Breaking News बिहार राजनीति

सन आफ मल्लाह ने साबित किया अपने आपको

फर्श से अर्श पर पहुंचने की कहानी

मुकेश महान

महज 19 साल की उम्र में रोजी रोजगार के चक्कर में अपना घर और प्रदेश छोड़ने वाले मुकेश सहनी आज अपने ही प्रदेश में महत्वपूर्ण विभाग पशुपालन एवं मतस्य के मंत्री हैं। फर्श से अर्श पर पहुंचने की यह कहानी प्रेरणादायी भी है और गर्वान्वित करने वाली भी। दूसरे शब्दों में सफलता के लिए जिद और जुनून का दूसरा नाम ही है सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी।
महज 5-6 साल के राजनीतिक करियर में भाजपा जैसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी द्वारा इतना तरजीह दिया जाना यह साबित करता है कि सन आफ मल्लाह का राजनीतिक कद सामान्य तो नहीं ही है। काम करने की इनकी खास शैली और सफलता की जिद ने इन्हें आम से खास बना दिया और कम उम्र में ही महत्वपूर्ण पद भी मिल गया।
राजनीति में आने से पहले और घर छोड़ने के बाद इनका अधिकतर समय मुंबई में गुजरा। दरभंगा के सुपौल बाजार स्थित अपना घर छोड़ने के बाद सपनों की नगरी मुंबई पहुंच गए ये अपना किश्मत आजमाने। एक सेल्समैन से करियर शरु करते हुए इन्होंने धारावाहिक और फिल्मों के लिए सेट बनाना भी शुरु किया और बाद में मुकेश सिने वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम की अपनी कंपनी भी बना ली। देवदास और बजरंगी भाई जान जैसी फिल्मों का मिलना इनकी कार्यशैली और सफलता को स्थापित करता है। वहां काम करने के क्रम में इन्होंने दौलत और शोहरत दोनों ही कमाई।


फिर बिहार की राजनीति में इन्होंने धमाकेदार इंट्री ली। वर्ष 2013 में विभिन्न अखबारों में जो सन आफ मल्लाह के नाम से पूरा-पूरा पृष्ठ विज्ञापन आया वो चौंकाने वाला था। इस विज्ञापन में मुकेश सहनी ने अपने आप को मल्लाह के बेटे के रुप स्थापित किया था। लेकिन उनका असली मकसद था इस तबके को एकत्रित करना, संगठित करना, और उन्हें सशक्त नेतृत्व देना। मतलब अब तक राजनीतिक रुप से उपेक्षित रहे इन तबके का नेता बनना इनका असली मकसद था। दरअसल यह एक बड़ा तबका है और इसमें मल्लाह, मछुआरे, नाविक, निषाद, सहनी, बिंद आदि समाज शामिल हैं। इसमें कुछ तो काफी मजबूत भी रहे हैं। लेकिन इस तबके में वर्षों से राजनीतिक शून्यता रही है। इसी शून्यता को भरने की कोशिश मुकेश सहनी ने तब विज्ञापनों के जरीय की थी। सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी को मालूम था कि इस तबके का राजनीतिक दखल 6 प्रतिशत तक का है और लगभग 15 सीटों पर चुनावी जीत करने में इनकी अहम भूमिका होती है। इस राजनीतिक गणित को उन्होंने समझा और अपने पक्ष में समीकरण तैयार किया। इसी समीकरण ने उन्हें अपने तबके का इकलौता नेता बना दिया और इसी समीकरण ने उन्हें भाजपा सहित प्रदेश की एनडीए सरकार में महत्वपूर्ण बना दिया। हालाकि 2019 में वो खगड़िया से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। फिर विधान सभा चुनाव में भी उन्हें जीत नहीं मिली। हां उनके चार लोग जरुर विधायक बन गए। इस बीच उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी बनाई और निषाद विकास संघ का भी गठन किया। 2015 के चुनाव में इन्होंने भाजपा के लिए प्रचार भी किया था। लेकिन तब भाजपा ने इन्हें महत्व नहीं दिया था और अपना पल्ला झाड़ लिया था। भाजपा से उपेक्षा के बाद मुकेश सहनी का झुकाव महागठबंधन की ओर भी कुछ समय के लिए हुआ। महागठबंधन में रहते हुए भी मुकेश सहनी का राजनीतिक प्रभाव कम नहीं हुआ। वहां रहते हुए भी वो महागठबंधन की सरकार बनने पर उपमुख्यमंत्री के दावेदार थे।
सच तो ये है कि महागठबंधन खासकर राजद के नेता तेजस्वी यादव मुकेश सहनी के राजनीतिक आधार और जातीय समीकरण को समझ नहीं पाए, लेकिन भाजपा ने इसे बेहतर तरिके से समझा और अपने हिस्से से 11 सीटें वीआईपी को दी। एक तरह से भाजपा ने 11 सीटें देकर मुकेश सहनी का कद वर्षों से राजनीति कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी से भी ऊंचा कर दिया। गौरतलब है कि जीतन राम मांझी और उनकी पार्टी हम को जदयू ने महज 7 सीटें ही दी थी। चुनाव के वक्त ही लगने लगा था कि इस बार सन औफ मल्लाह की भागीदारी राजनीति से सत्ता तक पहुँच जाएगी। …और ऐसा हुआ भी। विधान सभा चुनाव हार कर भी मुकेश सहनी महत्वपूर्ण मंत्री बन गए। और तो और भाजपा कोटे से उन्हें एमएलसी भी बना दिया गया। साफ़ है कि मुकेश सहनी क़िस्मत के साथ साथ जुगार के भी बहुत ही मजबूत हैं। अब देखना दिलचस्प यह होगा कि मुकेश सहनी के मंत्रीपद का कार्यकाल कैसा रहेगा। वो कुछ नया कर पाते हैं, या उनका विभाग उसी पुराने ढर्रे पर अपना काम करता रहेगा।