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रस,छंद और अलंकार से कविता सुहागिन लगती है : डॉ. गोपाल प्रसाद

साहित्य सम्मेलन में डॉ. गोपाल प्रसाद ‘निर्दोष’ के काव्य-संग्रह ‘पारस-परस’ का हुआ लोकार्पण,आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन पटना / सवांददाता। रस, छंद और अलंकार कविता का श्रृंगार है। इसके अभाव में कविता सुहागिन नहीं लगती। आवश्यक नही है कि यथार्थ लिखने के लिए, यथार्थ जैसी विद्रूप भाषा का प्रयोग हो। कड़वे से कड़वे यथार्थ को मोहक शब्दावली […]