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कथक नर्तकी राशि परमार के नाम, पुरस्कारों का गुलदस्ता

शंभुदेव झा।

“आपलोग आशीर्वाद देते रहिये, मैं पुरस्कृत होती रहूंगी” यह उद्गार कथक नृत्य शैली में निपुणता प्राप्त कर रही, लोयला स्कूल की छात्रा और नन्हीं थिरकन राशि परमार की है।
खगड़िया जिला के गणगौर निवासी स्व. नंद कुमार सिंह की पोती तथा पत्रकार द्वय नवीन कुमार-रेणु सिंह की एक मात्र पुत्री राशि परमार फिलहाल पटना के लोयला हाई स्कूल में अष्टम वर्ग की छात्रा हैं।
शिक्षा, शालीनता, संस्कृति और संस्कार को कभी कमतर नहीं समझना चाहिए और ना ही हीन भावना को हावी होने देना चाहिए, यह कहना है नृत्य की छात्रा राशि परमार का।
नृत्य, गायन, वादन व सुर संधान में रियाज के वल पर ही हस्ताक्षर बना जा सकता है। कलाकार के लिए सौम्यता व शालीनता का दो संस्कार जरूरी है। साधन नहीं, लगन महत्वपूर्ण है। माता विद्या दायिनी की सौम्यता ही सबसे बड़ी मानी गई है। संगीत के लिए संगत और आवाज के लिए साज की महत्ता तो है पर जबतक अभ्यास से बारीकियों को परिमार्जित नहीं किया जाता, तबतक कलाकार निखरता नहीं और यह निखार संगीत, नृत्यगुरु या उस्ताद ही एक शिष्य को भेट करते हैं।

नृत्यांगना राशि यह मानती है कि आज भी कला क्षेत्र में गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है और यही उसका संस्कार भी है।
नृत्य के प्रति जारी रूझान के लिये तानसेन संगीत महाविद्यालय की सराहना और योगदान को रेखांकित करती हैं। बीते वर्षों में विभिन्न मंचों पर खुद का प्रदर्शन कर आज राशि आत्म-विश्वास से लवरेज हैं। यही वजह है कि नन्ही सी उम्र में लगभग बीस तमगा, शिल्ड और कप के साथ रनिंग ट्रॉफी अपने नाम दर्ज कर लिया है राशि परमार ने।
नृत्य-संगीत निर्देशक आशुतोष गुरु ने राशि को बताया है कि सप्तस्वर की बारीकियों के साथ बोल व थाप के आधार पर नियमित रूप से अभ्यास करना प्रतिभागियों के हित में है।
नृत्य में उम्र से कुछ ज्यादा ही परिपक्व राशि बातचीत के क्रम में कहती हैं कि अच्छे नृत्य स्कूलों की मांग आज के समय बढ़ गई है। क्योंकि इस विधा का क्षेत्र विस्तार ले रहा है। नृत्य की शैली,लोक गीत-संगीत, वाद्य यंत्र, गायन, वादन, प्रहसन क्षेत्रीय भाषाओं में प्रतिभागियों को हुनरमंद बना रही है। अतः आज अनेक संभावनाओं के द्वार इस क्षेत्र में खुलने लगे हैं। जिसके बूते छात्र-छात्राएं थोडे समय में समाज को उत्कृष्ट सेवा दे सकते हैं।
कोरोनाकाल के लॉकडाउन को याद करते हुए राशि परमार कहतीं हैं कि किस प्रकार कोरोनाकाल के दौरान उन्होंने सेल्फ कोरियोग्राफी में नृत्य पेश कर जनजागृति से खुद को जोड़े रखा।
ताली और बोल ही एक कलाकार को आत्मवल देता है। अपने माता-पिता द्वारा प्रोत्साहन, सराहना और उत्साहवर्धन को अपने लिए संजीवनी मानती हैं। अब उनकी चाहत है देश और विदेश में मंचन की। सफलता से विनम्रता को हासिल कर चुकी नृत्य साधिका राशि परमार अब नृत्य कोरियोग्राफर के रूप में खुद को स्थापित करना चाहती हैं।