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सिर्फ काउंसेलिंग से ठीक हो सकते हैं मानसिक मरीजःडा. मनोज कुमार

मानसिक बीमारियों में अस्सी फीसदी समस्याएं ठीक हो सकती हैं काउंसेलिंग व साइकोथेरेपी से

हर मानसिक परेशानी बीमारी नहीं होती और न ही इसके लिए दवा की जरूरत पड़ती है। ढेर सारी मानसिक परेशानी ऐसी हैं, जिसका इलाज सिर्फ काउंसेलिग से होता है। पटना में रहकर लंबे समय से काउंसेलिग करने वाले ऐसे ही एक मनोचिकित्सक डा. मनोज कुमार से xposenow.com के लिए मुकेश कुमार सिन्हा ने लंबी बातचीत की। यहां प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश…
-क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट बनने का विचार कैसे आया मन में।
-मैंने बचपन में अपने गांव देखा था कि एक प्रौढ़ महिला से कोई भी बात नही करता। बहुत लोग उसके पति से भी डरते थे। लोग उस प्रौढ़ा को डायन समछते थे। इस वजह से उनके घर की ओर भी कोई जाना नही चाहता था। कारण था कि उन्हें अपना कोई संतान नहीं था। उनके पति भी गांव का ओझा थे।। सामुदायिक पूजन में जलते हुए खप्पर उठाते। बीमार लोग उनसे ईलाज के लिए आते। बेंत से पीटकर रोगियों का वह ईलाज करते। उनके पास अच्छे घरों के लोग भी पहुंचते थे। उनके इलाज के तरीके से हमेशा मुझे पीङा होती थी। तब मैने तय किया की मानसिक बीमारी को कष्ट देकर नहीं वैज्ञानिक तरीके से इलाज होना चाहिए। इन सब प्रेरणा और मानव सेवा के प्रति मेरी अभिरूचि ने इस क्षेत्र में आने के लिए मुझे प्रेरित किया।
-इतने सारे कैरीयर ऑप्शन रहते हुए भी क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट ही क्यों
–आज के दौर की बात करें तो लोगों के पास समय नहीं होता कि वो दूसरों की तकलीफ सुने। उनकी मदद करे। संयुक्त परिवार में मेरा जन्म हुआ। मैनें एक दूसरे की मदद करना माता-पिता से सीखा था। ज्वाइंट फैमिली में मुझे अपने लोगों का भरोसा जीतने और बिना किसी पूर्वाग्रह के बातों को सुनना और उसका समाधान निकालना अच्छा लगता था। यही कारण है कि लोगों की मदद करने का मेरा शौक मेरा प्रोफेशन बन गया।
-फिर कोई मुश्किल तो नहीं आयी।
-इस फिल्ड में काम करते हुए एक दशक से अधिक हो गये। मानसिक दिव्यांगजन के उपचार में चिकित्सकों पर मरीज का भरोसा होना सफलता की गांरटी मानी जाती है। शुरुआत के दौर में मुश्किलें आयीं। पेंशेंट और उनके परिजनों को मुझ पर भरोसा कायम हो।इसके लिए मैंने काफी मेहनत की। कुछेक मामलों में उपचार का रिजल्ट धीमा सा रहा। उस समय इस क्षेत्र में इस तरह की चुनौती को समझना थोड़ा मुश्किल सा लगा था। लेकिन अब सब ठीक है।
-आपकी विशेषज्ञता किसमें है।
-पिछले एक दशक में मैंने सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काम किया। जैसे नशा, अंधविश्वास, मनोविक्षिप्त व्यक्ति के जीवन को बदलने, उनके लिए पुनर्वास का काम करने, मानसिक रोगियों के परिजनों इत्यादि के लिए जागरूकता कार्यक्रम करने आदि। वैसे मेरी विशेषज्ञता बच्चों व युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य में है।
-किस किस तरह के मरीज आते हैं आपके पास।
-मेरे पास हर उम्र के और अनेक तरह की समस्याएं लेकर लोग आते हैं। बच्चों में पढने लिखने की समस्या, भूलने व शैक्षणिक उपलब्धि कम होने, युवाओं में प्रेम-प्रसंग, करियर, अवसाद, आत्महत्या, नशे और पलायन जैसी समस्याएं, वयस्कों में तालमेल में गङबङी, बङबङाने, अकेलापन, अवसाद, एक ही विचार बार-बार आने, काम धंधे और आर्थिक कारणों से होनेवाले अवसाद, महिलाओं में खुद को उपेझित करना, मूड की समस्या, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों व उनके पुनर्वास इत्यादि से संबंधित मामले आते रहे हैं।
-कोई ऐसे मरीज़ जो अपनी पहचान छुपाना चाहते हों।
-इस क्षेत्र में सभी मरीजों का उपचार उनकी गोपनीयता को बरकरार रख कर किया जाता है। हम मानसिक समस्या से ग्रसित व्यक्तियों की पहचान उजागर होने नहीं देते। ये प्रमुख नीति होती है इस प्रोफेशन की।
-कोई अच्छा और कोई सबसे बुरा अनुभव
-एक बार किसी विभाग के मंत्री के परिजन को उन्माद से संबंधित समस्या हुई थी और तब मिनिस्टर साहब ने कहा था कि उनको रिज्लट जल्दी से जल्दी चाहिए। तब वह अनुभव बुरा था क्योंकि वो चिकित्सकों की सुन ही नहीं रहे थे और अपनी ही बातें कह रहे थे। तब हिम्मत जुटाकर बोलना पड़ा कि वह अपने इस नारस्थैटिक व्यक्तित्व के शीलगुण बदलें, तब ही उनका परिवार के उस शख्स का मर्ज कम होगा। कुछ हफ्तों में उन्होंने अपने एटिट्यूड में बदलाव लाया, जिससे उनका पेंशेंट काफी रिकवर किया। वो लम्हा आज भी खुशी देता है।
-किस मरीज़ को ठीक करना बहुत कठिन था आपके लिए।
-एक बार एक जमींदार घराने से ताल्लुकात रखने वाले एक सज्जन द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को लाया गया, जो मिथिला पेंटिंग के जीवंत चित्रकार थे। उस केस में उक्त रोगी के समुदाय वाले आक्रोशित हो गये थे। कारण था उस धनाढ्य व्यक्ति द्वारा परिजनों को बिना इजाजत ईलाज के लिए भर्ती कराना। दरअसल गंभीर मानसिक रोगियों के परिजनों का सहयोग न मिलने से उपचार कठिन हो जाता है।
-सामान्य तौर पर किस तरह के मरीज़ आते है आपके पास।
-मेरे पास चिंता-अवसाद के केसेज सबसे ज्यादा आ रहे हैं, व्यवसायिक घाटा, छात्र-छात्राओं से संबंधित अनेक समस्या से पीड़ित लोग, वैवाहिक व नशे से संबंधित समस्याएं लेकर लोग आ रहे हैं। इधर कुछ महीनों से लौकडाउन से संबंधित मानसिक समस्याएं लेकर लोग आ रहे हैं।
-क़ोरोना काल में आने वाले मरीज़ का नेचर कैसा था।
-ज्यादातर मरीजों में असमायिक मृत्यु, बीमारी का डर, अपनों के खोने, व्यवसाय में घाटा पहुंचने, स्टुडेन्ट व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे कंडीडेट्स में भविष्य के तबाह होने के भय लेकर आते देखा गया। इसके आलावा आत्महत्या का ख्याल, नशा व इंटरनेट एडिक्शन के भी अनेक केसेज मिले।
-मानसिक बीमारी में काउंसेलिंग कितना असर कर पाता है।
-मानसिक बीमारी में काउंसलिंग द्वारा व्यक्ति की समस्या से परिचित होने का मौका मिलता है और साथ ही रोग को पहचान कर दूर करने की भी जानकारी मिलती है। रोगी के भीतर मौजूद क्षमता व उनकी योग्यता से भी उनसे परिचित कराते है, जिससे वह अपनी समस्या के समाधान के प्रति सूझ विकसित कर सकें।
-किसी एक मरीज़ को सामान्य तौर पर कितनी काउंसेलिंग की ज़रूरत पड़ती है।
-समस्या की गंभीरता के अनुसार ही सैशन की जरूरत पड़ती है। समान्य तौर पर 6 से 8 सैशन में रोगी काफी अच्छा महसूस करने लगते हैं।
-कौन कौन सी मानसिक बीमारी है, जो काउन्सलिंग से ठीक हो जाती है या ठीक हो सकती है।
-मानसिक बीमारियों में अस्सी फीसदी समस्याएं काउंसलिंग व साइकोथेरेपी से ठीक हो सकती है। इनमें चिंता, तनाव, अवसाद, नींद की समस्याएं, यौन समस्याएं आदि हैं।
-गांव और शहर की तुलना में कहां से अधिक मरीज़ आते हैं।
-मरीजों की संख्या के हिसाब से देंखें तो शहर और गांव दोनों बराबर है। लेकिन ज्यादातर शहर के लोग काउंसलिंग के लिए आ रहे। ग्रामीण क्षेत्रों में नशा, शरीर पर दवा का असर न होने पर वह भी काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं। परंतु शहर की तुलना में उनकी परेशानियां कम हैं।
-और आख़िरी सवाल कि अब तक आपने कितने मरीज़ का सफल इलाज किया है।
-मेरे द्वारा दस हजार से अधिक लोगों का सफल ईलाज किया जा चुका है। जो अब पूरी तरह अपने जीवन का सदुपयोग कर रहे हैं। परिवार और समाज में अपनी क्षमतानुसार योगदान दे रहें।