मकर संक्रांति पर विशेष
पवन कुमार शास्त्री
सभी पर्व-त्यौहारों का अलग अलग विधान है और हर विधान का अपना अलग अलग महत्व होता है। मकर संक्रांति का भी अपना एक अलग ही महत्व है। भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसके बाद गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए।
मन्त्र- 1.ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:।
2. ऋड्मण्डलाय नम:, ऊं सवित्रे नम:, ऊं वरुणाय नम:, ऊं
सप्तसप्त्ये नम:, ऊं मार्तण्डाय नम:, ऊं विष्णवे नम:। पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बनी सामग्रियों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद ज्यादा से ज्यादा प्रसाद बांटे जाने चाहिए। घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल की बनी सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है। इसके साथ ही मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।