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संभव है डिप्रेशन का ईलाज

मानसिक अवसाद इंसान के मन की एक ऐसी स्थिति है जो कभी-कभी उसे आत्महत्या की हद तक ले जाता है। वैसे भी कोविड-19 की भयावहता आम लोगों में असुरक्षा की भावना को बढा चुका है। लॉकडाउन के प्रभाव ने किसी न किसी रुप में अधिकतर लोगों में डिप्रेशन या डिप्रेशन जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि पिछले एक साल में या कोरोना काल में अबतक 7.5 प्रतिशत भारतीय आबादी किसी न किसी मानसिक समस्या से पीड़ित हुई है। एक आंकङे के मुताबिक इंडिया में 56 करोङ लोग मानसिक अवसाद से गुजर रहें हैं। कारण कई हैं। दुनिया की बात करें तो अवसाद की वजह से 36.6 फीसदी मौतें आत्महत्या के रूप में देखने को मिल रही हैं। इंडियन जर्नल ऑफ़ साइक्रेट्री के मुताबिक़ यूनिपोलर डिप्रेशिव के केसेज भी बढ रहें हैं। जर्नल के शोध के हिसाब से अवसाद के ग्राफ पुरूषों के मुक़ाबले महिलाओं में कोरोना काल के बाद से ज्यादा बढे हैं। वर्ष 2019 के आखिर तक पुरूषों में डिप्रेशन का दर 1.9 फीसदी व महिलाओं में 3.2 प्रतिशत डिप्रेशन था जो अब बढ चुका है। वर्तमान समय में यह आंकड़ा बढकर पुरूषों में 5.8 फ़ीसद व महिलाओं में तेजी से बढकर 9.5 प्रतिशत हो चुका है। खास बात है कि जब कोई व्यक्ति अवसाद की जद में जा रहा होता है तो उसमें शारीरिक और मानसिक लक्षणों का पता खुद रोगी को ही नहीं चल पाता है।
लेकिन अगर इंसान चाहे तो वह अवसाद के लक्षणों को पकड़ सकता है, समझ सकता है। मानसिक अवसाद का पहला लक्षण शारीरिक रूप से व्यक्ति असहाय महसूस करने लगता है।वह नींद और भूख से कोसों दूर चला जाता है। शरीर में पहले वाली ऊर्जा नहीं होती। बिना काम के थकान और बदन में दर्द हर वक्त महसूस होता रहता है। कुछ मामलों में व्यक्ति अपने वजन को भी नियंत्रित नही रख पाता।
जब आप किसी कारण से अवसाद से ग्रसित होते हैं तो आपका कंसंट्रेशन खत्म होने लगता है या कम होने लगता है। ध्यान में कमी और निर्णय लेने की क्षमता सबसे पहले प्रभावित होती है। किसी भी काम को करने में जी नही लगता और न ही एकाग्रता रख पाते हैं। बार-बार मूड स्विंग करता है। जिसका प्रभाव बदलता रहता है। यह मंजर उदासी से घोर उदासी की ओर बदल जाता है, इसका पता रोगी नही लगा पाता। आत्महत्या के विचारों को अपनाने की ललक मरीज बढा लेता है। अकारण रोना, चिङचिङापन, बैचैनी, घबराहट कुछ इस कदर बढने लगता है कि व्यक्ति खुद को सबसे अलग-थलग कर लेता है। बार-बार अनेकानेक विचारों का इतना बार आना-जाना होता है की इंसान अपने दैनिक क्रियाकलापों को भी छोङ देता है।
सबसे अच्छी बात यह है कि आज के समय में डिप्रेशन लाइलाज नही रह गया है। जरूरत है कि समय पर रोगी को मनोचिकित्सकीय उपचार मिल सके। काउंसलिंग की उपयोगिता डिप्रेशन में बहुत हद तक बढा है। इसका एक कारण है कि लोग अब अधिक दवा नही खाना चाहते। किसी भी हालत में बगैर चिकित्सीय परामर्श के मेडिसिन नहीं छोङनी चाहिए

डॉ॰ मनोज कुमार (लेखक जाने-माने मनोचिकित्सक हैं