भाग्य ये कि वर्षों से अपने लिए जमीन बनाने या तलाशने की कोशिश भी केन्द्रीय कांग्रेस या बिहार कांग्रेस नहीं कर रही है। पिछले तीस सालों में प्रदेश अध्यक्ष बदलते रहे, बिहार प्रभारी बदलते रहे,लेकिन नहीं बदली तो बिहार कांग्रेस की तक़दीर, और हद ये कि किसी ने यह.जानने समझने की कोशिश भी नहीं की कि स्थितियां क्यों नहीं बदल रही हैं। न प्रदेश,न केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर सोचने की जरुरत महसूस की।नतीजतन एक एक वोट इसके पाले से खिसकते चले गए।और कांग्रेस उन वोटों को अपने ही पाले से विदा होते देखते रही।स्थिति यह हो गई कि अब न किसी जाति का, न किसी धर्म का और न किसी वर्ग का वोट कांग्रेह के साथ है। न हिन्दू का न मुस्लिम का, न फारवार्ड का न बैकवार्ड का।

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शायद कांग्रेस बिहार में बदलते राजनीतिक समीकरण को समझ ही नहीं पाई।और इन बदलाव के बीच वह अपने लिए कोई स्पेस संजो ही नहीं पाई।इस बीच नई और क्षेत्रीय पार्टियों की तरह बाहर से नेता आयातीत भी होते रहे,टिकट लेकर जीतते भी रहे और अपनी झोली भरते भी रहे ।लेकिन कांग्रेस के लिए कभी किसी ने कुछ नही किया झोली भरने का आरोप तो कुछ प्रदेश अध्यक्षों पर भी लगता रहा।माना तो ये भी जा रहा है कि पैसे लेकर किसी को भी टिकट दे दिया जाना भी कांग्रेस की इस दुर्गति का एक बड़ा कारण है ।लेकिन कांग्रेस और कांग्रेस नेताओं को अपनी दुर्गति का कारण भी समझ में नहीं आ रहा है।और अब यह मात्र एक राजनीतिक सीढी से ज्यादा कुछ भी नहीं रह गई। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी जैसे नेताओं ने इस सीढी का भरपूर इस्तेमाल किया।लेकिन कांग्रेस को न तो इस पर चिंतण की जरूरत महसूस हुई न चिंता की।परिणाम यह रहा कि बिहार कांग्रेस अपने ही रौ में दिन प्रतिदिन दुर्गति की ओर बढती रही।