pre pregnancy : पोषण और जीवन शैली के असर सामान्य स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है इसके साथ-साथ प्रजनन सफलता और प्रजनन स्वास्थ्य पर भी इसका विशेष असर देखने को मिलता है। स्वास्थ्य पर आहार के प्रभाव और पुरानी बीमारियों के जोखिम का तो विस्तार से वर्णन मिल जाता है। लेकिन प्रजनन क्षमता पर आहार को लेकर अपेक्षाकृत कम शोध हुआ है। फिर भी यह स्पष्ट है कि अधिकांश पुरुष और महिलाएं वजन की परवाह किए बिना असंतुलित आहार लेते रहते हैं। इसका असर शुक्राणु और अंडाणु की गुणवत्ता पर प्रभाव को कम करता है। इंसुलिन प्रतिरोध में वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रतिपूरक हाइपरिन्सुलिनमिया होता है जो प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता है। यह इंसुलिन प्रतिरोध पुरुषों और महिलाओं दोनों में पुरानी बीमारी के जोखिम से भी जुड़ा है।
साफ है कि अगर कोई दम्पति बच्चा प्लान कर रहे हैं तो pre pregnancy उन्हें अपने आहार पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मोटापा बढ़ाने वाला आहार नहीं लेना चाहिए। संतुलित आहार जिसमें, न्यूट्रिशन और माइक्रो न्यूट्रिशन की संतुलित मात्रा जरूरी है, लेना चाहिए। इससे वजन तो कम रहेगा ही ही फर्टिलिटी हारमोन के असंतुलन की आशंका कम हो जाती है। पुरषों में वजन ज्यादा होने से शुगर की बीमारी होने से उनकी स्पर्म क्वालिटी और प्रजनन क्षमता कमजोर हो सकती है। इसी तरह महिलाओं मे वजन बढ़ जाने से अंडेदानी में अंडा कि विकास नहीं हो पाता है, फीमेल हार्मोंस सही मात्रा में रिलीज नहीं हो पाता और ओवेलेशन में समस्या आ सकती है। प्रजनन क्षमता में सुधार के लिए धूम्रपान को रोकना भी जरूरी है।
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जो कपल अपने लिए बच्चा प्लान कर रहे हैं, उनके pre pregnancy आहार में वसा की मात्रा संतुलित होनी चाहिए, असंतृप्त वसा की मात्रा अधिक होनी चाहिए, सामान्य भोजन, कच्चा फल, स्लाद, अंडा, और मछली नियमित रूप से उन्हें अपने भोजन में लेना चाहिए। मिठा और वसा सीमित मात्रा में ही होना चाहिए। अनाज और विशेष कर फाइबर युक्त अनाज का अधिक सेवन करना चाहिए।
कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ इंसुलिन प्रतिरोध को कम करके या इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाकर डिंब और शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। कम जीआरई के साथ जो ग्लाइसेमिक इंडेक्स हैं, इसमें लगभग सभी प्रकार के फलियां, डेयरी उत्पाद और फल शामिल हैं। नाश्ता, अनाज और चावल में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। शोध से यह साबित हो गया है कि शरीर के वजन में 5 प्रतिशत की कमी से भी पूरे शरीर में इंसुलिन संवेदनशीलता में तीन गुना अधिक सुधार होता है और साथ ही मासिक धर्म की अनियमितताओं में सुधार होता है और व्यक्ति को भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित बनाता है।
संतुलित तरीके से मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स सप्लीमेंट के साथ-साथ बेहतर गर्भावस्था के लिए और सबफर्टिलिटी की समस्या से बाहर आने और गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए मैक्रो और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जो आहार में मौजूद होने चाहिए, वे हैं फोलेट, आयरन, राइबोफ्लेविन, आयोडीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और फाइबर। इन पोषक तत्वों को हम साबुत अनाज के अंकुरित, पत्तेदार, हरी पत्तेदार सब्जी, आहार उत्पादों, और फलों आदि से भी प्राप्त कर सकते हैं।