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रस,छंद और अलंकार से कविता सुहागिन लगती है : डॉ. गोपाल प्रसाद


साहित्य सम्मेलन में डॉ. गोपाल प्रसाद ‘निर्दोष’ के काव्य-संग्रह ‘पारस-परस’ का हुआ लोकार्पण,
आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन

पटना / सवांददाता। रस, छंद और अलंकार कविता का श्रृंगार है। इसके अभाव में कविता सुहागिन नहीं लगती। आवश्यक नही है कि यथार्थ लिखने के लिए, यथार्थ जैसी विद्रूप भाषा का प्रयोग हो। कड़वे से कड़वे यथार्थ को मोहक शब्दावली में कहा जा सकता है। इसी संदर्भ में ऊर्दू के एक बड़े शायर कलीम आजिज़ ने कहा है- “बात चाहे बेसलीक़ा हो कलीम बात कहने का सलीक़ा चाहिए”। वही कविता पाठकों के हृदय को कर्षित करती है, जिसमें लावण्य हो, लालित्य हो और कुछ ऐसा हो, जिससे सहज में ही ‘आह-वाह’ निकलने लगे।
यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, चर्चित कवि डा गोपाल प्रसाद ‘निर्दोष’ के काव्य-संग्रह ‘पारस-परस’ के लोकार्पण समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि कवि निर्दोष काव्य-कल्पनाओं और कवित्त-शक्ति से युक्त एक प्रतिभाशाली कवि हैं। इनमे छंद लिखने के तत्त्व भी विराजमान हैं। बंजर हो रही कविता के इस गहन-काल में छंद लिखने की चेष्टा की जानी चाहिए। इनका शब्द-संयोजन, संप्रेषण-सामर्थ्य महनीय है। छंद की सिद्धि से इनकी कविताएँ अमर हो सकती हैं।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की विदुषी साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि ‘पारस परस’ के रूप में, बड़े दिनों के बाद एक पठनीय पुस्तक हाथ में आयी है। निर्दोष जी एक अत्यंत संवेदनशील कवि हैं। इस काव्य-पुस्तक से होकर गुजरना एक विशिष्ट अनुभूति से होकर गुजरना है। इनमें एक श्रेष्ठ बौद्धिकता भी दिखाई देती है। यह बौद्धिकता नए विम्ब की खोज करती है, जो यथार्थ में भी सौंदर्यबोध उत्पन्न करने का प्रमुख कारक है।
कवि ने अपने कृतज्ञता ज्ञापन के क्रम में कहा कि अब तक जो कुछ भी सृजन कर सका है, उनमे मेरे माता-पिता और गुरुजनों का आशीर्वाद और प्रेरणा रही है। उन्होंने लोकार्पित पुस्तक से ‘पानी पानी आँखें’ और ‘मज़दूर’ शीर्षक रचनाओं का पाठ भी किया।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष शंकर प्रसाद, कवि की पत्नी चिंता देवी, कुमार अनुपम, डा नागेशवर प्रसाद यादव, डॉ. विनय कुमार विष्णुपुरी, डॉ. मनोज गोवर्द्धनपुरी ने भी पुस्तक के प्रति अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त की।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ राज कुमार प्रेमी की वाणी-वंदना से हुआ। कवयित्री लता प्रासर, रमाकान्त पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, सावन कुमार आदि कवियों ने विविध रसों की रचनाओं का पाठकर काव्य-संध्या को लास्य-प्रभा से आलोकित किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, प्रणब कुमार समाजदार, अमित कुमार सिंह, अरविंद कुमार, विनीता कुमारी, पूजा राय, सुरेंद्र चौधरी, निशिकान्त मिश्र, विनीता कुमारी, श्याम किशोर सिंह ‘विरागी’, रवींद्र कुमार सिंह, विजय कुमार दिवाकर समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।