फतुहा। माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में जिले में बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर घरों के साथ स्कूलों व कालेज में विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की गई। ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन पर प्रकृति के सौंदर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है। पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नई कोपलें आने लगती हैं। बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की गई। बसंत पंचमी के अवसर पर स्कूलों में मां सरस्वती की विशेष आराधना की गई। इस दिन महिलाओं ने पीले वस्त्र धारण कर पूजा-अर्चना की। पूरे साल को जिन छह मौसमों में बांटा गया है, उनमें वसंत लोगों का मनचाहा मौसम है।
प्रकृति उत्सव के रूप में मनाया गया त्योहार बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। इस त्योहार को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उस संसार में देखते हैं, तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी की वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी तथा मलिनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण की हुई जीवों को वाणी दान की, इसलिए उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि देने वाली है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की गई। इस दिन प्रखंड के लक्ष्य कोचिंग सेंटर, आदर्श निकेतन स्कूल, एस. जी. कम्पेटेटिव कोचिंग, नवोदय पब्लिक स्कूल, एन.पी.एस. क्लासेज, मिलेनियम काॅन्वेंट, ग्लोरियस स्कूल, ग्लैक्सी पब्लिक स्कूल, वाणी पुस्तकालय, विश्वबंधु पुस्तकालय, सर्वोदय इंटरनेशनल स्कूल, शिवम् स्कूल, उज्जवल वल्ड स्कूल, आचार्य सुदर्शन पब्लिक स्कूल सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्रकृति उत्सव के रूप में मनाया गया। सरस्वती पूजन के बाद कई स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए।