सोनपुर मेले के मंच पर देश के प्रसिद्ध और चर्चित कवयित्री अनामिका जैन अम्बर को काव्य पाठ करने से रोक दिया गया।चर्चा है कि सरकार के किसी अधिकारी के निर्देश पर ऐसा किया गया है। सोनपुर मेले का यह मंच सरकारी मंच है। शायद इसीलिए अधिकारियों का यह निर्देश सहजता से मान लिया गया। … और अनामिका जैन अम्बर बिना काव्य पाठ किये वापस लौट गईं।अनामिका के पक्ष में और भी अतिथि कवि आ गए और वो कार्यक्रम का वहिष्कार करते हुए बिना काव्यपाठ किये वापस लौट गए।
यह बात ‘आई गई चली गई’ वाली नहीं। इस घटना से बिहार के आतिथ्य परंपरा पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठना लाजिमी इसलिए भी है क्योंकि ये सभी कवि आमंत्रित थे। अनामिका जैन अम्बर भी आमंत्रित थीं। फिर ऐसा क्यों हुआ। क्या बिहार की आतिथ्य परंपरा ऐसी ही है। पहले सम्मान से किसी को बुलाओ और फिर इस तरह अपमानित कर उसे वापस कर दो। मतलब किसी को भोज पर बुलाओ और उसे बगैर खिलाये-पिलाये वापस कर दो। अगर बिहार की परंपरा ऐसी नहीं रही है तो फिर ऐसा निर्देश क्यों जारी किया गया। क्या निभागीय मंत्री और बिहार सरकार की भी इसमें सहमती रही ,अगर नहीं तो सरकार क्या कर रही है। मंत्री क्या कर रहे हैं। इतनी बड़ी घटना पर सबकी चुप्पी क्यों है। किसी कार्रवाई की सुगबुगाहट क्यों नहीं देखी सुनी जा रही है।
अब इसके साइड इफेक्टस पर भी चर्चा समीचीन होगा। पहला साइड इफेक्ट्स तो ये हो सकता है कि बड़े -बड़े कवि और कवयित्री का बिहार के आयोजकों खासकर सरकारी आयोजनों से भरोसा उठ जाएगा। उन्हें ये डर या अंदेशा हमेशा बना रहेगा कि आमंत्रण या निमंत्रण के बाद भी बिहार में मंच पर जाने से कहीं उन्हें रोक न दिया जाए। यह संदेह की स्थिति अन्य परफॉरमिंग आर्ट के कलाकारों के बीच भी उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में बिहारवासियों को डर है कि वो बड़े-बड़े कवियों और कलाकारों को सुनने और देखने से कहीं वंचित न रह जाएं।
अब आप बिहार की आतिथ्य परंपरा पर लगे इस दाग का कारण भी जान लीजिए। कहा जाता है कि अनामिका अम्बर को इसलिए मंच पर जाने रोका गया क्योंकि वो किसी एक पार्टी या नेता को अपने काव्यपाठ के माध्यम से फेवर करते हैं जो अब बिहार के अधिकारियों और सरकार को शायद पसंद नहीं है। खैर जो होना था वो तो हो चुका। बिहार के आतिथ्य परंपरा पर दाग तो लग चुका है। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि यह दाग धुलेगी कैसे । बिहार के आतिथ्य परंपरा और प्रदेश की प्रतिष्ठा बचाने के लिए कौन सामने आएगा।क्या फिर से बिहार को लेकर कवियों और कलाकारों में भरोसा बन पाएग।
खास बात ये है भाजपा इसे मुद्दा बनाकर बिहार सरकार को घेरने का मुड बना चुकी है।वह मीडिया में इसे लगातार चलाने की स्टेर्जी पर भी काम कर रही है। किसी भी कीमत पर वो इस महत्वपूर्ण पर अवसर को जाया नहीं करना चहती।