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विद्यापति नेमिथिला संस्कृति को विश्वपटल पर पहचान दिलायी:राजीव रंजन प्रसाद


बैंगलूरू। ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस (जीकेसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कायस्थ रत्न राजीव रंजन प्रसाद ने मिथिला की संस्कृति को श्रेष्ठत्म संस्कृतियों में एक बताया और कहा कि महाकवि विद्यापति मिथिला के ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की विभूति हैं और उन्होंने मैथिली भाषा को ऊंचाई प्रदान कर मैथिल संस्कृति को विश्वपटल पर नई पहचान दिलायी।
अखिल भारतीय एकता मंच के सौजन्य से आयोजित विश्वस्तरीय विद्यापति महापर्व समारोह में जीकेसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने अतिविशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की। इस अवसर पर अखिल भारतीय एकता मंच की ओर से राजीव रंजन को फूल-बुके, शॉल, पगड़ी (पेटा) और मेमेंटो और इलायची का माला देकर उनका स्वागत भी मौके पर राजीव रंजन ने कहा कि विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली भाषा के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। महाकवि विद्यापति मिथिला की संस्कृति की पहचान हैं। उन्होंने न केवल मैथिली भाषा को ऊंचाई प्रदान की बल्कि मैथिल संस्कृति को भी नई पहचान दी। उन्होंने उत्तरी बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महती प्रयास किया है। विद्यापति भारतीय साहित्य की ‘शृंगार-परम्परा’ के साथ-साथ ‘भक्ति-परम्परा’ के प्रमुख स्तंभों मे से एक थे। वह मैथिली भाषा के सर्वोच्च कवि हैं। इसलिए इन्हें मैथिल कोकिल की संज्ञा दी गई है। हम सभी को मिथिला और मैथिली के विकास के लिये एक जुट होकर कार्य करने की जरूरत है।
इस अवसर पर आनंद सिन्हा, डा. मानवेन्द्र कुमार, पूजा चन्द्रा, रूपेश चन्द्रा, प्रशांत कुमार, विनीत सक्सेना, अपूर्व प्रसाद, संजय सिन्हा, आकाश सिन्हा, शैलेन्द्र सिन्हा, हर्ष और निश्चय समेत कई अन्य भी मौजूद थे।