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शशि सम हंसी असि, ऐसी है वाराणसी


द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी

शम्भु देव झा


विश्वनाथ के रहस्य को आंके नहीं अपितु जानें और मानें। मुक्ति, मोक्ष तीर्थ, अघोर दर्शन, मंत्र सिद्धिक्षेत्र, शिव के त्रिशूल पर स्थित, गुरु व राजा सदृश्य स्नेह वत्सल शिव का चिंतन, मनन तथा दर्शन-पूजन से जन्म-जन्मांतर का भेद, भला कौन नहीं चाहेगा। शिव-शक्ति के उपासक यह भी मानते हैं कि मां भगवती अन्नपूर्णा खुद काशी क्षेत्र में बिराजती हैं, इसलिए यह प्रामाणिक सत्य है कि यहां माता की अनुकंपा हर एक पर बनी रहती है। जिसके चलते कोई भी काशी प्रवासी कभी भूखा नहीं सोता। शीर्षक का सामान्य अर्थ है कि वाराणसी का स्वरूप पूर्णतया चंद्राकार है और वरूणा-अस्सी क्षेत्र में काशी का कल्प है। बिहुंसती पतित पावनी उत्तर वाहिनी गंगा की कलकल नाद, नित्य संगीतमय भोर व शाम का भेद मिटा देती है। कवि की कलम से,गीतकारों के छंद से और भक्तों के द्वंद्व से काशी की कल्पना सदा संस्मरण में अलौकिक शक्ति बन कर उभरती रही।
जो नहीं मानते उनके प्रारब्ध में ज्योतिष का लाभ नहीं : मुकेश महान
स्थानीय श्रद्धालु कृपा शंकर तथा पद्म शिवाकांत ने काशी स्नेह को गुरुत्वर माना है। वे कहते थकते नहीं हैं कि “काशी गुरूओं” का है अतः आम बोल-चाल की संबोधन शब्दांजलि भी” का गुरु “यथेष्ट है।

प्रचलित है कि सूर्योदय के बाद से ही भोलेनाथ का काशी भ्रमण गुरु स्वरूप में संध्या श्रृंगार से पहले तक रहता है लेकिन तत्काल राज राजसी हो जाता है जो भक्तों को अलौकिक सुख देता है। विश्वेश का गर्भ गृह विषेश चार उपादान का है, जो तांत्रिक विधि क्रियाओं के लिए सूक्ष्म हैं। शांति द्वार, नैसर्गिक कला, प्रतिष्ठा और निवति द्वार से सूक्ष्मदर्शी लाभ अर्जित किये जा सकते हैं, जो शैली की भिन्नता के लिए विश्व
विख्यात माने गये हैं। गौरतलब है कि गर्भगृह का गुंबद भी श्रीयंत्र से आच्छादित है और बाबा का जल धरी रूपी लिंग ईशान कोण में ही विराजित भी हैं। कितने मर्मज्ञ शिवात्माओं ने अपने आराध्य देव को काशी में ही स्थापित किया होगा। राजराजेश्वरी के साथ अपने भक्तों को नियमित सानिध्य देने वाले भोलेनाथ की जब श्रृंगार की रस्म अदायगी होती है तो अन्य देवी-देवता की प्रतिमाओं को पश्चिमाभिमुख होना पड़ता है। इस रहस्यमयी तथ्य को संकेत से ही जाना जा सकता है।


बाबा अर्धनारीश्वर स्वरूप में यहां बिराजित हैं, इसलिए दहिन भाग शक्ति स्वरूपा सर्वमंगला हैं और साक्षात महादेव दिव्यभाल हैं। इस हेतु “भगवानशिव के त्रिशूल ” का साक्षी इसे माना जाता है। श्रद्धा व संकल्प के साथ भक्त देवाधिदेव महादेव की आराधना करते समय माता अन्नपूर्णा को भी स्मरण करते हैं। .ओम जय शिवम।