संवाददाता,पटना। कोरोना काल में बंद हुई मध्याह्न भोजन योजना MDM का नाम बदल कर पीएम पोषण योजना करने के साथ-साथ इसके संचालन को लेकर जो नई प्रक्रिया बनाई गई है वह प्रधानाध्यापकों (HM) की गर्दन पर लटकी तलवार के समान है। इसलिए नई प्रक्रिया को लेकर विरोध शुरू हो गया है।
राज्य के अधिकांश प्रधानाध्यापकों का मानना है कि इससे न सिर्फ MDM संचालन मुश्किल होगा बल्कि HM का अधिकांश समय इसी भागदौड़ में गुजरेगा, जिससे स्कूल का पठन-पाठन बुरी तरह प्रभावित होगा। पूर्व में लिए गए निर्णय इससे बेहतर थे, जब ब्लॉक स्तर पर किसी एजेंसी के माध्यम से केन्द्रीकृत किचेन में भोजन बनाकर सभी स्कूलों में समय पर पहुंचाया जाना था।
जानकारों के अनुसार इस नई योजना के संचालन में तीन पदों को सृजन किया गया है। चेकर-,मेकर, एडमिन और वेंडर। सारी प्रक्रिया ऑनलाइन की जानी है, जिसके लिए एक लैपटॉप की आवश्यकता है या फिर प्रधानाध्यापकों को कैफे में जाकर सारे कार्यों को करवाना होगा। इन कार्यों के करवाने लिए शिक्षकों को अलग से कोई राशि नहीं दी जानी है। प्रखंड के एमडीएम बीआरपी को चेकर बनाया गया है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एजेंसी एडमिन/मेकर बनाया गया है। जिन्हें PFMS पोर्टल पर बिना सहमति के एजेंसी का नाम दे दिया गया है। मेकर (प्रधानाध्यापक) द्वारा किसी दुकानदार को वेंडर बनाया जाना है। इसके लिए दुकानदार से उसका आधार कार्ड और बैंक पासबुक की छाया प्रति लेनी है। यह सभी जानते हैं कि बैंक भी अपने कस्टमर का बैंक डिटेल नहीं लेता है। फिर भी HM को उसका बैंक डिटेल लेना है। आशंका यह व्यक्त की जा रही है कि यदि भविष्य में कभी उसके (वेंडर) के साथ ऑनलाइन धोखा घड़ी होती है,तो इसकी सारी जवाबदेही प्रधानाध्यापकों पर ही होगी, जिनके द्वारा उसका बैंक डिटेल लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि 28 फरवरी से राज्य के सभी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत करने का आदेश दिया गया है। परंतु विद्यालय में मध्यान्ह भोजन बनवाने के लिए पूरे एक माह के लिए जलावन, तेल, मसाला, दाल, सब्जी, अंडा, फल इत्यादि आवश्यक सामग्री शिक्षकों को अपना पैसा लगा कर खरीदना होगा। विभाग पहले राशि जारी नहीं करेगा, चाहे जितना भी पैसा लगे HM को लगाना होगा। पूरे माह भोजन बनवाने के बाद वाउचर लेकर सचिव और प्रधानाध्यापक का हस्ताक्षर और मोहर लगाकर ऑनलाइन एंट्री करवाना होगा। इसके बाद एमडीएम बीआरपी द्वारा उसे स्वीकृत किया जाएगा। उसके बाद ही राशि वेंडर के खाते में जाएगा। इस कार्य में कितना समय लगेगा यह निश्चित नहीं है।
परेशान HM सवाल उठा रहे हैं कि शिक्षक अपना पैसा लगाकर विद्यालय में भोजन क्यों बनवाए। यदि शिक्षक अपना पैसा लगाकर विद्यालय में भोजन बनवाते हैं तो उन्हें वह पैसे जो उन्होंने खर्च किए हैं, वापस किस प्रकार होंगे। क्योंकि मध्यान्ह भोजन योजना के खाते से राशि की निकासी नहीं की जानी है। निदेशक मध्यान्ह भोजन योजना द्वारा 2012 में जारी पत्र में यह निर्देश जारी किया गया है कि 5000 रू से ऊपर की खरीदारी करते हैं, तो उसके लिए TIN VAT वाला वाउचर चाहिए।
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सूत्रों के अनुसार मध्यान्ह भोजन योजना द्वारा निर्धारित परिवर्तन मूल्य (मसाला,सब्जी,गैस आदि) की राशि वर्ग 1 से 5 के लिए 4.97 रू और वर्ग 6 से 8 के छात्रों के लिए 7.45 रू निर्धारित है।17 फरवरी 2020 से कोरोना के कारण मध्यान्ह भोजन योजना विद्यालयों में बंद है। उस समय इन्हीं राशियों से भोजन बनाया जाता था। परंतु आज 2022 में महंगाई लगभग दोगुनी हो चुकी है। उदाहरण स्वरूप तेल 100 से 200 रू हो गया है, दाल 60 से 110 रू हो चुका है, गैस सिलेंडर 1400 से 1800 रू लगभग हो चुका है। इसी प्रकार अंडा 6 रुपए से बढ़कर 9 रू हो गया है। इसी प्रकार अन्य चीजों के मूल्यों में दुगनी वृद्धि हुई है। परंतु विभाग की ओर से परिवर्तन मूल्य एवं अंडा-फल की राशि में कोई वृद्धि नहीं की गई है।
मूल्य वृद्धि को लेकर HM के हाथ-पांव फूल रहे हैं। परंतु विभाग को इससे कोई मतलब नहीं है। सभी स्तर के पदाधिकारियों का यही प्रयास है कि किसी भी प्रकार से विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन बनना प्रारंभ हो जाए। विभागीय पदाधिकारियों को इन समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है। विभागीय पत्रों के अनुसार शिक्षक मध्यान्ह भोजन MDM का सिर्फ निगरानी करते हैं जबकि परोक्ष रूप से HM ही सभी कार्यों को करने के लिए विवश हो रहे हैं। HM का कहना है कि यदि किसी भी प्रकार से शिक्षक फंसते हैं तो विभाग यह कह कर निकल जाएगा कि हम शिक्षकों से मध्याह्न भोजन योजना का संचालन ही नहीं करवाते हैं। विभिन्न प्रकार की आशंकाओं से ग्रस्त HM के बीच इसे लेकर आक्रोश है जो कभी भी फूटकर सामने आ सकता है।