पटना। डॉ. बी. भट्टाचार्य होम्योपैथ के प्रख्यात चिकित्सक। लगातार पटना में काम करते हुए जिन्होंने दुनिया भर प्रसिद्धि पाई। अपने स्वभाव,शोध काम और व्यवहार से जिन्हें कोई बिहार का हैनिमैन कहता तो कोई आधुनिक होम्योपैथ का चरक कहकर अपना सम्मान दर्शाता। सच में एक ऐसा चिकित्सक जो संन्यासी के रूप में मरीजों की लगातार सेवा की, अब इस संसार को अलविदा कह कर चले गए। 8मई 2022 की सुबह 99 वर्ष की उम्र में वो अनन्तलोक के लिए महाप्रयाण कर गए।
डॉ. बी. भट्टाचार्य खुद तो चीर निद्रा में हमेशा के लिए खो गए लेकिन अपने पीछे छोड़ गए कभी न मिटने वाली खुद की तराशी गयी कुछ लकीरें। कहा जाता है कि पटना में 1950 के दशक में बिना फीस की उन्होंने चिकित्सीय सेवा की शुरुआत की थी। फिर 1951 एक पैसे फीस लेना शुरु किया। तब हथुआ मार्केट के पास बारी पथ में वो प्रैक्टिस करते थे।
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फिर 71 साल की उनकी चिकित्सकीय यात्रा में उनकी फीस बढ़ते-बढ़ते तीन हजार रू तक पहुंच गई। यहां रेखांकित करने वाली बात यह भी है कि एलोपैथ के कई बड़े और विशेषज्ञ चिकित्सकों की फीस हजार से डेढ हजार रू के बीच ही है।
उनकी दिनचर्या भी कुछ खास ही होती थी। जबतक वो स्वस्थ्य थे, सुबह 5 बजे क्लिनिक में बैठते और रात 11 बजे तक मरीज देखते रहते थे। सन 1972 में वे पटना के पटेल नगर तब आये जब उनके घर के चारो ओर सिर्फ धान की खेती होती थी। पटेल नगर का यह इलाका भी डॉ बी भट्टाचार्या के नाम से जाना जाने लगा। बिहार ही नहीं, दूसरे सूदूरवर्ती इलाकों और दूसरे राज्यों से भी लोग कई असाध्य माने जाने वाले रोगों के इलाज के लिए उनके पास आते थे। यह सिलसिला 2021 तक चलता रहा। अपॉइंटमेंट की लाइन और कतार इतनी बड़ी होती थी कि कहा जाता है। रात 2 बजे से ही मरीज या परिजन अपने नाम की ईंट लगाकर अपने समय का इंतज़ार करते रहते थे।
इनका लिबास भी कुछ अलग ही हुआ करता था। गेरुआ रंग का कुर्ता और लुंगी इनका मुख्य पहनावा हुआ करता था। गले में रूद्राक्ष की माला के साथ इनके लंबे बाल और लंबी दाढ़ी इनकी खास पहचान बन चुकी थी। मां काली पर इन्हें अटूट भरोसा भी था। उन्होंने होम्योपैथ की कलकत्ता से ली थी। लेकिन कर्म स्थान उनका पटना, बिहार ही रहा। उनके मरीजों में गरीब से गरीब लोग भी हुआ करते थे तो बिहार के मुख्यमंत्री भी। कहा जाता है कि बिहार में घर-घर होम्योपैथ को पहुंचाने और उस पर भरोसा जताने में डा. बी भट्टाचार्य की महती भूमिका रही। होम्योपैथी के प्रति समर्पण और लगाव के कारण अखबार और टीवी देखने का कभी समय भी इन्हें नहीं मिल पाता था।