इंटरव्यू

समाज की पीड़ा जिस व्यक्ति के अंदर नहीं,वह मानव होने के साथ वह उस समाज का अंग भी नहीं है : जगदीश सिंह राघव

क्षत्रिय महासभा अखंड भारत संस्थापक और वरिष्ठ ऱाष्ट्रीय महामंत्री जगदीश सिंह राघव से मुकेश महान की बातचीत

जगदीश सिंह जी क्षत्रिय महासभा अखंड भारत के गठन की ज़रूरत क्यों पड़ी ?

  • -देश के अंदर राजपूत समाज के 2700 से भी ज्यादा संगठन हैं। उन संगठनों में से मात्र आधा परसेंट संगठन कागज पर है। परंतु समाज हित में बिना स्वार्थ के उनका काम जीरो है। आज तक किसी भी सामाजिक संगठन ने काम समाज हित में किया भी है, तो उसमें निजी स्वार्थ स्वयं का बहुत ज्यादा से ज्यादा जुड़ा है।
    विश्व भर में अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है ग्लूकोमा
    दूसरी बात है कि देश में राजपूत समाज के संगठन एक-एक नाम से 15-20 बने हुए हैं। जो कि अपने एक संगठन को इकट्ठा करके नहीं रख सकते हैं तो वह समाज को कैसे एक कर सकते हैं। वो कैसे समाज हित में काम कर सकते हैं। अपनी निजी प्रसिद्धि के लिए हर व्यक्ति स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर खड़ा हो गया है।
    हम संगठन के संस्थापक हैं, कोई राजनेता नहीं हैं, जो हम किसी राजनीतिक दल में जाने के लिए अपनी प्रसिद्धि संगठन के माध्यम से कायम करें हम सर्विसमैन हैं। हमें समाज का दर्द और टीस बर्दाश्त नहीं हुआ। बस समाज हित में काम करने के लिए इस संगठन की आवश्यकता पड़ी और ये संगठन खड़ा हुआ।
    आपको क्या लगता है ऐसा कोई जातीय संगठन जात का हित साधने में सफल रहा है ?
  • जातीय संगठन आज कोई नई चीज नहीं है। संगठन के रूप में पूर्व में भी देखा जाए तो राजा-रजवाड़ों के रूप में भी हमारे संगठन रहे हैं, जिन्होंने देश की और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दी है। जब जब देश पर आक्रमण हुए हैं। उन आक्रमणों का मुकाबला हमारी जाति के लोगों ने ही मिल कर किया है। इसलिए जातीय संगठन आज बनाना अत्यावश्यक है, क्योंकि हमसे पहले अन्य जातियों के संगठन बने हुए हैं और वह अपने झंडे और बैनर के तले अपनी जातियों के लिए काम कर रहे हैं।
    इसी तरह क्षत्रिय महासभा, राजपूत समाज, अखंड भारत ने निर्णय लिया है कि अपने समाज के जो लोग पिछड़े अतिपिछड़े समाज से बिछड़े हुए हैं, उनका सर्वांगीण विकास हो। हमारी रानियां जो विधवा हैं, बेरोजगार हैं, उनके रोजगार के साधन उत्पन्न किए जाएं। गरीब बच्चियों की शादी सामूहिक सम्मेलन के माध्यम से किए जाएं और समाज के अंदर शिक्षा का स्तर मजबूत किया जाए।
    कैसे आपके मन में इस संगठन बनाने का विचार आया ?
  • समाज की पीड़ा जिस व्यक्तित्व के अंतर्गत नहीं है तो वह मानव होने के साथ वह उस समाज का अंग भी नहीं है। जाके फटी न विवाई वह क्या जाने पीर पराई। किसी भी जाति के अमीर व्यक्तियों को समाज संगठन की या उनको जाति की आवश्यकता नहीं होती। जाति के संगठन और समाज की आवश्यकता मीडियम एवं गरीब परिवार को होती है। यह लोग आपस में एक दूसरे के सुख-दुख में बैठते हैं और अपने ऊपर आई विपत्तियों के लिए एक दूसरे का सहारा बनते हैं। आज छत्रिय राजपूत समाज को सोची-समझी रणनीति के तहत पीछे धकेलने की कोशिश की जा रही है। उसे शासन और प्रशासन की हर सुविधा से वंचित किया जा रहा है। हम अपने अधिकार और हकों की लड़ाई के लिए एकत्रित हों, इसी भावना को लेकर के संगठन बनाने का विचार आया और क्षत्रिय महासभा राजपूत समाज अखंड भारत का हम सभी लोगों ने गठन किया।

क्या सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त जाति को भी संगठन की ज़रूरत है ?

  • क्षत्रिय राजपूत समाज किसी समय सामाजिक आर्थिक राजनीतिक रुप से सशक्त था, परंतु आज यह कहना मिथ्या है। हमारी आर्थिक स्थिति पूरे देश के अंदर अच्छी बताई गई है। वह मिथ्या है। क्योंकि अंग्रेजी हकूमत ने देश आजादी के 200 वर्ष पूर्व देश में क्षत्रिय राजपूत समाज का सर्वे कराया था और उस सर्वे में कृषि का भूभाग 75 परसेंट राजपूतों का था, परंतु आज 300 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। जहां पर एक घर था और उस पर 100 एकड़ जमीन थी। आज वहां एक घर का पूरा गांव बन चुका है। जिसकी जनसंख्या हजारों में हो चुकी है और वह 100 एकड़ जमीन जब कभी किसी एक घर का हुआ करती थी, आज एकड़ और बीघा में नहीं है, वह जमीन अब फीटों के माप में हिस्सो में आ रही है।
    समाज के जो लोग धनवान हो चुके हैं या शासन की नौकरी प्राप्त कर के बड़े ऑफिसर हो चुके हैं। उन लोगों को समाज की और किसी भी संगठन की आवश्यकता नहीं है इसलिए आज के समय में समाज को संगठित करने की अत्यंत आवश्यकता है
    जगदीश सिंह जी एक सवाल तो बनता ही है कि कहीं राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाने का हथियार तो नही है ये संगठन ?
  • हम किसी भी राजनीतिक पार्टी पर दबाव बनाने की मंशा से संगठन में काम नहीं कर रहे हैं और ना ही इस मंशा से संगठन बनाया गया है। हमारा एक ही नारा है, जो क्षत्रिय हित में काम करेगा, वही हम पर राज करेगा।
    हां, संगठन के माध्यम से एकत्रित होकर पूरे देश के अंदर हम यह तय कर सकते हैं कि चुनावी समर के अंदर भैंस किस खूंटे से बंधेगी। राजपूत समाज संगठित हो कर तय कर सकता है।
    जब हम एकत्रित होते हैं तो हमें राजनीतिक पार्टियों के पास जाने की जरूरत नहीं है। राजनीतिक पार्टियां हमारे संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के पास दौड़कर आएंगे