वर्ष 2021 अब पूरी तरह अवसान पर है। अंतिम दिन बितने को है और नया वर्ष 2022 आने में अब कुछ ही घंटे शेष हैं। विश्वभर में नववर्ष मनाने की तैया...
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क्यों और कैसे मनाया जाने लगा पहली जनवरी को नववर्ष, 1752 से भारत में ग्रेगोरियन कैलेंडर

वर्ष 2021 अब पूरी तरह अवसान पर है। अंतिम दिन बितने को है और नया वर्ष 2022 आने में अब कुछ ही घंटे शेष हैं। विश्वभर में नववर्ष मनाने की तैयारी चल रही है। खास बात है कि अलग-अलग देशों में अलग अलग तरीकों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है। कारण भी है कि सभी धर्मों में और सभी देशों में नववर्ष एक उत्सव के रूप में अपनी-अपनी परंपराओं के साथ मनाया जाता है।

  भारत एक ऐसा देश है, जहां अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय में अलग अलग तरिकों से अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ नए साल का उत्सव मनाया जाता है।

भारत के लगभग हर राज्य का अपना एक नया साल होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। इसलिए चैत्र महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता है। इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत भी होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल महीने में आती है।

 भारत के अन्य राज्यों में उगाडी-तेलगू न्यू ईयर, गुड़ी पड़वा, बैसाखी-पंजाबी न्यू ईयर, पुथंडु-तमिल न्यू ईयर, बोहाग बिहू-असामी न्यू ईयर, बंगाली नववर्ष, गुजराती नववर्ष, विषु- मलयालम नववर्ष, नवरेह-कश्मीरी नववर्ष,  हिजरी-इस्लामिक नववर्ष मनाया जाता है।

 गुड़ी पड़वा (मराठी-पाड़वा) के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। कहते हैं शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराभाव किया। इस प्रकार विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग´ और ‘आदि´ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि´।  आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि´ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।

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हिन्दू नव वर्ष चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरू होता है| इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है। चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटता वसंत का महीना।

 माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। इसलिए इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। चैत्र नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है।

 दुनिया के अधिकतर देश पहली जनवरी को नववर्ष मनाते हैं। पहली जनवरी को नववर्ष मनाने के पीछे हजारों साल पुरानी कहानी है। पांच सौ साल पहले अधिकतर ईसाई बाहुल्य देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता था। पहली बार 45 ईसा पूर्व रोमन राजा जूलियस सीजर ने पहली जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत की थी। 

 जूलियस सीजर ने खगोलविदों के सहयोग से पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने की गणना की तो पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं। इसलिए सीजर ने रोमन कैलेंडर को 365 दिन का बनाया था। सीजर ने हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिन का किया जिससे हर चार साल में बढ़ने वाला एक दिन भी शामिल (एडजस्ट) हो सके, इसलिए 46 ईसा पूर्व रोम के शासक जूलियस सीजर गणनाओं के आधार पर कैलेंडर जारी किया जिसमें 12 महीने थे। इस  कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर रखा गया था।

  पांचवी शताब्दी आते आते रोमन साम्राज्य का पतन हो गया और ईसाई धर्म का प्रसार बढ़ता गया। 1580 के दशक में ग्रेगरी 13वें ने एक ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस के साथ एक नए कैलेंडर पर काम शुरू किया था। लीप ईयर में एक दिन (पूरा एक दिन) नहीं होता है। उसमें 24 घंटे से लगभग 46 मिनट कम होते हैं। ऐसी स्थिति में 400वें वर्ष में लीप ईयर आता है और गणना ठीक बनी रहती है। 4 या 400 से भाग दिया जा सकता है। वहीं शताब्दी वर्ष में 4 और 400 दोनों का भाग जाना आवश्यक है। इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर है। इस कैलेंडर में नए साल की शुरुआत पहली जनवरी से होती है। इसलिए नया साल पहली जनवरी से मनाया जाने लगा है।

 ग्रेगोरियन कैलेंडर को इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 में अपना लिया था, जबकि जर्मनी के कैथोलिक राज्यों यथा स्विट्जरलैंड और हॉलैंड ने 1583 में, पोलैंड ने 1586 में, हंगरी ने 1587 में,  जर्मनी एवं नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश और डेनमार्क ने 1700 में,  ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752 में, चीन ने 1912 में, रूस ने 1917 में  और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया था।

वर्ष 1752 में भारत पर ब्रिटेन का राज था, इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में ही अपनाया था। ग्रेगोरियन कैलेंडर को अंग्रेजी कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है।

जितेन्द्र कुमार सिन्हा

जितेन्द्र कुमार सिन्हा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Xpose Now Desk
मुकेश महान-Msc botany, Diploma in Dramatics with Gold Medal,1987 से पत्रकारिता। DD-2 , हमार टीवी,साधना न्यूज बिहार-झारखंड के लिए प्रोग्राम डाइरेक्टर,ETV बिहार के कार्यक्रम सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार के लिए स्क्रिपट हेड,देशलाइव चैनल के लिए प्रोगामिंग हेड, सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों में विभिन्न पदों पर कार्य का अनुभव। कई डॉक्यूमेंट्री के निर्माण, निर्देशन और लेखन का अनुभव। विविध विषयों पर सैकड़ों लेख /आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। कला और पत्रकारिता के क्षेत्र में कई सम्मान से सम्मानित। संपर्क-9097342912.