आरक्षण मामले में एकजुटता नहीं। आरक्षण बोतल का एक ऐसा जिन्न है, जिसे राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए निकालकर इस्तेमाल करते रहते हैं। यह एक ऐसा
विमर्श

आरक्षण मामले में राजनीतिक दलों में गैर आरक्षित वर्ग एकजुट नहीं

पटना, जितेन्द्र कुमार सिन्हा। आरक्षण मामले में एकजुटता नहीं। आरक्षण बोतल का एक ऐसा जिन्न है, जिसे राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए निकालकर इस्तेमाल करते रहते हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसके नुकसान फायदे के बारे में राजनीतिक दलों द्वारा कभी विचार नहीं किया जाता है। विशेषकर देश और समाज को होने वाले नुकसान की, किसी भी दलों को चिंता नहीं है।

 सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर, आरक्षण के मुद्दे पर मुहर लगा कर, राजनीतिक दलों का रास्ता और आसान कर दिया है। सभी राजनीतिक दलों के लिए यह हॉट केक की तरह काम करने लगा है। किसी भी राजनीतिक दलों को इससे परहेज नहीं है। आरक्षण के विरुद्ध तो दूर क्रीमी लेयर के खिलाफ भी बोलने की साहस नहीं है।

 आरक्षण ने देश को दो हिस्सों में बाँट दिया है। आरक्षित और गैर आरक्षित। गैर आरक्षित वर्ग इसे अपने साथ अन्याय मानता है, किन्तु एक जुट नहीं रहने के कारण राजनीतिक दलों द्वारा बहुसंख्यक गैर आरक्षित आबादी की परवाह नहीं करती है, गैर आरक्षित बहुसंख्यक स्वार्थ में, आरक्षण के मुद्दे से राजनीतिक दल इतना घबराते हैं, जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आरक्षण का फायदा सही मायने में आरक्षित वर्ग को कितना हो रहा है, इसका आकलन कभी नहीं कराया गया है।

आरक्षण मामले में देखा जाय तो आरक्षण व्यवस्था लागू होने के बाद से, यह संवैधानिक लाभ, चुनिंदा लोगों के हाथ में सिमट कर रह गया है। यही वजह है कि देश में आज भी सीवरेज में गैस निकलने से, दलित वर्ग के मजदूरों की मौत की खबरें, आती रहती है।

दलित हो या जनजाति,अभी तक अपने परंपरागत पेशा से, जुड़े हुए हैं। आरक्षण के बावजूद, बड़े वर्ग समूहों की सामाजिक-आर्थिक हालत में, कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। आरक्षण के बल बूते अपने सामाजिक और आर्थिक हैसियत मजबूत करने वाले लाभार्थियों को, उन्हीं के वर्ग के लोगों को, वंचितों की चिंता नहीं है। आरक्षण का फायदा उठाकर आगे बढ़ चुका वर्ग, उस पर कुंडली मारे बैठा है। सही मायने में क्रीमी लेयर ही आरक्षण का दोहन कर रही है। जबकि दूसरे आरक्षित सिर्फ उन्हें ताकते रहने को मजबूर हैं। इस क्रीमी लेयर के खिलाफ बोलने का किसी राजनीतिक दलों में साहस मौजूद नहीं है।

देश में आज भी एक ऐसा बड़ा तबका मौजूद है, जिसके पास आरक्षण का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। कारण साफ है कि आरक्षण का लाभ लेकर अपनी स्थिति को मजबूत कर चुके लाभार्थियों से उनका मुकाबला कमजोर पर रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि आरक्षण से सरकारी नौकरी में, गिनती के लोगों को ही लाभ मिलने के अलावा, आरक्षण वर्ग की स्थिति में, खास बदलाव नहीं हुआ है।

देश में दलित और आदिवासी इलाका आज भी आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल जैसी सुविधाएं उनके क्षेत्रों में आसानी से मयस्सर नहीं होता है। सरकार ने आरक्षण देकर यह मान लिया है कि अब इन वर्गों का विकास अपने आप हो जायेगा। ये देश और समाज की मुख्यधारा में आ जाएंगे। इनके लिए अलग से विकास के प्रयास नहीं किये गये है। यही वजह है कि दलित और जनजातीय समुदाय अभी तक कई कुरीतियों और सामाजिक बुराइयों से मुक्त नहीं हो सका है। इतना ही नहीं आरक्षण का लाभ ले कर सत्ता का स्वाद चखने वाले नेताओं को भी इसकी चिंता नहीं है।

आरक्षण मामले में सवाल यह उठता है कि आरक्षण की एक नई कैटेगरी (ईडब्ल्यूएस) से किसका भला होगा? आर्थिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का साफ संदेश यही है कि सरकार आर्थिक विषमता की खाई पाटने में नाकाम रही है। गरीबी हटाने की बात सिर्फ चुनावी वादा बन कर रह गई है। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी बेरोजगार है। आर्थिक आरक्षण के खिलाफ तमिलनाडू की डीएमके  सरकार ने विरोध जताया है। इसमें डीएमके के अपने राजनीतिक निहितार्थ है। डीएमके का आरक्षण का यह मसला भी हिन्दी भाषा के विरोध की तरह है। जिससे सीधा वोट बैंक प्रभावित होता है।

यह अलग बात है कि देश के दूसरे नेताओं की तरह मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की पार्टी ने कभी आरक्षण में, कभी क्रीमी लेयर का कभी विरोध नहीं किया। हालांकि अदालत के इस फैसले के बाद कांग्रेस नेता उदित राज का बयान भी कुछ ऐसा ही है। दलितों में अपनी छवि, हितैषी की बनाए रखना, अन्यथा कांग्रेस ने आर्थिक आधार पर मिले आरक्षण का अन्य दलों की तरह ही समर्थन किया है।

 सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में अलग-अलग जजों ने अपनी-अपनी राय रखी है। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा है कि डॉक्टर अंबेडकर का विचार था कि आरक्षण की व्यवस्था 10 साल रहे, लेकिन ये अब तक जारी है। समस्या का सही हल यही है कि उन चीजों को खत्म किया जाए, जिससे सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन आता है।

जितेंद्र कुमार सिन्हा
जितेन्द्र कुमार सिन्हा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.