विश्वनाथ सिंह. Hariharnath Mandir : भारतवर्ष में दो क्षेत्रों की महिमा महान है। एक क्षेत्र है कुरुक्षेत्र तथा दूसरा क्षेत्र है हरिहरक्षेत्र। दोनों क्षेत्रों में कभी भीषण संग्राम हुआ था। कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ था और इस हरिहरक्षेत्र(सोनपुर) में गज और ग्राह के बीच वर्षों युद्ध चला था। कुरुक्षेत्र में ‘हरि’ कृष्ण के रूप में विद्यमान थे तो हरिहरक्षेत्र में भी ‘हरि’ नंगे पांव पधारे थे और गज को ग्राह से उद्धार किया था।
हरिहर क्षेत्र में प्रतिष्ठापित बाबा हरिहरनाथ मंदिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्री राम ने इसकी स्थापना की थी। इसमें स्थापित प्रतिमा ‘शिवलिंग’ का शिश्न विभाजित है। विष्णु भगवान की मूर्ति की नाक चिपटी और पांव खंडित है।
यह भी किवंदती है कि प्राचीन काल में दो धार्मिक मान्यताओं शैव और वैष्णव के अनुयायी आपस में झगड़ते, अपनी-अपनी मान्यताओं को श्रेष्ठ बताते अपने अराध्याओं की श्रेष्ठता प्रमाणित करने हेतु वाद-विवाद करते थे। देवताओं के बीच एक सभा हुई और देवताओं ने सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के समक्ष अनुरोध किया तो स्वयं ब्रह्मा ने कर-कमलों द्वारा ‘हरिहर’ की स्थापना की।
Hariharnath Mandir जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है। इस स्वरूप में विष्णु तथा शिव का समन्वय होता है। दूसरे रूप में यह वैष्णव एवं शैव धर्मों का समन्वित रूप ही माना जाता है। ‘विष्णु पुराण’ में एक स्थान पर शिव को अपने ही मुख से यह कहते हुए बताया गया है कि वे विष्णु के ही अर्धभाग है और विष्णु से अलग उनका कोई अस्तित्व नहीं है। बाबा हरिहरनाथ को किसी विशेष प्रसाद की कोई आवश्यकता नहीं है। बाबा तो मात्र बेलपत्र, शुद्ध जल, पुष्पों व ‘ॐ नमः शिवाय’ के जप से ही प्रसन्न हो जाते है। भक्तों को बाबा हरिहरनाथ के द्वारा उत्तम फल की प्राप्ति होती है। अतः जो व्यक्ति सच्चे हृदय से भगवान शिव की आराधना करते है, उनके आशीर्वाद से भक्त के सभी कष्ट व संकट शीघ्र दूर हो जाते है।