पटना। लहरों से डर कर कभी नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इस पंक्ति को हकीकत में बदल दिया है बिहार के मशरूम मैन संजीव कुमार ने। बिहार की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आधारित है।फिर भी मशरुम कैश क्रॉप से बिहार दूर ही रहा। तब आज के मशरूम मैन संजीव कुमार बीआईटी सिंदरी से इंजीनियरिंग पास कर वापस बिहार लौटे थे। और न केवल खुद से मशरूम की खेती की शुरुआत की बल्की हजारों दूसरों लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। बिहार में मशरुम की खेती पर इनसे लंबी बातचीत की मुकेश कुमार सिन्हा ने। प्रसतुत है उसके प्रमुख अंश—
–आप नालंदा के छोटे से गांव बिन्द के मोहद्दीपुर से हैं। इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढाई है,फिर मशरुम की खेती को ही आपने क्यों चुना ?
अगर परंपरागत काम ही करने होते तो इतनी पढ़ाई की जरुरत ही कहां थी। मैं तो वैसे भी किसान घराने से रहा हूं। बिना इतनी पढ़ाई के भी सीधे परंपरागत खेती शुरु कर सकता था।
–लेकिन आपकी पढ़ाई इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग की है और फिर खेती… वो भी मशरुम की, कुछ अटपटा नहीं लगता।
– हां अटपटा तो है, लेकिन शायद ये ही मेरा प्रारब्ध था।पढ़ाई तो मैंने पूरी कर ली थी।इसी दौरान मेरे मन में इच्छा जागी कि जो कुछ भी करना है नया ही करना है।जब गांव लौट कर आया तो लगा कि गांव वालों के लिए ही कुछ किया जाए। बस नया करने की धुन और गांव वालों के लिए कुछ करने मानसिक आग्रह कब मुझे मशरूम से जोड़ दिया यह मुझे भी पता नहीं चला। और परिणाम को तो आप देख ही रहे हैं।
– तो क्या आज मशरुम की खेती में बिहार की स्थिति को संतोषजनक मानते हैं आप ?
– नहीं,कतई नहीं।बिहार में क्या देशभर में मशरूम की खेती को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है।मशरूम ऐसी सब्जी है, जिससे अभी भी कई लोग अनजान हैं।फिर उत्पादन की स्थिति संतोषजनक कैसे हो सकती है। लेकिन मुझे विश्वास है कि जल्द ही हम संतोषजनक स्थिति तक पहुंचेंगे।
-इस विश्वास का कारण ?
सामान्य बात है कि वर्ष 2000 में जब हमने बिहार में खेती की शुरुआत की थी तब इस खेती को यहां कोई नहीं जानता था। बड़े स्केल में तो छोड़ दीजिए छोटे स्तर पर भी कोई इसकी खेती करने को तैयार नहीं था। आज आप देख रहे हैं, ब्लाक स्तर पर भी बाजार में सब्जी के लिए मशरुम मिल जा रहा है।ये हमारी उपलब्धि है। हम आगे भी काम कर रहे हैं और परिणाम इससे भी बेहतर लेंगे।
-शुरुआत में तैयारी कैसे की आपने?
-महज किताबों का अध्ययन कर मैंने मशरूम की खेती शुरू कर दी थी। दरअसल यह पूरी तरह से टेक्निकल खेती है। परम्परागत खेती से किसानों को भरपूर आय नहीं हो पाती थी। इसी के मद्दे नजर शुरू में काफी आलोचनाएं मुझे झेलनी पड़ी थी लेकिन अब सब ठीक है। अब आलोचना की जगह लोग सम्मान देते हैं। सच ये है कि हम 100 स्क्वायर फ़ीट जमीन में 2500 की लागत से मशरूम की खेती करें तो 3000 रुपये की शुद्ध आय हो सकती है, वो भी महज एक महीने के अंदर। इस बात को अब बिहार के लोग समछने लगे हैं।
अब तक आपने कितने लोगों को इस खेती के लिए प्रशिक्षित किया है ?
-बिहार के 25 हज़ार से ज्यादा लोगों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दे चुका हूं। इनमें 15 हज़ार लोग मशरूम की नियमित खेती कर रहे हैं। पहले तो लोगों ने उत्साह नहीं दिखाया पर जब मशरूम का बीज लगाकर टेक्निकल पैकेट बना कर लोगों को दिया,तब जाकर लोगों को मशरूम में रुचि जगने लगी। शुरुआत में 50 किसान संजीव कुमार के साथ जुड़ें। संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी। ।झारखण्ड के आदिवासी इलाके से लेकर, बेतिया, मोतिहारी सहित बिहार के हर जिले में मशरूम की खेती मेरे देख रेख में हो रही है। मेरे ही देख रेख में रांची में ढ़ाई एकड़ जमीन में एक मशरूम प्रोडक्ट के लिए प्लांट शुरू किया गया, जिसमें आर्टिफिशियल वातावरण बना कर मशरूम की खेती शुरू की गई है। यहां हर दिन 1200 किलोग्राम मशरूम तैयारी की जा रही है। उम्मीद है फरवरी 2021 से यह आंकड़ा 2500 किलो प्रतिदिन हो जाएगा।
…और बीज कहां से मिलता है किसानों को पहले तो बीज मैं ही बाहर से मंगवा कर लोगों को देता था । लेकिन अब मैंने अपने गांव नालंदा में बीज उत्पादन के लिए बिहार का सबसे बढ़िया और अत्याधुनिक प्रयोगशाला बनाया है। जहां हर दिन 500 किलो उच्च गुणवत्ता वाले मशरूम के बीज का उत्पादन होता है।