Hindi Akhbaar
विमर्श

आज के ही दिन शुरु हुआ था पहला Hindi Akhbaar उदन्त मार्तंड

  • हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

  • दिन तो कमजोरों का होता है!

आज “हिंदी पत्रकारिता दिवस” है। अरे चौंकिए मत भाई, इस नाम का भी एक दिवस होता है! आखिर कभी तो पहली बार Hindi Akhbaar , हिंदी पत्रकारिता शुरू हुई होगी ना? और फिर बाद में जिस दिन ये पहला Hindi Akhbaar छपा था, उसी दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। तो आज चाहे हिंदी में पत्रकारिता का होना या ना होना विवादों का विषय भले हो, लेकिन पहला Hindi Akhbaar “उदन्त मार्तंड” इसी दिन (30 मई, 1826 को) शुरू हुआ था। ऐसा नहीं था कि इस समय तक भारत में अख़बार नहीं छपते थे।

  • पत्रकारिता, हिंदी और हिंदी पत्रकारिता का दिवस

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक हिंदी में शैक्षणिक प्रकाशनों की शुरुआत हो चुकी थी। इस दौर तक अक्षरों के मानकीकरण पर भी बात होने लगी थी क्योंकि “ण”, “अ”, “आ”, “झ” जैसे कुछ अक्षर अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीके से लिखे जाते थे।

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जब 1820 में उर्दू और बांग्ला में भी छपाई होने लगी, उस समय तक भी देवनागरी में छपाई मुश्किल थी। कलकत्ता के स्कूल की किताबों की छपाई जब शुरू हुई तब (1819 में) “समाचार दर्पण” नाम के एक बांग्ला प्रकाशन में हिंदी में कुछ लेख आने लगे। इस समय तक हिंदी के पाठक गिनती के थे।

ऊपर से इनमें से अधिकांश प्रकाशन कलकत्ता से ही होते थे, इस वजह से भी हिंदी के पाठकों की कमी थी। पंडित जुगल किशोर शुक्ल जो उत्तर प्रदेश के कानपूर से थे, उस वक्त तक वकालत करने के लिए कलकत्ता में बस चुके थे। उन्होंने सदर दीवानी अदालत में काम शुरू कर दिया था। कलकत्ता की बसंता गली के मुन्नू ठाकुर के साथ मिलकर उन्होंने 16 फ़रवरी 1826 को Hindi Akhbaar चलाने का लाइसेंस ले लिया। ये अख़बार “उदन्त मार्तंड” के नाम से 30 मई 1826 को प्रकाशित होने लगा। पूरी तरह देवनागरी लिपि का प्रयोग करने वाला ये पहला अख़बार था। भाषा के नाम पर इसमें खड़ी बोली और ब्रज भाषा का भी प्रयोग होता था।

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ये अख़बार हरेक मंगलवार को प्रकाशित होता था। शुरुआत में इसकी 500 प्रतियाँ छपने लगीं। कलकत्ते के बड़ा बाजार के पास के एक दफ्तर से इसका प्रकाशन होने लगा। उत्तर भारत के हिंदी बोलने-पढ़ने वाले इलाकों से दूरी के कारण इसे शुरू में ही समस्याओं का सामना करना पड़ा। शुक्ल और ठाकुर ने मिलकर पहले तो सरकार को ही अख़बार की सदस्यता लेने कहा। जब ये संभव नहीं हुआ तो उत्तर भारत में भेजे जाने वाले कुछ अख़बारों के साथ इसे भी डाक दरों में छूट दने की बात शुरू हुई। जब ये भी नहीं हो पाया तो ये अख़बार आर्थिक उलझनों में फंसने लगा।

अंततः आर्थिक कारणों से ये अख़बार 4 दिसम्बर 1827 को ही बंद हो गया। इस समय तक कई छूटें देने के लिए जाने जाने वाले लार्ड विलियम बेनेटिंक गवर्नर जनरल थे। उनके जाते ही 1828 में कई छोटे, स्थानीय भाषाओँ के अख़बार और भी बंद हो गए। ऐसा माना जाता है कि इसके कई वर्ष बाद शुक्ल ने 1850 में “समदंड मार्तंड” नाम की एक पत्रिका भी शुरू की थी जो 1929 तक चली। राष्ट्रवादी विचारधारा या क्रांति से इस दौर के Hindi Akhbaar का कोई विशेष सम्बन्ध रहा भी हो, तो उनका कोई ख़ास जिक्र कहीं नहीं मिलता। इनकी तुलना में अंग्रेजी में जरूर सरकारी और भारतीय पक्ष से प्रकाशित होने वाले अख़बारों में जंग छिड़ी रही।

  • देवनागरी और पत्रकारिता का हिंदी के विकास में योगदान

आज के दौर का “द हिन्दू” इसी दौर में “द स्टेट्समैन” जैसे सरकारी पक्ष के अख़बारों के खिलाफ उतरने के लिए विख्यात हुआ था। राजा राम मोहन रॉय ने जरूर 1829 में “बंगदूत” प्रकाशित करना शुरू किया था लेकिन वो कई भाषाओँ में अलग-अलग छपता था। दैनिक के रूप में “समाचार सुधा वर्षण” जून 1854 में आने लगा। श्याम सुन्दर सेन इसके संपादक और प्रकाशक थे। ये दो भाषाओँ में आता था और बाजार और जहाजों की खबर के अलावा इसमें सब बंगला में छपता था। इसके बाद 1850 से 1857 के बीच कई Hindi Akhbaar शुरू हुए।

बनारस अख़बार, सुधाकर तत्व बोधिनी, पत्रिका एवं सत्य जैसे अख़बार प्रमुख थे। बनारस अख़बार ने 1849 में उस दौर के नार्थ वेस्ट प्रोविंस में सबसे पहले देवनागरी में काम शुरू किया। इस दौर में हिंदी और उर्दू दोनों नामों वाले कुछ अख़बार भी आते थे। जैसे 1864 में “भारत खंडामृत” नाम से हिंदी में और वही “आब-ए-हयात-ए-हिन्द” नाम से उर्दू में आता था। ये सब भी कुछ ख़ास लम्बे नहीं चल पाए। इन सबकी तुलना में जब आज का दौर देखते हैं तो हिंदी में प्रकाशनों की भीड़ है। अख़बारों के बाद हिंदी में न्यूज़ चैनल, टीवी, रेडियो, वगैरह का दौर आया। इन्टरनेट ने तो सारी व्यवस्था में उथलपुथल ही मचा दी है।

आज जब “हिंदी पत्रकारिता दिवस” की याद दिला दी है, और आप इस लेख को भी इन्टरनेट के माध्यम से ही पढ़ रहे हैं तो मेरा निवेदन है कि एक बार आज के Hindi Akhbaar भी उल्टा कर देख लीजियेगा। हो सके तो एक बार हिंदी के न्यूज़ चैनल भी देख-सुन लें। क्या पता वहां भी किसी को “हिंदी पत्रकारिता दिवस” की याद आई हो!

आनंद कुमार (लेखक सोशल रिसर्चर हैं)

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.