Sushruta Sanhita: आज सर्जरी का क्षेत्र काफी बड़ा व व्यापक हो गया है लेकिन चार सदी पहले ही महर्षि सुश्रुत ने इस विधि से पीड़ित मानवता की सेवा कर भारतीयता का झंडा गाड़ दिया था। सर्जरी के इस जनक को नमन और मौन भावांजलि. “सुश्रुत संहिता”(Sushruta Sanhita) के रचयिता ऋषि सुश्रुत को विश्व का प्रथम सर्जन भी माना जाता है जिन्होंने चिमटे, सुई, चाकू व 125 से भी अधिक जरूरी उपकरण का प्रयोग सर्जरी के लिए उपयोग में लाया.यही नहीं इन सभी के बूते ऋषि सुश्रुत ने 300तरह की शल्य क्रिया का संदर्भ समाज को दिया. यह भी विस्तृत जानकारी दी कि प्रयोग से पहले हमारे लिए कौन-कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए।
जरा सोचें कि सनातन संस्कृति के कुल परंपरा से कैसे-कैसे शलाका पुरखों का नाता है,जिन्हें विश्व आज भी झुक कर नमन करता है और करता रहेगा. चार सदी पहले की इस सर्जरी विधा ने मोतियाबिंद,हड्डी जोड़ना, पथरी व कयी तरह की बीमारियों की सर्जरी करने की तकनीकी ज्ञान दिया और ऋषि सुश्रुत की इस संजीवनी विधा पर आज विश्व नाज कर रहा है.त्वचा बदलने की
क्रिया भी इन्हीं से विश्वव्यापी हुई.
आज की यह मान्यता है कि ऋषि को ही प्रथम “त्वचा चिकित्सक” बनने का गौरव प्राप्त है. शरीर विज्ञान(एनोटॉमी) पर शोध करने के क्रम में ही गर्भ विज्ञान व औषधि विज्ञान की खोज भी उनके ही नाम हैं.आज विश्व कयी तरह की बीमारियों की गिरफ्त में है जिसकी दवा भी सुलभ हो सकी है चरक संहिता के अध्ययन से हृदय, क्षय रोग, मधुमेह रोग का निदान इस आयुर्वेदिक चिकित्सा से संभव है.
आज सुलभ स्थिति पर हमें नाज है लेकिन भारतीयता के इस वृहत अध्याय का सूक्ष्म परा ज्ञान वास्तव मे अनोखा रहा, जिसके वल पर भारत महान बन सका है. आज भी मेधाविता में विश्व समाज, भारत का लोहा मानता है.
शंभुदेव झा.