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जानें माँ दुर्गा के शक्ति के नौ रूपों को…


CHAITRA NAVRATRA पर विशेष, CHAITRA NAVRATRA पर जानें शक्ति के रूप


विरक्ति के लिये विशेष शक्ति और साधना की जरूरत है।शक्ति को परिभाषित करने के लिए भौतिकवादी सुख-सुविधा का परित्याग करना ही श्रेष्ठ कर्म नहीं है, बल्कि वर्तमान में रहते हुए दैनंदिनी कर्म के बीच संज्ञा शून्य अवस्था को प्राप्त करना होता है। जाहिर है कि मार्गों का निर्धारण और चयन के गूढ़ रहस्यों को साधकों ने योग, सुयोग, वियोग और हठयोग व अध्यात्म रूपी कसौटी पर पहले स्वाध्याय से परिमार्जित किया होगा तथा उसे सुगम अनुरागी मान कर, आम इंसान को स्नेह से स्थानांतरित किया जो शक्ति के 9 स्वरूपों में रेखांकित किया जा सका। हम सभी उसे दुर्गा साधना या नव दुर्गा प्रकृतिताह के साथ ही दुर्गा उपासना भी कहते हैं जिसमें स्त्री के 9 रूपों का सांगोपांग लेख आता है और इसी साधना में विरत हो कर शक्ति उपासना व साधना का दिग्दर्शन फल प्राप्ति साधकों के लिए अमोघास्त्र बन जाता है।
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आज भारतीय सनातन संस्कृति के प्रति विश्व का यूं ही रूझान नहीं बढ़ रहा बल्कि यह भारतीय मनीषियों के शोधन का प्रतिफल ही है कि आधुनिक विज्ञान कालखंड में भी “कुवांरी कन्या पूजन” का विधि-विधान भारत में निष्ठा से सनातन संस्कृति का सर्वमान्य यज्ञ है जो वर्ष के चार खंडों में विभक्त हो कर अपने भक्तों का मान बढ़ाती है। वसंतोत्सव, चैत्र, दीपोत्सव व शारदीय नवरात्र की दिव्य परिधि में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना सनातन संस्कृति की देन है और प्रसन्नता की बात है कि नव पीढ़ी का रूझान शक्ति पूजन की परंपरागत शैली की ओर संतोषजनक है।
एक नजर स्त्री के 9 पूजनीय स्वरूप की ओर डालें। जन्म की रोचक कथा का सूत्रधार “शैलपुत्री” होती है जो लौकिक सुखानुभूति का बीज पक्ष है। दूसरी स्वरूप “ब्रह्मचारिणी” से सुशोभित है। यह अवस्था कौमार्य शीलवद्ध है। तृतीय स्वरूप में स्त्री का रूप “चंद्रघंटा से विभूषित है” यह पूरी तरह भारतीय सनातन संस्कृति का निर्मल आधार बना।


अब गृहस्थ आश्रम का पक्ष सन्निहित कर संतानोत्पत्ति के लिए गर्भकाल “देवी कूष्मांडा को समर्पित किया गया। यहां से नव जीवन का अध्याय मानवेत्तर गुणों को प्रतिपादित करता रहा। जाहिर है कि एक शिल्पकार की भूमिका में स्त्री तभी आती हैं जब गृहस्थ जीवन में एक संतति के उच्च आदर्श को वे पाती हैं। यानि कल तक केवल स्त्री कहलाने वाली अब “स्कंदमाता” के रूप में स्थापित हो जाती हैं। इसके उपरांत स्त्री का अपना रूप, स्वरूप और दायित्व संयम की कसौटी पर निर्धारित होती रही है और वहां स्त्री का “कत्यायनी देवी” रूप संधान सामने आता है।


कहते हैं “मां मारे लेकिन किसी को मारने ना दे”। स्नेहिल आस्था की पराकाष्ठा। संतति और पति के अनुराग के बीच एक स्त्री न जाने कितनी बार स्वविवेक से सामंजस्य स्थापित कर, त्रिकालदर्शी बन जाती है। नतीजतन वह शक्तिसंधान से पति के दीर्घायु संजीवनी बन जाती है जो “देवी कालरात्रि “जैसी मानी गई है। जब शक्ति संधान का स्वरूप पारिवारिक हो जाता है तो वहां सनातनी संस्कृति में वसुंधरा को एक परिवार माना जाता है। अब यहां उपकृत, अनुकरण और सबों को साथ लेकर चलने का नैसर्गिक सुख ही “महागौरी” का लक्ष्य साधन बना। यानि परोपकार की नीति का रसास्वादन कराते हुए एक स्त्री किस प्रकार महत्वपूर्ण पद भूमिका का वरण करती है।


रही बात नौवें स्वरूप की तो अपने प्रादुर्भाव और प्रयाण काल तक वह स्वयं सिद्धा हो कर अपनी संतति को निर्धारित संसाधनों के बीच, इतनी माकूल बना डालती है कि उसकी संतति सर्वश्रेष्ठ ध्वज वाहक बन माता का मस्तक सदा उच्च बनाये रखें।
विधि के विधान को दुर्गा सप्तशती के सस्वर गान और पाठ से किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है, यह एक दुर्गा पाठी ही समझ सकता है। सभी सक्षम देवताओं को भी अंततः देवी दुर्गा की ही आराधना कर महिसासुर को साधने की जुगत करनी पड़ी।
हम भारतीय सनातनी संस्कृति को पुनः स्थापित करने का संकल्प लें ताकि नये समाज का निर्माण किया जा सके। एक स्त्री शक्ति स्वरूपा बनेगी तो समाज में संवेदना, संरचना और सारगर्भिता का रसायन घुल सकेगा।


नवीन कुमार

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.