हमारी विभूतियां : 31 जुलाई 1880 को बनारस के एक छोटे से गाँव मुंशी प्रेमचंद का जन्म लमही में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम धनपत राय था। उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट मास्टर थे। बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही संघर्ष में गुजरा। जब प्रेमचंद जी महज आठ वर्ष के थे तब, एक गंभीर बीमारी के कारण उनकी माता का देहांत हो गया।
बालक प्रेमचंद की प्रारम्भिक शिक्षा, सात साल की उम्र से, अपने ही गांव लमही के एक छोटे से मदरसा से शुरू हुई थी। मदरसा में रह कर, उन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू व थोडा बहुत अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया।
बड़ी कठिनाईयों से जैसे-तैसे मैट्रिक पास की थी। ऐसी ही कठिन परिस्थितियों में धीरे-धीरे उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढाया, और आगे स्नातक की पढ़ाई के लिए बनारस के एक कालेज में दाखिला लिया। 1919 में उन्होंने नौकरी के साथ-साथ बीए की परीक्षा पास की और शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर नियुक्त हुए।
पुराने रिवाजों के चलते पिताजी के दबाव मे आकर मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में उनका विवाह उनकी मर्जी के विरुद्ध एक ऐसी कन्या से हुआ जो, स्वभाव से बहुत ही झगड़ालू प्रवति की और बदसूरत भी थी। इसका जिक्र उन्होंने अपने पुस्तक में भी किया है। पहली पत्नी से तलाक के बाद 1905 ई. में इन्होंने बाल-विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया। शिवरानी देवी से इनका विवाह सफल रहा। इनकी पत्नी ने इनका कदम-दर-कदम सहयोग किया।
1922 ई. में ये काशी विद्यापीठ में स्कूल विभाग के हेड मास्टर नियुक्त हुए। उन्होंने नवाबराय के नाम से उर्दू में लेखन किया। परंतु बाद में वे प्रेमचंद के नाम से हिंदी में लिखने लगे। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया तथा अपना एक छापाखाना भी लगाया। 1936 ईस्वी में लखनऊ में हुई प्रथम ‘प्रगतिशील लेखक संघ‘ की बैठक की अध्यक्षता की।
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मुंशी प्रेमचंद ने अपनी लेखनी से हिंदी गद्य साहित्य, विशेषकर कथा साहित्य की श्रीवृद्धि की है। इनकी प्रमुख उपन्यास रचनाएं- सेवासदन, कायाकल्प, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला, गबन, प्रतिज्ञा, गोदान, मंगलसूत्र (अधूरा)। प्रसिद्ध कहानियां पंच परमेश्वर, नशा, कफन, पूस की रात, ठाकुर का कुआं, दो बैलों की कथा, दूध का दाम आदि है जो आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद हिंदी कहानियों को आधुनिक तथा यथार्थ रूप देने वाले कथाकार माने जाते हैं।
प्रेमचंद एक जागरूक साहित्यकार थे। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों से जुड़े पक्षों को अपनी कहानियों और उपन्यासों में उठाया है। प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य पर गांधीवादी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। उनके उपन्यासों विशेषकर कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रेमाश्रम आदि में गांधीवाद को ही समर्थन दिया गया है। मुंशी प्रेमचंद एक महान कथाकार के साथ-साथ एक अच्छे समाज सुधारक भी रहें है, उन्होंने अपनी रचनओं के माध्यम सामाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ था। 1980 में उनकी जन्मशताब्दी पर भारत सरकार के पोस्टल विभाग ने उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया था।