पटना,जितेन्द्र कुमार सिन्हा। पासी-मल्लाह जाति गठजोड़ बन सकता है नया राजनीतिक विकल्प । बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं का हिस्सा 26 फीसदी के करीब है। इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती हैं। पिछले चुनावों में ये अलग-अलग दलों को वोट करते रहे हैं, लेकिन 2005 के बाद से इनका बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के साथ रहा है। राजद इसे तोड़ने की कोशिश हमेशा करता रहता है। 2014 और 2019 के चुनावों में इस समूह का झुकाव मुकेश साहनी की पार्टी की ओर रहा है, जिसके कारण, मुकेश सहनी बीजेपी गठबंधन, और राजद गठबंधन के निशाने भी पर रहे हैं।
राज्य में दलितों का वोट प्रतिशत लगभग 16 फीसदी है, इनमें पांच फीसदी के करीब पासवान और बाकी महादलित जातियां आती हैं, जिनका करीब 11 प्रतिशत वोट बैंक है। पासवान को छोड़कर अधिकांश महादलित जातियों का झुकाव भी 2010 के बाद से जेडीयू की तरफ ही रहा है।
इसे भी पढ़ें- महाशिवरात्रि 2023 : जानें कब है मुहूर्त और क्या है पूजा विधि
वर्तमान में इन जातियों का जदयू और राजद गठबंधन से मोह भंग हो चुका है, ऐसी ही स्थिति को देख कर (पासी – मल्लाह) का संघ गठजोड़ कर मुकेश निषाद एवं किशन चौधरी के नेतृत्व में इन जातियों को एक नया राजनीतिक विकल्प दिया है।
इसे भी पढ़ें- मैथिली ठाकुर ने खादी प्रतियोगिता के विजेताओं को किया पुरस्कृत
इन जातियों का अपार समर्थन मिल रहा है, दिन प्रतिदिन इन जातीय संघ की यात्रा में जनसमर्थन दिख रहा है। यही कारण है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बिहार का दोनों गठबंधन इस नए समीकरण की ओर आकर्षित हो रहा है। ऐसा लगता है कि इस नये पासी-मल्लाह जाति गठजोड़ को नजरअंदाज कर सरकार बनाना किसी के लिए भी मुश्किल होगा।