दुनिया में हर किसी को एक नशा है। किसी को दौलत का जूनून है तो, कोई कम समय में बुलंदियों को छूना चाहता है। एग्जाम में अच्छे मार्क्स की दरकार हो या रिश्ते में कसावटपन। इन सब दबावों से युवा मन तनावों और दबावों को निकालने के लिए कभी चाय-कांफी की चुस्कीयों का सहारा ले रहा तो कभी सिगरेट केी कश को खींच रहा है। आजकल युवाओं को नशे की तरफ तेजी से बढते हुए देखा जा रहा है।
महिलाएं भी ले रही हैं नशा
युवा लङकियों की तुलना में संभ्रांत और मध्यम वर्ग की महिलाएं भी तेजी से आजकल नशे की गिरफ्त में आ रहीं हैं। आजकल राजधानी पटना में गोगो जैसे पाबंदित सिगार इनके बीच प्रचलन में देखा जा रहा। ये सिगार में अक्सर कच्चे गांजे को तंबाकू में मिला कर इस्तेमाल किया जा रहा है। अधेङ उम्र की महिलाएं इनका उपयोग शौकिया तौर पर कर रही हैं। कुछ महिलाएं सिर्फ पार्टियों में इसे पी रही हैं, तो कुछ का मानना है कि इसके पीने से स्टेटस सिंबल उनका बढ रहा। भांग की गोली और शरबत भी इनके बीच प्रचलन में है। राजधानी पटना में कफ सिरप पी कर नशा करने वाली महिलाओं की तादाद भी बढ रही है। हालांकि कुछ कफ सिरप पर सूबे की सरकार ने बैन लगा रखा है, परंतु अवैध रूप से यह ग्राहकों तक पहुंच ही जाता है। इलाज के दौरान कुछ महिला पेशेंट ऐसी भी मिलीं, जो विक्स आदि को रोटी के साथ खाकर भी नशा कर रहीं हैं।
स्कूल-कॉलेज के युवा भी हो रहें प्रभावित
आजकल बिहार में शराबबंदी के बावजूद युवक-युवतियों द्वारा अलग-अलग तरह का नशा इस्तेमाल किया जा रहा। मसलन कॉकटेल-माकटेल से उलट अब लोग सामूहिक तरीके से नशे से जुङ रहे हैं। मर्दानगी व जिंदादिली का वास्ता देकर नए युवाओं को नशा से जोड़ा जाता है। ज्यादातर युवा ग्रुप में नशा अपने जोश और इगो की रक्षा के लिए ले रहे हैं। युवतियां अपने व्यक्तिगत इच्छाओं व सामाजिक-पारिवारिक दबाव में सामंजस्य न बनाने की वजह से समूह में बैठकर नशा करती हैं।
युवाओं में नशे का हो रहा दुष्प्रभाव
आजकल युवाओं के बीच व्हाइटनर, कफ सीरप, पाईप तंबाकू, गांजा को सिगरेट में भर कर छल्ले बनाना, अफीम, भांग की गोली लेना इत्यादि का इस्तेमाल धङल्ले से हो रहा है।
शुरूआत में युवाओं के मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता के आगे इस तरह के नशे का प्रभाव बहुत कम दिखता है। यह अपने जिद्द व हठ के रक्षा प्रक्रम के आगे किसी की भी नहीं सुनते।
कैसे पहचानें नशे से पीङ़ित युवाओं को जो युवा नशे की चपेट में होते हैं वह अक्सर बहुत तरह की समस्या से घिरे होते हैं। इनके शरीर में दर्द और मांसपेशी में जकङन आम होता है। देर तक वह शौच में बैठते हैं। भूख व नींद मानो कोसो दूर होता है। शारीरिक कमजोरी व थकान आम हो जाती है। हर बार इन्हे नयापन चाहिए होता है। चाहे रिश्ते की बात ही क्यों न हो। नशे से पीड़ित हमेशा आकांक्षाओं तले जीने को मजबूर होते हैं।
नशा का ज्यादा इस्तेमाल बनाता है मनोरोगी
जो युवा नशा ले रहे होते हैं, वह पहले से या नशे की आदत की वजह से कुछ अन्य तरह की मानसिक समस्याओं से जकङने लगते हैं या पूरी तरह से मानसिक स्वास्थ्य को खोकर अधिक रूप से नशा पर निर्भर हो जाते हैं।
सिर्फ काउंसेलिंग से ठीक हो सकते हैं मानसिक मरीजःडा. मनोज कुमार
जीवनशैली अस्त-व्यस्त
पटना व बिहार के सूदूर जिले से आ रहे स्कूल -कालेज के युवाओं को मैंने देखा है कि उनकी हालत नशे अपनाने पर बद से बदतर होती जा रही।
मसलन ध्यान में कमी, मन को एकाग्र करने की शक्ति कमना, शक की अधिकता, अजीब-अजीब ख्यालात आना, ऐसा लगना कि मेरा कोई दुश्मन है, और वह मुझे और मेरे परिवार को बर्बाद कर देगा आदि कई तरह के भय के कारण उनका जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।
कुछ मामलों में पाया गया कि युवा ने खुद को असीम शक्ति का मालिक बना लिया है। अकेले में बात करना, तन्हा जिंदगी गुजर करना व उनके कान में किसी की आवाज सुनाई देना।
यह सभी लक्षण किसी में एक साथ दिखना। तो कुछ मामलों में पाया गया कि धीरे-धीरे यह सब उनमें पनप रहा होता है। गौर करने वाली बात यह हो जाती है कि पीड़ित को इसकी भनक नहीं लगती। कुछ मामलों में परिवार संभालने की कोशिश भी करता है तो नशे के भंवरजाल में फंसा वह युवा खुद को यहां से निकालने में स्वयं को अयोग्य मानने लगता है।
संभलने की क्यों हैं जरूरत
अगर आप किसी न किसी नशे से पीड़ित हैं, तो आपको यह चेक करना होगा कि क्या आप खुद के लिए या परिवार के लिए किसी तरह की परेशानी का सबब तो नहीं पैदा कर रहे हैं। आपके व्यवहार से पड़ोसियों, कानून या सार्वजनिक नियमों की अवहेलना तो नहीं हो रही है। सबसे जरूरी मसला इनसब के बावजूद कहीं आपका करियर ग्राफ नीचे तो नहीं जा रहा है।
संभव हैं समाधान
किसी भी नशे से उबड़ना अब मुमकिन हो गया है। आपको आर्टीफिसीयल इच्छा शक्ति से नहीं, बल्कि आप के मजबूत इरादे आपकी जरूर मदद कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक चिकित्सा इसके लिए वरदान साबित होती है। कुछ मामले में रक्तशोधन किया जाता है। जो लोग नशा पीड़ित हैं, उनके उपचार में चार पीलर काम करते हैं। पहला आपका काउंसलर, दूसरा परिवार, तीसरा समय पर दी जाने वाली दवा और चौथा अहम खंभा नशा पीड़ित खुद होता है। जब चारों में उचित तालमेल होगा तो नशा पीड़ित जल्दी स्वास्थ्य लाभ करते हैं। याद रखें नशा से नफरत होना चाहिए, इसके रोगियों से नही। इनको प्रेरित कर ही इस समस्या से छुटकारा दिलाना संभव है।
डॉ॰ मनोज कुमार
(लेखक बिहार के जाने-माने मनोवैज्ञानिक है।)