अनमोल कुमार। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक रत्न है शंख (Conch)। माता लक्ष्मी की तरह समान शंख (Conch) भी सागर से उत्पन्न हुआ है। इसलिए इसे मातालक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही शुभ माना गया है।इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं।जन सामान्य में ऐसी धारणा है कि जिस घर में शंख होता है,उस घर में सुख-समृद्धि आती है।वास्तु विज्ञान भी इस तथ्य को मानता है कि शंख में ऐसी खूबियां है जो वास्तु संबंधित कई समस्याओं को दूर करके घर में सकारात्मक उर्जा को आकर्षित करता है। इससे घर में खुशहाली तो आती ही है, घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होता है।
शंख के प्रकार-शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -दक्षिणावर्ती, मध्यावर्ती और वामावर्ती। इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है,मध्यावर्ती बीच से और वामावर्तीबाईं तरफ से खुलता है।मध्यावर्ती शंख बहुत ही कम मिलते हैं।शास्त्रों में इसे अति चमत्कारिक बताया गया है।इन तीन प्रकार के शंखों के अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं। जैसे लक्ष्मी शंख,गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख,राक्षस शंख, विष्णुशंख,चक्र शंख,पौंड्र शंख,सुघोष शंख,शनि शंख,राहु एवं केतु शंख।
शंख से वास्तु दोष मुक्ति का तरीका
शंख किसी भी दिन घर में लाकर पूजा स्थल में रखा जा सकता है।लेकिन शुभ मुहूर्त विशेष तौर पर होली, रामनवमी, जन्माष्टमी, दुर्गापूजा, दीपावली के दिन अथवा रवि पुष्य योग या गुरू पुष्य योग में इसे पूजा स्थल में रखकर इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।
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शंख का वैज्ञानिक महत्व भारतीय संस्कृति में शंख को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।माना जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख भी था।अथर्ववेद के अनुसार,शंख से राक्षसों का नाश होता है-”शंखेन हत्वारक्षांसि।”भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है।शंख में ओम ध्वनि प्रतिध्वनितहोती है, इसलिए ओम से ही वेद बने और वेद से ज्ञान का प्रसार हुआ।पुराणों और शास्त्रों में शंख ध्वनि को कल्याणकारी कहा गया है।इसकी ध्वनि विजय का मार्ग प्रशस्त करती है।शंख का महत्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं,वैज्ञानिक रूप से भी है।वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधक होती हैं।इसलिए सुबह और शाम शंख ध्वनि करने का विधान सार्थक है।जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र बसु के अनुसार, इसकी ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक व्याप्त बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है।इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है।पूजा,यज्ञ एवं अन्य विशिष्ट अवसरों पर शंखनाद हमारी परंपरा में था।क्योंकि शंख से निकलने वाली ध्वनितरंगों में हानिकारक वायरस को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है।1928 में बर्लिन विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने शंख ध्वनि पर अनुसंधान कर इस बात को प्रमाणित किया था।दरअसल,शंखनाद करने के पीछे मूलभावना यही थी कि इससे शरीर निरोगी होजाता है।घर में शंख रखना और उसे बजाना वास्तु दोष को भी खत्म कर देता है।यह भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है।मंदिरों में नियमित रूप से और बहुत से घरों में पूजा-पाठ,धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, कथाएं, जन्मोत्सव के अवसरों पर शंख बजाना शुभ माना जाता है।ज्योतिषाचार्यो के अनुसार शंख बजाने से आसुरी शक्तियां घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाती हैं।इतना ही नहीं, शंख में रात भर जल रख कर सुबह उसे पीने से वाणी दोष खत्म हो जाता है ।
समुद्र मंथन में मिले रत्नों में 6ठा समुद्र मंथन के समय मिले 14 रत्नों में छठवां रत्न शंख था
शंखनाद से निकली ध्वनि में अ-उ-म् (ओम्) अथवा ‘ओम्’ शब्द उद्धोषित होता है। जहां तक ‘ओम्’ का नाद पहुंचता है वहां तक नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती देवतुल्य है शंख ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देव स्वरूप है।इसके मध्य में वरुण,पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा व सरस्वतीका निवास है।शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं।पांचजन्य व विष्णु शंख को दुकान, कार्यालय,फैक्टरी में स्थापित करने से व्यवसाय में लाभ होता है।
शंख की उत्पत्ति —
–हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार शंख की उत्पत्ति सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु अग्रि से,आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्वों से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी गई है। वैसे शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है, जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है।
पाप नाशक शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है।यह निधि का प्रतीक है। इसे घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है।स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है।
माना जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है।शंख में जल भरकर ओम् नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।शंख नाद का प्रतीक है।नाद जगत में आदि से अंत तक व्याप्त है।सृष्टि का आरंभ भी नाद से होता है और विलय भी उसी में होता है।
स्वास्थ्य लाभ शंख बजाना स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक है।इससे पूरक,कुम्भक और रेचक जैसी प्राणायाम क्रियाएं एक साथ हो जाती हैं।सांस लेने से पूरक, सांस रोकने से कुम्भक और सांस छोड़ने की क्रिया से रेचक सम्पन्न हो जाती हैं।हृदय रोग, रक्तदाब,सांस सम्बन्धी रोग,मन्दाग्नि आदि में मात्र शंख बजाने से पर्याप्त लाभ मिलता है।
यदि कोई बोलने में असमर्थ है या उसे हकलेपन का दोष है तो शंख बजाने से ये दोष दूर होते हैं।इससे फेफड़ों के रोग भी दूर होते हैं। जैसे दमा, कास प्लीहा यकृत और इन्फ्लूएन्जा रोगोंमें शंख ध्वनि फायदेमंद है। अगर आपको खांसी, दमा, पीलिया, ब्लडप्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे छुटकारा पाने का एक सरल-सा उपाय है।
शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है।।प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।शंख बजाने से चेहरे,श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होताहै।शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
ये कई प्रकार के होते हैं और सबकी विशेषता एवं पूजन पद्धति भिन्न-भिन्न है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीपसमूह, श्रीलंका और भारत में पाए जाते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं।
विजय घोष का प्रतीक —
शंख को विजय घोष का प्रतीक माना जाता है।कार्य के आरम्भ करने के समय शंख बजाना शुभता का प्रतीक है। इसकी नाद को सुनने वाले को सहज ही ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव हो जाता है।शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियां, पीलिया,कास प्लीहा यकृत,पथरी आदि रोग ठीकहो जाते हैं।ऋषि श्रृंग के अनुसार बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बांधने व शंख जल पिलाने से वाणी-दोष दूर हाते हैं।पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक व श्वास रोगी हमेशा शंख बजाए तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं।आयुर्वेदाचार्य डा.विनोद वर्मा के अनुसार हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल पीएं तो वे ठीक हो जाएंगे।शंख जल स्वास्थ्य, हड्डियों, दांतों के लिए लाभदायक है।इसमें गंधक, फास्फोरस व कैल्शियम होते हैं।संगीत सम्राट तानसेन ने भी अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्तकी थी।
क्या रहस्य है शंख बजाने का मंदिर में आरती के समय शंख बजते सभी ने सुना होगा परंतु शंख क्यों बजाते हैं ?इसके पीछे क्या कारण है यह बहुत कम ही लोग जानते हैं।शंख बजाने के पीछे धार्मिक कारण तो है ही साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैऔर शंख बजाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।