स्वस्तिक चिन्ह शुभ कार्यों के लिए मंगल प्रतीक माना जाता है। स्वस्तिक चिह्न में-चित, समर्पण, सालोक्य, मन, श्रद्धा, अर्थ, सामीप्य, काम, बुद्धि, विश्वास, धर्म, सायुज्य, प्रेम, मोक्ष, अहंकार और सारूप्य का समावेश होता है। स्वास्तिक शब्द ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना गया है। ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ का तात्पर्य है होना, अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’। स्वस्तिक चिह्न शुभ अवसरों पर यथा विवाह, मुंडन, संतान के जन्म, दीपावली और अन्य पूजा पाठ पर बनाने का प्रावधान है।
धर्मावलंबियों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक पूजन अति आवश्यक माना जाता है। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं,जिनका आकार एक समान होता है। जो चार दिशाओं यथा पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण को दर्शाती है। ऋषि मुनियों के अनुसार चार वेदों यथा- ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का यह प्रतीक है।
किदवंतियाँ यह भी है कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं। कुछ लोगों ने इसे चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से रूपों में माना है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। जिन्होंने स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के रूपों में माना है, उनके अनुसार मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिह्न माना जाता है। वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं। हिन्दू धर्म के अलावा स्वास्तिक का और भी कई धर्मों में महत्व है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे पवित्र माना जाता है। यही नहीं, यह भी कहा जाता है कि स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।
सनातन धर्म में स्वास्तिक के प्रयोग को सबसे उच्च माना गया है। जैन धर्म में भी स्वस्तिक को बहुत महत्व दिया जाता है। जैन धर्म के लोगों का मानना है कि यह सातवं जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।
स्वास्तिक चिह्न को लाल रंग से बनाया जाता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना गया है। लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक ग्रह मंगल ग्रह है, जिसका भी रंग लाल है। यह ग्रह साहस, पराक्रम, बल एवं शक्ति के लिए जाना जाता है। इसलिए स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह दी जाती है।
वैज्ञानिकों ने तूफान, बरसात, जमीन के अंदर पानी, तेल के कुएँ आदि की जानकारी के लिए कई यंत्रों का निर्माण किया है। इन यंत्रों से प्राप्त जानकारियाँ पूर्णतः सत्य एवं पूर्णतः असत्य नहीं होती है। जर्मन और फ्रांस ने यंत्रों का आविष्कार किया है, जो हमें ऊर्जाओं की जानकारी देता है। उस यंत्र का नाम बोविस है। इस यंत्र से स्वस्तिक की ऊर्जाओं का अध्ययन किया जा रहा है। हिन्दू धर्म सहित स्वस्तिक का महत्व अन्य धर्मों में भी बताया गया है। इसे विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। चार हजार साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यताओं में भी स्वस्तिक के निशान मिलते हैं। मध्य एशिया देशों में स्वस्तिक का निशान मांगलिक एवं सौभाग्य सूचक माना जाता है।
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शरीर की बाहरी शुद्धि करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए (जिस दिन स्वस्तिक बनाएँ) पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वस्तिक 90 डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाया जाता है। कहा जाता है कि स्वस्तिक केसर, कुमकुम, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत रूप से बनाने पर घर के वातावरण में कुछ समय के लिए अच्छा परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। भवन या फ्लैट के मुख्य द्वार पर एवं हर रूम के द्वार पर अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है। जितेन्द्र कुमार सिन्हा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)