चंद्रशेखर आजाद पर एक शोधपरक आलेख। नंगे बदन, कमर पर बंधी सफेद धोती, कंधे पर जनेऊ और बाएँ हाथ से दाहिनी ओर की मूँछ उमेठते हुए एक बलिष्ठ देहयष्टि वाले तेजस्वी नवयुवक की छबि आंखो के सामने उभरते ही याद आते है क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद। जहाँ कहीं उनकी मूर्ति स्थापित है, उनकी इसी छवि को मूर्तिमान किया गया है। क्योंकि आजाद की यही एकमात्र उपलब्ध तस्वीर है, जो उनके जीवन काल मे खींची गई थी।
इंटरनेट पर इस तस्वीर के संदर्भ में अनेक विवरण उपलब्ध है, लेकिन भ्रमित करने वाले, इस तस्वीर के पीछे का सच आजाद के अभिन्न अंग और उनके शागिर्द रहे प्रसिद्ध क्रांतिकारी डॉ. भगवान दास माहौर ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि 1925 में काकोरी कांड के बाद फरारी के दिनों में ब्रिटिश हकूमत से बचते हुए चंद्रशेखर आजाद लगभग तीन वर्ष तक मास्टर रुद्र नारायण समेत झांसी व आसपास के कई क्रांतिकारियों के संपर्क में रहे। मास्टर रुद्रनारायण सक्सेना के घर पर उनके छोटे भाई के रूप में हरिशंकर बन कर रहे। उनसे मिलने वहां कई बार भगत सिंह, बटुकेश्वर, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारी भी आए।
उस वक़्त झांसी का यही घर क्रांतिकारियों की शरणस्थली थी, जहां पर क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें भी हुआ करती थीं। जिनके आवभगत की ज़िम्मेदारी मास्टर जी पर ही रहा करती थी। मास्टर रुद्रनारायण सक्सेना क्रांतिकारी के साथ अच्छे फोटोग्राफर, चित्रकार और मूर्तिकार भी थे। चंद्रशेखर आज़ाद के फोटो लेने का वाकिया भी बड़ा रोचक है।
मास्टर रुद्रनारायण सशंकित थे कि कहीं आजाद जी का मन अचानक बदल न जाए, उन्होंने चट से उस क्षण की मुद्रा को ही कैमरे में कैद कर लिया। कुछ दिनों बाद पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते उन्होंने आजाद की व्यवस्था ओरछा के पास जंगल में स्थित सातार नदी के हनुमान मंदिर की गुफा में कर दी थी। यहीं से सारी क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन होता था। पुलिस की नजर फिर भी मास्टर रुद्रनारायण जी पर थी। सारे प्रयास विफल रहने पर अंग्रेज अफसरों ने उनकी फाकाकशी को हथियार बनाने की कोशिश की, उनसे कहा पच्चीस हजार रुपये नकद लो और आजाद को गिरफ्तार करवा दो। पर, पेट की आग से कहीं अधिक उनके सीने में देश को स्वतंत्र करवाने के जज्बे की आग थी।
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एक बार तो आजाद ने मास्टरजी की आर्थिक स्थिति को देख परामर्श देते हुए कहा कि मुझे गिरफ्तार करवा दीजिए, जिससे कम से कम इस घर के लोगों को दो वक्त की रोटी तो मिल सके, इस पर मास्टर साहब ने कहा था कि देश के लिए मुझे भूखे रहकर मौत मंजूर है पर देशद्रोह की रोटी मंजूर नहीं।
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कल्पना कीजिए मास्टर रुद्र नारायण सक्सेना फिरंगी सरकार के प्रलोभन के आगे झुक जाते या जोखिम लेकर चन्द्रशेखर आज़ाद के फोटो को सहेज कर ना रख पाते तो क्या हम आज अमर शहीद आज़ाद को स्मरण कर पाते। मास्टर जी द्वारा ली गई बस वही एकमात्र अकेली तस्वीर थी, जो आज़ाद के जीवन काल में खींची गई थी। सक्सेना जी ने आजाद जी के इस चित्र को अपनी जान से भी ज्यादा संभलकर रखा और आज़ाद के जीते जी किसी को नहीं दिखाया। उनके बलिदान के बाद ही इसे सार्वजनिक किया।
आगे चलकर यही तस्वीर इतिहास की महत्त्वपूर्ण धरोहर बनी। धन्य है वो महान कलाकार जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना कर आज़ाद को बुरे वक़्त में आश्रय दिया और देश को अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की ये दुर्लभ तस्वीर उपलब्ध करवाई।
पवन सक्सेना, (शोध एवं संकलनकर्ता)