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विधान परिषद की दर्जन भर सीटों को भरे जाने को लेकर सरगर्मी तेज

पटना / संवाददात।  कभी जदयू के साथ राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की हाल के दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हुई मुलाकात के बाद अटकलें लगनी शुरू हो गयी हैं. विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर प्रदेश में राजनीतिक हलचल जैसा दिख रहा है. एक ओर विधान परिषद की मनोनयन कोटे की दर्जन भर सीटों को भरे जाने को लेकर सरगर्मी तेज हो गयी है, तो दूसरी ओर हार की समीक्षा कर रहा जदयू कुछ दिग्गज नेताओं को पार्टी में लाकर पिछड़े और मुस्लिम वोटरों के बीच पैठ जमाने की कोशिश में है. इसी परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री से उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात को जोड़ कर देखा जा रहा है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल किसी नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना से इन्कार कर रहे हैं.

इसके बावजूद चुनाव के दौरान बसपा और एआइएमआइएम के साथ गठबंधन कर सुर्खियों में आये रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर चर्चा में हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान उपेंद्र अपने गठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरा बनाये गये थे.

विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या में पीेछे रह गये जदयू पिछड़ी जमात में अपनी राजनीतिक ताकत में इजाफा चाहता है. इधर, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद उपेंद्र कुशवाहा नयी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं.

इस बार के विधानसभा चुनाव में जदयू को 2015 के चुनाव के मुकाबले 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. शाहाबाद के इलाके में, जहां कुशवाहा और बसपा की ताकत दिखी और सीमांचल के इलाके में जदयू पीछे रहा.

राजनीतिक विश्लेषक इसके लिए लोजपा की रणनीति को भी एक प्रमुख कारण मानते हैं. इसी सिलसिले में जदयू नये सिरे से वोट के लिहाज से मजबूत रहे कुशवाहा व मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाना चाहता है. इसके लिए उपेंद्र कुशवाहा एक मजबूत स्तंभ हो सकते हैं. जदयू की नजर राजद के एक वरिष्ठ मुस्लिम चेहरे पर भी टिकी है.

दूसरी ओर राजनीति के जानकारों का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा को जदयू ने विधायक, विधानसभा में विपक्ष का नेता और राज्यसभा सदस्य बनने का अवसर दिया. उपेंद्र 2019 का लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ना चाहते थे.

लेकिन, सीएम पद के चेहरे समेत अन्य मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने महागठबंधन से अलग होने का निर्णय लिया था. साथ ही एआइएमआइएम, बसपा, समाजवादी दल डेमोक्रेटिक, जनतांत्रिक पार्टी सोशलिस्ट के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. कुशवाहा, दलित और मुस्लिम गठजोड़ का भले ही लाभ उपेंद्र कुशवाहा को नहीं मिला, पर ओवैसी की पार्टी के पांच और बसपा के एक विधायक बने.राज्य में लोकसभा, विधानसभा व राज्यसभा की सभी सीटें भर गयी हैं. सिर्फ विधान परिषद की 18 सीटें खाली हैं, जिनमें 12 मनोनयन कोटे की और दो विधानसभा कोटे की सीटें हैं. चार स्थानीय प्राधिकार कोटे की सीटें हैं, जिनके लिए अगले साल चुनाव होगा. जदयू ने इस चुनाव में 15 कुशवाहा उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें पांच की जीत हुई.