आज अपनी ही 20वीं पुण्यतिथि पर हम सबको फिर रुला गये बाबूजी। 29 दिसंबर, 2022 बाबूजी (स्वर्गीय गौरीकान्त चौधरी 'कान्त') की 20वीं पुण्यतिथि है...
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संस्मरण : …और फिर रुला गये बाबूजी – लक्ष्मीकांत सजल

आज अपनी ही 20वीं पुण्यतिथि पर हम सबको फिर रुला गये बाबूजी। आज (29 दिसंबर, 2022) बाबूजी (स्वर्गीय गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’) की 20वीं पुण्यतिथि थी। समस्तीपुर जिले के अपने गांव नीरपुर-मुजौना में श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन उनकी कांस्य प्रतिमास्थल पर समारोहपूर्वक संपन्न हुआ। उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए गांव के हर तबके और हर आयु वर्ग के लोग आये थे। श्रद्धांजलि के दौरान लोग उनसे जुड़े अपने संस्मरण भी साझा कर रहे थे। उनमें पूसा प्रखंड के उपप्रमुख गिरीश कुमार झा एवं नीरपुर पंचायत के पूर्व मुखिया उपेंद्र पाठक भी थे। हर किसी के संस्मरण पर मेरी आंखें बरबस भर जाया करतीं थीं। जब आंसू रुकने का नाम नहीं लेते, तो मैं लोगों के बीच से उठ जाया करता।

 बाबूजी की पुण्यतिथि की तैयारी में मैं महीने भर से लगा था। 18 दिसंबर, 2022 को उनकी प्रतिमा पर दूसरी बार पेंट चढ़ा। पेंट मूर्तिकार सुभाष जी ने बनाया था। प्रतिमा पर पेंट चढ़ाने के लिए विशेषज्ञ कलाकार भी उन्होंने ही दिया था, जिन्हें लेकर उस दिन सबेरे पटना से मैं अपने गांव आया था। रात के दूसरे पहर में मैं उन्हें वापस पटना पहुंचाया था। फिर 26 दिसंबर, 2022 को सबेरे गांव आ गया। पुण्यतिथि समारोह की तैयारियों के लिए। साथ में पत्नी ममता सजल थीं।तीन दिनों तक प्रतिमास्थल की साफ-सफाई हुई। पुण्यतिथि के एक दिन पहले प्रतिमास्थल को फूलों से सजाया जाना शुरू हुआ। गेंदा, गुलाब और रजनीगंधा से प्रतिमास्थल की सजावट में अगले दिन पुण्यतिथि समारोह आयोजित होने के ठीक पहले तक तीन सजावटकर्ता लगे रहे।

 बाबूजी आकाशवाणी पटना से प्रसारित होने वाले लोकप्रिय कार्यक्रम ‘चौपाल’ में मुखियाजी थे। आवाज की दुनिया में वे कमांडिंग टोन के जादूगर के रूप में जाने जाते थे। वह साठ का दशक था। बिहार, उनकी आवाज के जादू का दीवाना था। वह जिधर भी जाया करते थे, एक झलक पाने के लिए उधर ही उनके चाहने वालों की भीड़ उमड़ जाया करती थी।

 उनका जन्म तीन जनवरी, 1937 को एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। पिता कपिलेश्वर चौधरी किसान थे। उनके दो बेटे और तीन बेटियों में बाबूजी (गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’) सबसे बड़े थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पितौझिया प्रारंभिक विद्यालय में हुई। कर्पूरीग्राम का ही नाम पहले पितौझिया था। तब, जननायक कर्पूरी ठाकुर भी उस विद्यालय में शिक्षक थे। बाबूजी की हाई स्कूल की पढ़ाई ताजपुर हाई स्कूल से हुई। उसके बाद एमए तक की पढ़ाई बिहार विश्वविद्यालय से हुई। एमए (हिंदी) में उन्हें गोल्ड मेडल मिला था। छात्र जीवन से ही उनकी साहित्य और संस्कृति में गहरी अभिरुचि थी। यही वजह रही छात्र जीवन से ही वे साहित्यकारों के संपर्क में आ गये। कवि सम्मेलनों में जाने लगे। अपने गांव में नाटक मंडली तैयार की। छठ में नाटक खेले जाने लगे। उन दिनों उनका लिखा नाटक ‘कालिदास’ पूसा में मंचित होकर सम्पूर्ण बिहार में खेला जाने लगा था। एमए के बाद वे क्रमशः अपने गांव के जनता हाई स्कूल (चंदौली) एवं पटना के मिलर स्कूल सहित समस्तीपुर जिले के गंगापुर हाई स्कूल में शिक्षक रहे।

 वर्ष 1964 के जनवरी में वे आकाशवाणी की सेवा में आकाशवाणी, पटना में गये। उसके सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम ‘चौपाल’ के मुखियाजी बन कर। और, देखते ही देखते आवाज की दुनिया में घटा की तरह छा गये। वह रेडियो का जमाना था। तब, आवाज की दुनिया का ग्लैमर हर किसी के दिल -ओ -दिमाग पर छाया हुआ था। उस समय रेडियो रखना हर किसी के वश की बात भी नहीं थी। जिनके घर रेडियो होता था, समाज उन्हें इज्जत की निगाह से देखता था। घरों की पहचान भी रेडियो से हुआ करती थी। रेडियो वाले घर के नाम से। गांवों में तो जिनके घर रेडियो होता था, उस दरवाजे पर शाम को ‘चौपाल’ सुनने के लिए पूरा गांव उमड़ता था।

  ‘चौपाल’ में गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ की आवाज बिहार ही नहीं, बिहार के बाहर भी घर-घर सुनी जाने लगी। उनके लिखे रेडियो नाटक और संगीत रूपक आवाज की दुनिया को नया अंदाज देते रहे। उसका श्रोताओं को बेसब्री से इंतजार रहता। रेडियो के लिए उन्होंने तीन सौ से अधिक रूपक और नाटक लिखे। आवाज के साथ ही साहित्य की दुनिया में उनकी विशिष्ट पहचान रही। सत्तर के दशक में आया उनका मैथिली कविता संग्रह ‘चानन’ दो दशक तक मगध विश्वविद्यालय में इंटरमीडिएट पाठ्यक्रम में रहा। सत्तर के दशक के अंत में हिंदी में उनका आंचलिक उपन्यास ‘ताईचुंग बोल उठा’ आया। यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने कहा था कि ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ के बाद फिल्माया जाने योग्य यह तीसरा आंचलिक उपन्यास है।

  ‘ताईचुंग बोल उठा’ में नीरपुर, मुजौना, ताल दसराहा, गरुआर, चंदौली, भेरोखरा, पितौझिया, ताजपुर, पूसा और समस्तीपुर सहित आसपास के गांवों का जीवंत वर्णन है। बाबूजी का मैथिली कथा संग्रह ‘पानक पात’ प्रेम कथाओं का संग्रह है, जिसने मैथिली कथा साहित्य को प्रेम का पुट दिया है। उनके शास्त्रीय मैथिली गीतों का संग्रह ‘वंशी क्यो टेरय’ के गीत आज भी गूंजा करते हैं। मैथिली में उनका एक महाकाव्य भी है ‘विश्वामित्र’। हरिवंश राय बच्चन की अमरकृति ‘मधुशाला’ का उन्होंने मैथिली में अनुवाद भी किया।

 तीन दशक से भी अधिक समय तक आवाज की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम रखने के बाद जब उन्होंने आकाशवाणी की सेवा से अवकाशप्राप्त किया, तो राज्य सरकार ने उन्हें मैथिली अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया। उस पद पर रहते हुए वे 29 दिसंबर, 2001 को इस दुनिया से विदा हो गये। भारत सरकार के साहित्य अकादमी ने पुस्तकाकार रूप में उनकी जीवनी प्रकाशित की है। पुस्तक का नाम है- गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ मुखियाजी।

उनकी स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए मैंने अपने पैतृक गांव नीरपुर-मुजौना में उनकी कांस्य प्रतिमा लगायी है। जिस स्थान पर उनकी प्रतिमा लगी है, उसी स्थान पर उनकी अंत्येष्टि हुई थी। अंत्येष्टि स्थल का चयन वे जीते-जी कर गये थे। दरअसल, मेरे परिवार में अंत्येष्टि की परंपरा बेगूसराय जिले के सिमरिया में गंगा तट पर है, लेकिन बाबूजी अपने लिए अंत्येष्टि स्थल का चयन जीते-जी करते हुए कह गये थे कि उनका अंतिम संस्कार उनके पिता द्वारा खरीदी गयी भूमि पर होनी चाहिये। उस स्थल पर लगी उनकी प्रतिमा जानेमाने मूर्तिकार नन्दकिशोर यादव ने बनायी है। प्रतिमा का अनावरण उनकी 19वीं पुण्यतिथि (29 दिसंबर, 2021) को एक भव्य समारोह में हुआ था।

  तो, बात चल रही थी बाबूजी की 20वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह की। तैयारियों में घर-परिवार के सभी सदस्यों की सक्रिय सहभागिता रही। इनमें बाले भाई (बालेश्वर झा), सुवंश झा, छोटे भाई अमरजी (रजनीकांत चौधरी), मणिकांत चौधरी, कालू (रतिकांत चौधरी), भतीजा गोलू (वैभव पारिजात), सोलू (उत्पलकांत चौधरी), रवि (रविराज चौधरी), अंशु (ऋषिराज चौधरी), भतीजी श्यामली, कोमल, स्नेहा और पोता विक्की बाबू (गौरव झा) खास तौर पर शामिल हैं। साथ में अपनी सभी भावज (विनीता चौधरी, मीणा कुमारी, रेखा कुमारी) का आभार। लेकिन, सबसे ज्यादा अपने नन्हे हाथों में लड्डू लेकर मचलने वाले बच्चों का आभार, जो हमारे टोले-गांव के भविष्य हैं।

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.