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बेतिया से सविता सिंह नेपाली उतरी चुनावी मैदान में

बेतिया. बिहार में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है. नामांकन का दौर भी शुरू हो गया है. इसके साथ ही नेता और विभिन्न राजनीतिक पार्टियां जोर-शोर से चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं. कोरोनाकाल  में हो रहे इस चुनाव में जाति, धर्म, विकास, रोजगार जैसे तमाम मुद्दे हैं, जिनके आधार पर राजनीतिक दल अपने समीकरण साध रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो साहित्य और संस्कृति के सहारे चुनावी राजनीति के मैदान में अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं.
इस कड़ी में पहला नाम है प्रख्यात कवि और साहित्यकार गोपाल सिंह नेपाली  की बेटी सविता सिंह नेपाली  का. ‘तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग जाग मैं ज्वाल बनूं’ जैसी ओजपूर्ण कविता और ‘दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरे, अंखिया प्यासी रे…’ जैसे फिल्मी गीत लिखने वाले गोपाल सिंह नेपाली ने अपनी कलम से चंपारण की धरती को ख्याति दिलाई. अब उनकी बेटी 2020 के बिहार चुनाव में उतरकर राजनीति के जरिए इस ख्याति को ऊंचाई तक ले जाना चाहती हैं.

‘गीतों के राजकुमार’ कहे जाने वाले गोपाल सिंह नेपाली की बेटी सविता सिंह नेपाली बेतिया विधानसभा सीट (Bettiah Assembly Seat) से 2020 के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतर रही हैं. पप्पू यादव की पार्टी जनअधिकार पार्टी यानी जाप के टिकट पर वह चुनाव लड़ने जा रही हैं. सियासी दलों की भीड़ के बीच साहित्य जगत के पुरोधा की बेटी के चुनाव मैदान में उतरने से बेतिया विधानसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद हैं.

गोपाल सिंह नेपाली की सबसे छोटी बेटी सविता सिंह नेपाली ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत उस जगह से की है, जहां कभी उनके पिता गोपाल सिंह नेपाली गीत व कविताओं की रचना किया करते थे. शहर के सागर पोखरा शिव मंदिर पर बैठकर ही नेपाली जी अपने शब्दों को गीत व कविता की माला में पिरोया करते थे. इसलिए उनकी बेटी ने भी यहीं से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की है. सागर पोखरा मोहल्ले के घर-घर जाकर सविता सिंह नेपाली लोगों से वोट देने की अपील कर रही हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के बीच साहित्य और राजनीति को लेकर हुए संवाद को याद करते हुए कहा कि बेतिया की समस्याओं को यहां के जनप्रतिनिधि लगातार अनदेखा करते रहे हैं. मैं वर्षों से यह सब देख रही हूं. इसलिए बहुत सोच-विचार कर इस बार चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय लिया है.