कहलगांव, संयुक्ता विद्रोही। सदानंद सिंह को लगातार जीत के बावजूद सीटींग एमएलए रहते हुए 1985 में उनके अलावा 21 विधायकों को कांग्रेस से निकाल दिया गया. परंतु चुनाव में निष्कासित सभी 22 विधायक जीत गये। कुछ दिन बाद ही इन 22 विधायकों ने मिलकर बिहार कांग्रेस की स्थापना की। जिसमें सदानंद सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। इस बीच कांगेस के आलाकमान को अपनी गलती का अहसास हुआ और निष्कासित दो विधायकों सदानंद सिंह और महेन्द्र झा को केन्द्रीय कृषि मंत्री भजनलाल ने दिल्ली बुलाकर पुन: कांग्रेस में वापसी करायी। इसके बाद दो बार 1990 और 1995 में हार के बाद तत्कालिक प्रभाशाली दल जनता दल के लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी में आने का ऑफर दिया। परंतु उन्होंने इसे ठुकरा दिया और कांगेस का साथ नहीं छोड़ा। नीतिश कुमार भी उनके पुत्र शुभानंद को जदयू से चुनाव लड़ाने के लिए पेशकश कर चुके थे। परंतु सदानंद सिंह ने इससे इन्कार कर दिया ओर बेटे को कांग्रेस से ही चुनाव लड़ाया।
चूड़ा भूजा और कचरी था सदानंद का फेवरिट डिश।चूड़ा भूजा और कचरी था सदानंद का फेवरिट डिश हुआ करता था। लगभग प्रतिदिन वे इसे खाते थे। कहीं किसी कार्यकर्ता के घर जाते तो प्रेम से यही तैयार करने को कहते। वे अपने घर आये अतिथियों को काजू बरफी खिलाना नहीं भूलते। Read also- https://xposenow.com/politics/smriti-shesh-sadanand-singh-was-once-considered-synonymous-with-congress-in-kahalgaon-14094-2021-09-09/
विक्रमशिला के विकास, यहां पर्यटकीय सुविधा विकसित करने तथा नालंदा की तर्ज पर विक्रमशिला को पुनर्जीवित करने के लिए सदानंद सिंह समय–समय पर सदन में आवाज उठाते रहे। विक्रमशिला महोत्सव के उद्घाटन सत्र में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि नालंदा के रहने वाले सीएम नीतिश कुमार नालंदा प्राचीन बौद्ध महाविहार का पुनर्रुद्धार तो कर लिये अब विक्रमशिला के विकास के लिए भी कार्य होना चाहिए, क्योंकि विक्रमशिला भी बिहार का ही अभिन्न अंग है।
अपराधी भी खौफ खाते थे सदानंद सिंह से सदानंद सिंह कहलगांव में शांति –व्यवस्था स्थापित करने के लिए भी जाने जाते थे। अपराधियों के सामने उनका अच्छा खासा खौफ था। राजनीति के प्रारंभिक दौर में सदानंद की हूकूमत नहीं थी। जैसे–जैसे कहलगांव विधान सभा क्षेत्र का जातीय चुनावी समीकरण बिगड़ा, तो नये–नये विरोधी पनपने लगे। लेकिन सदानंद सिंह के कद के सामने इनकी एक न चली।हां, इनके सफेद कुर्ते में भी कलंक के कुछ छींटे जरूर पड़े। कुख्यात सुदामा मंडल, सुमन सिंह, नंदकिशोर सिंह सरीखे कुख्यात के साथ संबंधों को लेकर कुछ छींटे भी पड़े। बाबजूद इसके इन्होंने अपने क्षेत्र में इन कुख्यातों का डंका कभी बजने नहीं दिया। सभी अपराधियों को अपने क्षेत्र से तड़ीपार करके रखा।
इसे भी देखें –https://www.youtube.com/watch?v=0x1ZB8_6vy0
क्षेत्र के लोग भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सदानंद राज में क्षेत्र में अपराध और अपराधियों को पनपने नहीं दिया गया। इनके निधन पर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित तमाम पदाधिकारियों एवं प्रदेश प्रभारी तथा अध्यक्ष ने भी भाव भीनी श्रद्धांजलि दी। पार्टी के रिसर्च विभाग के चेयरमैन आनन्द माधव ने भी इन्हें पार्टी का अभिभावक बताया।