पटना,जितेन्द्र कुमार सिन्हा। (Self-reliant India Employment Scheme) कोरोना संक्रमण काल में पूरा देश संकट का सामना कर रहा है, वही कुछ राज्यों में कोरोना ने महामारी का रूप ले लिया है। बिहार में भी सभी क्षेत्रों में लोग कोरोना से ऐसे प्रभावित हुए हैं कि उनकी अपनी आर्थिक जड़े ऐसी कमजोर हो गई कि वे अपने को समाज से अलग थलग महसूस कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा दंश श्रमिक वर्ग झेलना पड़ रहा है।
कोरोना की पहली लहर में श्रमिक वर्ग अपने अनिश्चित भविष्य से परेशान होकर दूसरे राज्यों से श्रमिक अपने गृह राज्य आने पर विवश हो गये थे और यह दृश्य आम लोगों को विचलित कर दिया था। उस समय सड़कों पर अपने परिवार के साथ यातायात साधनों के अभाव में श्रमिक, पैदल ही अपनी मंजिल की ओर अपने बच्चों को अपने कंधों पर उठाये बढ़ते चले जा रहे थे। पहली बार इन दृश्यों को देखा तो देश के विभाजन के समय के दृश्य की तरह, आंखों के सामने दिखाई देने लगा था। कुछ राज्यों में सरकार द्वारा देर से उठाये गए कदमों के कारण ऐसा लग रहा था कि देश खतरे में पड़ गया है। कुछ राज्यों में तो तत्कालीन लाभ देने की सोच ने नये नये तरह की समस्याओं को भी जन्म दिया था, जिसका दुष्परिणाम दूसरी लहर के रूप में देखा गया।
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एक तरफ जहाँ सरकार कोरोना से मुकाबला कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ इन मजदुरों के सुरक्षित घर वापसी और रोजगार की चिंता कर रही थी। जहां-जहां से मजदूरों का पलायन हो रहा था, वहां के उद्योग धंधे की स्थिति भी सामान्य होने पर किस तरह से पुनः शुरु हो सके, यह भी सरकार की चिंता का विषय बना हुआ था।
ऐसी स्थिति में देश का श्रम एवं रोजगार मंत्रालय नई-नई चुनौतियों का मुकाबला कर रहा था। वहीं श्रमिकों में रोजगार जाने की समस्या, पात्र श्रमिकों के स्वास्थ्य की चिंता, आवश्यकता पड़ने पर EPFO के माध्यम से जरुरतमंद लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने की चिंता, रोजगार खो चुके लोगों के लिए रोजगार के नए अवसरों के सृजन की योजना की चिंता की जा रही थी। साथ ही देश का श्रम मंत्रालय और राज्यों के श्रम संसाधन विभाग लगातार इस पर कार्य भी कर रहा था।
सरकार ने एक बड़ी महत्वपूर्ण योजना के तहत असंगठित मजदूरों का डाटाबेस बनाने की दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया है, जबकि आजादी के 70 वर्षों तक असंगठित मजदूर महज आंकड़ों तक ही सीमित थे। आंकड़ों को हकीकत में बदलने का काम अब शुरु हो चुका है। आमतौर पर यह माना जाता है कि देश में असंगठित मजदूरों की संख्या लगभग 40 करोड़ है। इन मजदूरों के भविष्य को ध्यान में रखकर सरकार इनका डाटा बेस बना रही है, ताकि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से इनलोगों को लाभान्वित किया जा सके। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों के लिए अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना एवं कोविड-19 रिलीफ स्कीम काम कर रही है।
सरकार की “आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना” (Self-reliant India Employment Scheme) की शुरुआत 01 अक्तूबर 2020 से हुई है, जिसकी समाप्ति की तिथि 30 जून 2021 थी, लेकिन सरकार ने अब इस योजना की अवधि बढ़ा कर 31 मार्च 2022 कर दिया है। योजना का मुख्य उद्देश्य कोविड महामारी में औपचारिक क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा के लाभों के साथ रोजगार के सृजन के लिए नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करना और रोजगार की हानि का प्रतिस्थापन करना, कोरोना महामारी के प्रभाव को कम करना, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और कामगारों की तकलीफ को दूर करना है।
सूत्रों के अनुसार, इस योजना के तहत 71.80 लाख रोजगार सृजित किए जायेंगे और इस योजना के तहत 22 लाख से अधिक लाभार्थियों को 82,251 प्रतिष्ठानों के माध्यम से 950 करोड़ रुपये की राशि का लाभ दिया जा चुका है।
सरकार योजना के तहत EPFO में पंजीकृत प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की संख्या के आधार पर कर्मचारी का अंशदान (12%) और नियोक्ता का अंशदान (12%) दो वर्षों के लिए सरकार कर रही है। इसका लाभ पात्र कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं को पंजीकरण की तारीख से दो वर्षों तक मिलेगा।सरकार आम मजदूरों तक सरकार की नीतियों एवं कार्यों को पहुंचाने के उद्देश्य से और आवश्यकता पड़ने पर लोग इसका लाभ उठा सकें, के तहत काम कर रही है।