प्रकाशन संस्था मैगबुक की ओर से शंभु सुमन द्वारा प्रकाशित बिहार के वरिष्ठ पत्रकार श्रवण कुमार लिखित पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा… कल्पना पर आधारित एक दस्ताबेज की मुकेश महान द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा यहां प्रस्तुत है।
पुस्तक समीक्षा- पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा… कल्पना पर आधारित एक दस्ताबेज महज एक पुस्तक नहीं है। बल्कि एक इतिहास भी है। सरकार और नक्सली गठजोर और कुछ वामदलों द्वारा नक्सलियों को दिये गए प्रश्रय की पोल भी खोलता है। पुस्तक में पुस्तक के काल्पनिक होने की घोषणा की गई है। लेकिन घटनाओं की तिथियां और तमाम आंकड़े बिल्कुल सही हैं, जो इसे दस्तावेजी शक्ल प्रदान करते हैं। कहानी की शक्ल प्रदान करने के लिए किशोरावस्था की एक कसक भरी अनकही और असफल प्रेम का तानाबाना भी गूंथा गया इसमें। वहीं एक परिपक्व और सफल प्रेमकहानी भी पुस्तक का हिस्सा है। नकस्लियों से लड़ने, उन्हें मारने की प्रशासनिक विवशता की जगह यह पुस्तक उन्हें पुनर्वासित करने और मुख्य धारा से जोड़ने के लिए ओपेन जेल का एक सुंदर सा विकल्प भी देता है। इस पुस्तक में कई प्रपंचों की परतें खुलती हैं, जैसे यह भी कि कैसे एक नेता एक आम, गरीब और बेवश युवा (जिन्हें बंदुक थामने तक नहीं आता है) के हाथों में बंदुक थमा, कर फोटो खिंचवा कर और मीडया को देकर नक्सली बना देता है और यह भय भी पैदा करता है कि यहां से बाहर निकलते ही ठाकुर और प्रशासन मिलकर उसका खात्मा कर देंगे। डरा हुआ वह युवा बेवजह अपनी जान बचाये रखने के लिए दस्ते का ही होकर रह जाता है।
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पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा… कल्पना पर आधारित एक दस्ताबेज जैसी किताबें लिखना सब लेखकों के वश की बात नहीं है, ऐसी पुस्तकें सिर्फ श्रवण कुमार जैसे जिद्दी, जुनूनी जज्बाती, निडर,निर्भिक और साहसी पत्रकार ही लिख सकते हैं। इस साहस के लिए तो श्रवण कुमार विशेष रुप से बधाई के पात्र हैं और प्रशंसनीय भी।
पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा… कल्पना पर आधारित एक दस्ताबेज ने लेखक की लेखकीय दक्षता और लेखन कौशल भी सिद्ध किया है। इस पुस्तक को पढ़ते समय पाठक कहीं अतीत में खो सा जाता है। वो पुराने लोग जिन्होंने इन स्थितियों को देखा-पढ़ा-सुना या झेला है उनकी आंखों के सामने तो पुरानी फिल्मों की तरह एक बारगी इसके सारे दृश्य घुम जाते हैं। लिखने की शैली भी अद्भूत, ऐसा जैसे लगता है कि हर दृश्य और घटना का चश्मदीद गवाह खुद लेखक रहे हों।
वो कॉमरेड स्स्स्सा…लेखक की सफलता यह भी है कि उसने कल्पना की आड़ में सच को भी बड़ी ही चतुराई से पाठकों के सामने बड़ी सहजता और सरलता से परोस दिया है। सच और कल्पना की इस घालमेल में आज की पीढ़ी भले ही उलझ सकती है लेकिन 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक और 21वीं शताब्दी के पहले दशक की पीढ़ी को सच और कल्पना के इस घालमेल को सुलझाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कुल मिला कर यह पुस्तक न केवल पठनीय है बल्कि संग्रहनीय भी। कोई भी इसे पढ़ कर लाभान्वित हो सकता है।
पुस्तक का नाम- वो कॉमरेड स्स्स्सा… लेेखक का नाम- श्रवण कुमार । प्रकाशक का नाम – मैगबुक । कुल पृष्ठ संख्या- 184 . कीमत -रू 360मात्र । समीक्षक का नाम- मुकेश महान ।