हिंदी उपन्यास 'वो कॉमरेड स्स्स्सा' बिहार की राजनीति का सच है। वो कॉमरेड स्स्स्सा तीन दशक से अधिक समय से वर्ग संघर्ष के नाम पर जातिवाद...
विमर्श

बिहार की राजनीति का सच है उपन्यास ‘वो कॉमरेड स्स्स्सा

उपन्यास वो कॉमरेड स्स्स्सा का विमोचन पटना में पूर्व सांसद अरुण कुमार के हाथों संपन्न हुआ। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार श्रवण कुमार इस उपन्यास के लेखक हैं। यहां ‘वो कॉमरेड स्स्स्सा की सभीक्षा कर रहे हैं मुकेश महान

पढ़ने की मेरी आदत छूट चुकी है लेकिन जब पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा... मेरे हाथों में पड़ी तो मैं इसे शुरु से अंत तक पढ़ गया। और तब मुझे लग...
श्रवण कुमार की पुस्तक कॉमरेड वो स्स्स्सा का विमोचन

पटना, मुकेश महान हिंदी उपन्यास ‘वो कॉमरेड स्स्स्सा’ बिहार की राजनीति का सच है। वो कॉमरेड स्स्स्सा तीन दशक से अधिक समय से वर्ग संघर्ष के नाम पर जातिवाद का नंगा नाच कर दर्जनों नरसंहारों में खून की नदियां बहाने वाले कॉमरेडों और सत्ता व राजनीति संरक्षित वीभत्स चेहरों की नकाब उतारती कहानी है। वरीय पत्रकार श्रवण कुमार ने 1990 से अभी तक के राजनीतिक घटनाक्रमों को मनोरंजक तरीके से उपन्यास के रूप में कलमबद्ध किया है। उपन्यास में राजनीतिक स्थितियों-परिस्थितियों का चित्रण बेहद ही संजीदगी से किया गया है।
उपन्यास में बिहार की राजनीति के विद्रूप सच को रेखांकित करने की कोशिश की गई है। बिहार की राजनीति के रग-रग में अरसे से बसे जात और जमात का विभत्स चेहरा भी दिखाने की कोशिश की गई है इस उपन्यास में। नक्सलवाद और जातीय सेनाओं की गरजती और बारूद उगलती बंदूकों से लाल इलाका बन चुके राज्य के कई जिलों की दारूण तस्वीर पेश करता है यह उपन्यास। वर्ग संघर्ष के नाम पर वामपंथी पार्टियां नक्सलवाद की सरपरस्त बनीं, तो जवाब में उतरे जातीय सेनाओं को भी राजनीति का संरक्षण मिला। नक्सलवाद और जातीय सेनाओं के बीच शासन पर पकड़ बनाये रखने के लिए बाहुबलियों को भी सत्ता का वरदहस्त प्राप्त हुआ।


कॉमरेड मंडल दा नक्सलियों के सहारे वाम पार्टी का दबदबा कायम रखने को आतुर हैं। व्याकुलता इतनी है कि नक्सलियों द्वारा दस्ते में शामिल लड़कियों का शारीरिक शोषण भी उन्हें गलत नहीं लगता। राजनीतिक चरित्र ऐसा कि सत्ता के करीब रहने के लिए यादव जी जैसे मुख्यमंत्री का तलवा तक चाटने को तैयार, तो कभी दुत्कार दिये जाने पर वाम पार्टी को सरकार का सबसे मुखर विरोधी साबित करने को आमादा। यादव जी की राजनीति तो खुलकर सवर्णों का विरोध पर ही टिकी है।

नक्सलियों और यादव जी की सवर्ण विरोधी राजनीति का प्रतिकार करने के लिए मुखिया जी की सेना सामने आती है। राजनीति के तीसरे कोण पर खड़ी पार्टी परोक्ष रूप से मुखिया जी की सेना के साथ है। इन स्थितियों-परिस्थितियों में अपने-अपने वर्चस्व के लिए नक्सलियों-बाहुबलियों और मुखिया जी की सेना संहार दर संहार कर रही है। नक्सलियों द्वारा किये गये ऐसे नरसंहार में ही अपनों को खो चुके होनहार और प्रतिभावान छात्र रणविजय के दिल में बदले की आग जलती है। बदला लेने का उसका तरीका अनूठा है। मुखिया जी की सेना में शामिल होने का ऑफर ठुकराते हुए उसने बीटेक करने के बाद यूपीएससी क्रैक किया। फिर भारतीय पुलिस सेवा ज्वाइन कर नक्सलवाद के खात्मे का संकल्प लिया।

Read also- पुस्तक वो कॉमरेड स्स्स्सा… उन तीन दशकों का जीवंत चित्रण हैः अरुण कुमार

दूसरी ओर रणविजय के बचपन का साथी जतिन कॉमरेड मंडल दा के बहकावे में आकर अपने बाप पर ठाकुर भंवर द्वारा किये गये जुल्म का बदला लेने नक्सली बन जाता है। जतिन की बहन रधिया को भी मजबूरी में नक्सलियों के दस्ते में शामिल होना पड़ा। नक्सल दस्ते में रहते रधिया को कॉमरेडों की गंदी नीयत और दोहरे चरित्र का भान होता है। रधिया किसी मजबूरी में दस्ते में शामिल हुई लड़कियों को नक्सली मांद से आजाद करने की लड़ाई लड़ती है। वक्त करवट बदलता है और रणविजय उसी गढ़वा जिले का एसपी बनकर आता है, जो नक्सलियों का सबसे बड़ा गढ़ है। जतिन और रधिया के नक्सल दस्ता का अड्डा भी यहीं बुढ़वा पहाड़ पर है।

Read also- एनटीपीसी नबीनगर परियोजना से बिहार को सबसे ज्यादा दी जा रही बिजली

फिर शुरू होता है टकराव और संघर्ष। रणविजय, जतिन और रधिया अपने-अपने मकसद के साथ संघर्ष करते हैं। जमींदारों से संघर्ष करते हुए ठाकुर भंवर का अंत जतिन का मकसद है, तो नक्सली दस्ते में शामिल दैहिक शोषण को मजबूर लड़कियों को आजाद कराना रधिया का लक्ष्य। दूसरी ओर रणविजय ने नक्सलवाद को खत्म करने का संकल्प लिया है। रणविजय के संकल्प में उसकी आईएएस मित्र दीपा सूरी का भी साथ मिलता है। इस उपन्यास की खूबसूरती तब निखर कर सामने आती है जब पता चलता है आईपीएस रणविजय, रधिया और उसका भाई जतिन, तीनों बचपन के गहरे दोस्त हैं। सभी अपनी मंजिल पर पहुंचने को व्याकुल हैं, सभी के मंजिलें अलग अलग हैं, लेकिन सभी के रास्ते अवरोधों और संघर्षों से होकर गुजरते हैं।

पुस्तक का नाम- वो कॉमरेड स्स्स्सा , लेखक -श्रवण कुमार , पृष्ठ संख्या-184 , कीमत -रुपये 360 मात्र , प्रकाशक-मैगबुक,नई दिल्ली।

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.

2 Replies to “बिहार की राजनीति का सच है उपन्यास ‘वो कॉमरेड स्स्स्सा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *