बिहार में पंचायती राज व्यवस्था ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सन 1948 में तत्कालीन गवर्नर जनरल की स्वीकृति से बिहार पंचायती राज अधिनियम- 1947 लागू हुआ था। तब से लेकर आजतक पंचायती राज का वजूद कायम रखने के लिए कई स्तर पर लड़ाई लड़ी गई। एक समय ऐसा भी आया जब लंबे समय तक बिहार में पंचायत चुनाव नहीं हुए थे। तब अदालत का सहारा लिया गया, जिसके बाद पंचायती राज व्यवस्था को संजीवनी मिली। इसमें बिहार राज्य पंचायत परिषद् की महती भूमिका रही। परिषद् के तत्कालीन उपाध्यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह की अगुवाई में कानूनी लड़ाई लड़ी गई। बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह वर्तमान में परिषद् के चौथे अध्यक्ष हैं। xposenow.com के लिए मुकेश कुमार सिन्हा ने बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह से बिहार में पंचायती राज को कायम रखने में पंचायत परिषद् की भूमिका पर खास बातचीत की।
सवाल : बिहार में पंचायती राज व्यवस्था की मजबूती के लिए आपने आंदोलन किया था, कोर्ट तक गए थे, कुछ उसके बारे में बताएं?
जवाब : राज्य में 1978 के बाद से पंचायत चुनाव नहीं हुए थे। तब यह स्थिति हो गई थी कि किसी कारण से रिक्त हो जा रहे पंचायती राज पदाधिकारी के पदों का कार्यभार सरकारी अफसर हथियाते जा रहे थे। ऐसे में पंचायती राज व्यवस्था को जिंदा रखने के लिए आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना जरूरी हो गया था। पंचायती राज को अधिकार और मजबूती दिलाने के लिए 31 जनवरी 1994 को ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों ने दिल्ली के राजघाट पर धरना दिया था, जिसकी अगुवाई मैंने की। इसके अलावा बिहार में पंचायती राज को 100 करोड़ रुपए दिलाने के लिए कोर्ट में केस कर संघर्ष किया। तत्कालीन वित्तमंत्री, भारत सरकार ने उक्त राशि रिलीज नहीं की थी। लंबे संघर्ष के बाद सुखद परिणाम आया। 2001 में पंचायत चुनाव के बाद साल 2002 में 106.60 करोड़ रुपए जारी किए गए।
सवाल : एक समय ऐसा भी आया था जब बिहार में लंबे समय तक पंचायत चुनाव नहीं हुए थे, तब बिहार राज्य पंचायत परिषद् और आपने क्या किया।
जवाब : बिहार में 1952 से लेकर 1978 के बीच नियमित सात बार पंचायत चुनाव हुए। उसके बाद इसकी सुगबुगाहट तक बंद हो गई। किसी न किसी कारणवश पंचायती राज पदाधिकारी के पद रिक्त होते जा रहे थे और चुनाव का कहीं नामोनिशान नहीं था। तब पंचायत चुनाव कराने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की गई। उस दौरान मैं बिहार राज्य पंचायत परिषद् का उपाध्यक्ष था। मैंने पटना हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में जाकर मुकदमा दायर किया। कानूनी लड़ाई के बाद सन् 1978 के 23 वर्षों के बाद साल 2001 में राज्य में पंचायत का चुनाव हुआ। वहीं, बिहार में लंबे समय के बाद 2006 में पंच-सरपंच (ग्राम कचहरी) का चुनाव हुआ। यह भी बिहार राज्य पंचायत परिषद् की ओर से याचिका दाखिल करने के बाद संभव हुआ। इसके अलावा नगर निगम के चुनाव के लिए कोर्ट के माध्यम से कानूनी लड़ाई लड़ी गई।
सवाल : जिला योजना समिति के गठन के बारे में बताएं?
जवाब : इसके लिए भी संघर्ष किया, मुझे कोर्ट तक जाना पड़ा था। तब जाकर बिहार में पहली बार वर्ष 2002 में जिला योजना समिति का गठन किया गया।
सवाल : बिहार राज्य पंचायत परिषद् से कैसे जुड़े?
जवाब : मैं लंबे समय तक मरची गांव का मुखिया रहा। उस दौरान मेरा बिहार राज्य पंचायत परिषद आना-जाना होता रहा। इस बीच 21 जनवरी 2001 में मुझे बिहार राज्य पंचायत परिषद् का उपाध्यक्ष चुना गया। तब से अब तक मैं इस संस्था से जुड़ा हूं। पिछले 8 वर्षों से मैं परिषद् के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहा हूं। वर्ष 2003 में मुझे ऑल इंडिया पंचायत परिषद्, दिल्ली के महासचिव पद की जिम्मेदारी भी मिली।
सवाल : आप राजनीति में कब से हैं?
जवाब : मैंने साल 1978 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली। कांग्रेस में रहते हुए साल 1995 से 1997 तक पटना जिला टाउन कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष रहा। तब से लेकर 2013 तक कांग्रेस पार्टी में मुझे कई जिम्मेदारियां मिलीं, जिसे मैंने यथाशक्ति पूरा किया।