डॉ. राजीव मिश्रा की पुस्तक “विषैला वामपंथ” पर हुई चर्चा। पटना, संवाददाता। आज विजय निकेतन स्थित सभागार में संस्कार भारती, यंग थिंकर सर्किल एवं अनुपम कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक चर्चा का आयोजन किया गया। अपनी श्रृंखला के इस दूसरे कार्यक्रम में यू.के. बेस्ड लेखक डॉ. राजीव मिश्रा की पुस्तक “विषैला वामपंथ” पर चर्चा हुई। कार्यक्रम का आरंभ परंपरागत दीप प्रज्वलन से हुआ।। मंच संचालन का दायित्व आनंद कुमार ने संभाला और सबसे पहले अभिजित सिंह को “दूसरे पक्ष से उठती आवाजों” के विषय में बोलने के लिए आमंत्रित किया।
अभिजित सिंह ने कहा कि इतिहास लेखन में सीताराम गोयल जैसे नामों की चर्चा नहीं होती। ऐसे ही हम स्व. नरेंद्र कोहली की नजरों से पौराणिक कथाओं को देखने के बदले बाहर के लोगों ने उनके बारे में क्या बताया, इसपर आश्रित रहते हैं। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए जाने-माने फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने कहा कि कुछ अभिजात्य लोगों के सर्टिफिकेट देने पर ही अच्छे को अच्छा माना जाए, ये व्यवस्था पिछले कुछ दशकों में बन गयी है। हमें इसे तोड़ना होगा। किसी भी मुद्दे पर एक से ज्यादा पक्ष होते ही हैं, लेकिन ये सोशल मीडिया के आने के बाद ही हो पाया है कि दूसरे पक्ष की बातें सुनाई देने लगी हैं।
लेखक डॉ. राजीव मिश्रा ने अपनी पुस्तक के बारे में बात करते हुए कहा कि उनकी पुस्तक मुख्यतः “सांस्कृतिक मार्क्सवाद” और उससे जुड़ी समस्याओं के विषय में बात करती है। राजनैतिक रूप से इस विचारधारा का जो असर हुआ, वो तो है ही, साथ ही कला, साहित्य, फिल्म-नाटक जैसे क्षेत्रों में भी इसकी घुसपैठ से कई विकृतियाँ आ गयी हैं। उन्होंने युवा वर्ग तक पहुँचने पर बल देते हुए कहा कि दुनिया कुछ वर्षों में और भी तेजी से बदल रही है और हमें भी इन बदलावों के साथ ही बदलकर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचना होगा। उन्होंने कहा कि सत्ता की जिम्मेदारी लिए बिना केवल संघर्ष उत्पन्न करके नेतृत्व के जरिये ताकत बटोरने की व्यवस्था कुछ समय से बनी हुई है, उसे समाप्त करना होगा। उसके खतरों से अगली पीढ़ियों को भी आगाह करना उनकी पुस्तक का उद्देश्य था।
इसके बाद संस्कार भारती के बिहार प्रान्त के संगठन मंत्री वेद प्रकाश ने पुस्तक के माध्यम से सामने लायी गयी समस्याओं की बात को रामचरितमानस के अंशों से जोड़ते हुए बताया कि कैसे प्राचीन काल से साहित्य केवल समस्याओं की ओर इशारा ही नहीं करता बल्कि उनको सुलझाने के अलग अलग माध्यम भी बताता है। उन्होंने पुस्तक के पाठकों से भी समस्याओं के समाधान की ओर अपने-अपने ढंग से बढ़ने कि आशा व्यक्त की। इसके बाद के सत्र में पाठकों के प्रश्न लिए गए जिसमें लेखक डॉ. राजीव मिश्रा ने पाठकों के प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया।
कार्यक्रम का समापन हरिशंकर प्रसाद के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। अपने अभिभाषण में संगीत-कला के क्षेत्र से पांच दशकों से जुड़े हरिशंकर प्रसाद जी ने इस क्षेत्र के अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि शुरूआती दौर में उन्हें भी ऐसा ही माहौल झेलना पड़ा था जब किसी का वरदहस्त इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक होता था। पिछले 25 से अधिक वर्षों के पटना के दुर्गा पूजा के दौरान होने वाले आयोजनों के अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने बदलती हुई परिस्थितियों में संस्कृति से जुड़े कार्यों पर और तेज प्रयास करने पर बल दिया।
इस अवसर पर दक्षिण बिहार प्रान्त के कार्यकारी अध्यक्ष आनंद प्रकाश नारायण सिंह, उपाख्य रौशन, प्रख्यात रंगकर्मी व दक्षिण बिहार के उपाध्यक्ष श्री संजय उपाध्याय, संजय सिन्हा, कुमकुम भगवति, भारतेंदु चौहान, प्रवीर सिन्हा, अखिल भारती पंकज, अमिता प्रकाश, अंजू झा, इतिहास संकलन समिति के संगठन मंत्री अरुण कुमार सिंह, भारतीय शिक्षण मंडल के संदीप सन्नकी, शैलेन्द्र कुमार, सहित पटना के रंगमंच, कला-साहित्य से जुड़े हुए लोग सम्मिलित हुए।