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धर्माय़ण का सन्त रविदास अंक का डिजिटल लोकार्पण

पटना। माघ की पूर्णिमा के दिन सन्त रविदास का जन्म हुआ था, अतः परम्परा से इस दिन उनकी जयन्ती मनायी जाती है। सन्त रविदास रामानन्द स्वामी के साक्षात् शिष्य थे तथा वे गृहस्थ के जीवन में अपने गुरु के द्वारा बताये गये भक्तिमार्ग पर चलते रहे । उनके गुरु रामानन्दाचार्य ने जातिगत भेद-भाव से ऊपर उठकर सभी के लिए राममन्त्र का उपदेश देकर गृहस्थ्य जीवन में भी भक्ति करने का पाठ पढ़ाया था। यह परम्परा रामावत के नाम से प्रसिद्ध हुई। सन्त रविदास इसी परम्परा के ध्वजवाहक बने।
वर्तमान में यह पत्रिका केवल ई-पत्रिका के रूप से प्रस्तुत की जा रही है। यह महावीर मन्दिर के वेब साइट पर निःशुल्क पढी जा सकती है अथवा डाउनलोड की जा सकती है।


इस अवसर पर महावीर मन्दिर की पत्रिका धर्मायण का सन्त रविदास अंक का लोकार्पण किया गया है। इसमें सन्त रविदास के सम्बन्ध में शोध-परक अनेक आलेख संकलित किये गये हैं। स्वामी परमानन्द दास ने “रविदास-पुराण” नामक एक ग्रन्थ की रचना की थी। वह आज अनुपलब्ध है। इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में सूचनाएँ सम्पादकीय में डाली गयी है। सन्त रविदास की मूल परम्परा का मौलिक सन्दर्भ आलेख में चेन्नई की विदुषी डा. ममता मिश्रा ने ‘सम्प्रदायप्रवर्तकपरम्पराʼ नामक ग्रन्थ का सम्पादन किया है, जिसमें भी रविदास को रामानन्द का शिष्य कहा गया है। इसके अतिरिक्त “ऐसी भगति करै रैदासा” शीर्षक निबन्ध में दर्शन के विद्वान् डा. सुदर्शन श्रीनिवास शाण्डिल्य ने रविदास को मूल रूप से प्रपत्ति मार्ग में स्थापित सन्त सिद्ध किया है
“जातिभेद सठ मूढ बतावे” शीर्षक आलेख में डा. काशीनाथ मिश्र स्पष्ट किया है कि सामाजिक भेद-भाव को दूर कर सबको एक करने के लिए सन्त रविदास का योगदान स्मरणीय रहेगा। गिरीडीह के महेश प्रसाद पाठक ने “संत रैदासजी” शीर्षक आलेख तथा दिल्ली के डा. लक्ष्मीकान्त विमल ने ‘भगवद्भक्तिमाहात्म्य’ में संत रविदासजी का चरित” आलेख लिखा है। आचार्य किशोर कुणाल ने भी सन्त रविदास पर एक कविता लिखी है जो बेगम शहर रचै रैदासा शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।
राँची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय का “मानवधर्मी रैदास” तथा श्रीमती तारामणि पाण्डेय लिखित “संत रविदास का आदर्श” पठनीय आलेख हैं। राजस्थान के विद्वान् डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू” ने सन्त रविदास के गुरु भाई “संत पीपाजी का वृत्तान्त तथा उनके उपदेशों” पर प्रकाश डाला है। अवकाशप्राप्त आइ.पी.एस. अधिकारी तथा वैदिक गणित के मर्मज्ञ विद्वान् श्री अरुण कुमार उपाध्याय का विशेष आलेख “सूर्य-सिद्धान्त का काल तथा शुद्धता” शोध की दृष्टि से पठनीय है तथा यूरोपीयन विद्वानों के द्वारा भारतीय इतिहास के साथ किये गये छेड़-छाड़ का पर्दाफाश करता है।
आचार्य सीताराम चतुर्वेदी ने सभी रामायणों का कथा हिन्दी भाषा में लिखी थी। उऩमें इस अंक में “हनुमान् विरचित ‘हनुमन्नाटकʼ से रामकथा” प्रस्तुत की गयी है। पिछले अंक से सन्त लालच दास कृत ‘हरिचरित्रʼ महाकाव्य पं. भवनाथ झा के द्वारा सम्पादित किये जा रहे हैं। उसकी अगली कड़ी इस अंक में प्रकाशित किया गया है। साथ ही पुस्तक समीक्षा, मन्दिर समाचार आदि सभी स्थायी स्तम्भ भी प्रकाशित हैं।