कर्नाटक विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली। इसके साथ भाजपा को बुरी तरह हार मिली है। यह परिणाम जहां कांग्रेस को नये सपने दिखा ...
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कर्नाटक विधान सभा चुनाव 2023 : क्यों और कैसे आया यह परिणाम

कर्नाटक विधान सभा चुनाव के इस परिणाम की उम्मीद किसी को नहीं थी। कुछ एग्जिट पोल में ऐसे परिणाम दिखाए -दर्शाए जरूर गए थे। लेकिन न तो कांग्रेस को इतने अधिक की उम्मीद थी, न ही भाजपा को इतने बुरे की।हालांकि भाजपा के वोट प्रतिशत में बहुत कमी नहीं आई है। वोट प्रतिशत में कांग्रेस ने बाजी मार ली है जबकि जेडीएस को इसका नुकसान हुआ है। इस विशेष परिणाम पर मुकेश महान की विचारपरक लेख

कर्नाटक विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली। इसके साथ भाजपा को बुरी तरह हार मिली है। यह परिणाम जहां कांग्रेस को नये सपने दिखा सकता है वहीं भाजपा के कई भ्रम को तोड़ने के लिए काफी है। हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, जय श्रीराम और बजरंगबली के नाम का उपयोग, व्यक्ति विशेष की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय छवि, बड़े-बड़े नेताओं के बड़बोले भाषण, सब के सब कर्नाटक विधान सभा चुनाव में बेकार साबित हुए। राजनीति और बयान के बहाने मानहानी के नाम पर न्यायालय जाकर भी भाजपा कर्नाटक विधानसभा के लिए जादुई आंकड़ा तक नहीं पहुंच पाई।

दूसरी ओर कांग्रेस को इस प्रचंड जीत के लिए कुछ विशेष और अलग से करने की जरूरत नहीं पड़ी। हां मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप जरूर कांग्रेस पर लग सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान कभी-कभी ऐसी झलक मिली भी है। लेकिन ऐसा तो हर चुनाव में होता ही रहा है। लेकिन कांग्रेस को ऐसी जीत नहीं मिलती रही है। फिर यह विचारणीय तो है कि कर्नाटक में आखिर ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी की मजबूत दिवार इतनी बुरी तरह ध्वस्त हो गई। जिस कांग्रेस से मुक्त देश बनाने की बात की जा रही थी उसी कांग्रेस ने कर्नाटक में बीजेपी से दोगुना से भी ज्यादा सीटें हासिल कर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही है। यह मजबूत स्थिति क्यों और कैसे बनी। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस सवाल का जवाब तलाशना दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण है।

क्या कर्नाटक में भाजपा पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप ने कांग्रेस को जीत का यह स्वाद चखाया। क्या जनता से किये कांग्रेस के वे पांच वाएदे ने यह परिणाम दिया है। क्या प्रियंका गांधी के रोड शो और उनके व्यक्तित्व का प्रभाव रहा या फिर राहुल के भारत जोड़ो यात्रा ने पूरे कर्नाटक को कांग्रेस से जोड़ दिया। या फिर मल्लिकार्जुन खरगे और उनकी टीम का मिहनत का असर है। या कुछ ऐसा भी है, जो हिडेन है, मतलब सीधे सीधे दिख नहीं रहा है और जिसे तलाशने की जरूरत है।

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यहां एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है, न ही कर्नाटक में पिछले कई वर्षों से सरकार बनने का ट्रेंड को भुला जा सकता है, जिसके तहत यह रिकार्ड है कि यहां सरकार अपने आपको दुहरा नहीं पाती। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या एंटी इनकंबेंसी और सरकार बदलते रहने का ट्रेंड ही कार्नाटक में कांग्रेस के इस प्रचंड जीत का कारण हो सकता है। ये सब तो वो तथ्य हैं जिसके पीछे भारतीय जनता पार्टी को माथापच्ची करने की जरूरत है। जरूरत तो कांग्रेस को भी है इस प्रचंड बहुमत के खास वजहों को जानने की, जिसका इस्तेमाल वो अगले चुनाव में कर सके।

कर्नाटक कांग्रेस में चुनाव के दौरान कोई आपसी विवाद या गुटबाजी का नहीं होना कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि रही और यही इतने बड़ी जीत में सहायक भी रही। कांग्रेस में कई बड़े बड़े नेता और उनके गुट काम कर रहे होते हैं। ऐसे में चुनाव में आपसी गुटबाजी कांग्रेस को हमेशा से नुकसान ही करती रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए यह एक सीख भी है।

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अब वो कुछ हिडेन मसलों पर भी कुछ बात कर ली जाए, जिसका सीधा संबंध कर्नाटक या कर्नाटक चुनाव से नहीं रहा है, लेकिन कहीं न कहीं वो इस चुनाव को प्रभावित कर गया। इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं राहुल गांधी फैक्टर। राहुल गांधी देश भर की एक बड़ी आबादी को यह समझाने में कामयाब रहे कि भाजपा ने करोड़ों-अरबों रूपये खर्च कर उनकी छवि खराब की है। राहुल गांधी को कोर्ट से सजा मिलने की चर्चा और राहुल गांधी से उनकी लोकसभा की सदस्यता जाना, आनन-फानन में उनसे उनका मकान तक खाली करा लेना। यह सब एक ऐसी घटना थी, जो सामान्य लोगों (गैर राजनीतिक लोगों) में राहुल गांधी सहित कांग्रेस के प्रति लगातार सहानुभूति पैदा करती रही।

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इसके अतिरिक्त भाजपा द्वारा विपक्ष को तवज्जो न देना, कुछ बड़े भाजपा नेताओं का अहंकार भरा अंदाज, कुछ भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा कांग्रेस, सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं का टीवी स्क्रिन पर बार बार मजाक उड़ाने का अंदाज भी आम लोगों को कांग्रेस से जोड़ता चला गया। (स्पष्ट करना जरूरी है कि यहां पार्टीगत जुड़ाव की बात नहीं, सिर्फ वोटगत जुड़ाव की बात की जा रही है।) इसके अतिरिक्त कर्नाटक विधान सभा चुनाव के ऐन पहले विपक्षी नेता देशभर के लोगों को यह समझाने में सफल रहे कि भाजपा विपक्ष से डरती है और विपक्ष के मजबूत नेताओं को वह सरकारी एजेंसियों द्वारा कमजोर करती है या करने का प्रयास करती है। चाहे राहुल गांधी हों या लालू प्रसाद -तेजस्वी यादव सहित उनका पूरा परिवार, या फिर आप के कुछ नेता, सभी को कर्नाटक चुनाव के ऐन पहले सरकारी एजेंसियों का सामना करना पड़ा है। भाजपा यह समझाने में नाकामयाब रही कि यह सब एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है। इसके उलट भाजपा के कुछ नेता इन घटनाओं का आनंद उठा रहे थे। इन सबका नाकारात्मक असर देश भर के आम वोटरों पर पड़ रहा था। जो शायद कर्नाटक चुनाव को भी प्रभावित कर गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )