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ऊं के घेरे में, जीवन के फेरे


(शंभुदेव झा)


ऊं किसी के लिए केवल एक शब्द है तो वहीं किसी के लिए तरंग.अब तो इसे जीवनदायिनी भी कहा जाने लगा है। आज विज्ञान की कसौटी पर परखने वाले वैज्ञानिक भी अब ऊं शब्द की महत्ता, इसमें छिपे जीवन सार,संजीवनी तत्व और सूक्ष्म से सूक्ष्मतम बातों से विश्व को अवगत कराने लगे हैं। नतीजतन भारतीय सनातनी पक्षों का आधार और मजबूत हुआ है।
पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं भगवान शिव
असाध्य यौगिक क्रियाओं,रोग, उपचार, आध्यात्मिक पारालौकिक, जीजीविषा समेंत “गॉड पार्टिकल” के सूक्ष्मतर प्रकाश पुंज ने पूरे विश्व को भारतीय दर्शन का ऋणी बना दिया। अतीत का विश्वगुरू आज पुनः बिना स्पर्धा के ऊं व्यासपीठ पर आसन लगाये ऊं नमः शिवाय का जाप कर रहा है।कल्पना का वह महायोगी ध्यानमग्न है।

जगत को उस महायोगी के नाम तीन अक्षरों से युक्त जो “ऊं”मिला है वह त्रिगुणातीत, आनंदित, वैदिक विधान का प्रथम सोपान बन गया है।ऊं ध्वनि व्योम में अहर्निश सूक्ष्म तरंग उत्पन्न करता रहा है। ध्यान से इसका श्रवण,चिंतन, मनन करनेवाले लोग आज विश्व में पराविज्ञानी कहलाते हैं।


तीन ध्वनि तरंगों के चलते इसे लोग निरंकार भी मानते हैं।ऊं की ध्वनि प्राण की गति से जुडे रहने के चलते इसे दिव्य आत्माओं ने सहजता से शोधन कर,मानव जाति के कल्याणार्थ उपस्थापित किया है।”अ उ म” की ध्वनि को ब्रह्मा विष्णु और महेश की संज्ञा दी गई है।सकारात्मक ऊर्जा से
ओतप्रोत मानव ऊंकार के हुंकार को समझता गया और फिर इसे बारह कलाओं से परिपूर्ण मान कर परमानंद की प्राप्ति में आगे बढ़ गया।
आध्यात्म विशेषज्ञ आचार्य पद्म शिवाकांत का कहना है कि बारह कलाओं की सभी मात्रा,एक सूक्ष्म आरोह-अवरोह का परिचायक है । 1-मात्रा में घोषिणी, 2-मात्रा में विद्यन्मात्रा, 3-पातंगी, 4-वायु वेगिनी, 5-नामधेया, 6-ऐंद्री, 7-वैष्णवी, 8-शांकरी, 9-महती,10-धृति, 11-नारी तथा 12वीं स्व नाम धन्य ब्राह्मी नाम से उदघोषित है। सूक्ष्म तरंग, प्राकृतिक घर्षण, जल ध्वनि वेग, मृदंग, वादन को स्वतः ऊं में महसूस करना, रोमांचक है।

वर्तमान चिकित्सा पद्धति में भी ऊं ध्वनि तरंगों का प्रयोग किया जाने लगा है। बहरापन, स्वर भंग, गलसोथ, सिर, तथा रचनात्मक व ध्वंसात्मक सभी प्रकार के रोगों का उपचार “ऊं” तरंग से हो रहा है।खास बात यह है कि हृदय, रक्त चाप,माइग्रेनव किडनी आदि विकारों का समय रहते ऊं तरंग से इलाज को अब संभव माना जाने लगा है।नाद का उद्गम स्थल भी ऊं को ही माना जाता है।सप्तस्वर तथ सप्त किरण दोनों पर ऊं का प्रभाव माना जाता है।समुद्र ध्वनि,मेघ गर्जन, शैशव बिहुसन,रोदन एवं निनाद के सिद्धांतों पर भी ऊं प्रभावी है ।आध्यात्मिक पराज्ञान के लिए “ऊं नमः शिवाय”एक अमोघास्त्र माना गया है। अतः देवाधिदेव महादेव के स्मरण का ऊं शब्द महामंत्र माना गया है। आरोग्यता पक्ष के लिए भी संजीवनी बूटी है। अतः करते रहे आप, ऊं नमः शिवाय का जाप।