नीतीश कुमार जेपी आंदोलन की उपज माने जाते हैं और फिलहाल उनका स्टैंड बता रहा है कि वो जयप्रकाश नारायण की राह पर चल निकलें हैं। जेपी की राह क ...
राजनीति

क्या जयप्रकाश नारायण की राह पर निकल पड़े हैं नीतीश कुमार !

पटना, मुकेश महान। बिहार के दिग्गज नेता और कभी विकास पुरुष के नाम से मशहूर नीतीश कुमार जेपी आंदोलन की उपज माने जाते हैं और फिलहाल उनका स्टैंड बता रहा है कि वो जयप्रकाश नारायण की राह पर चल निकलें हैं। जेपी की राह का मतलब व्यवस्था परिवर्त्तण के लिए सत्ता परिवर्त्तण जरूरी, लेकिन खुद को सत्ता से दूर ही रखना। ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार ने कभी खुद के लिए खुद की जुवान से पीएम पद की दावेदारी की घोष्णा नहीं की। इसके उलट फिलहाल वो बार बार दुहराते रहे हैं कि वो पीएम पद के दावेदार नहीं हैं। इसके साथ ही विपक्षी एकता के बहाने केंद्र की सत्ता परिवर्त्तण की कवायद में भी जुटे हैं।

जेपी ने भी तो ये ही किया था। तब के दमदार और मजबूत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ उन्होंने जनमत तैयार किया था, विपक्षों को एकजुट किया था। और संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, युवाओं और महिलाओं को व्यवस्था परिवर्त्तण की जरूरत बता कर उनको अपने आंदोलन से जोड़ा था।

जेपी का आंदोलन सफल रहा था। इंदिरा गांधी को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। लेकिन जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की बारी आई तो जेपी ने अपना नाम पीछे खिंच लिया। प्रचंड जीत के बाद भी वो कुर्सी पर नहीं बैठे थे। न ही वो सत्ता व सरकार में शामिल हुए थे।

लेकिन आज की परिस्थिति अलग है। ऐसे में जयप्रकाश नारायण की राह पर चलना आसान नहीं है। आज सत्ता के खिलाफ कोई जनाक्रोश नहीं है, इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ रष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का बड़ा ही मजबूत कवच है, जिसको भेद पाना इतना भी आसान नहीं है। विदेशों में भारत और प्रधानमंत्री की छवि का तीसरा कवच और ऐसे कई कवचों में भाजपा और प्रधानमंत्री की जीत सुरक्षित सी दिखती है। इसल

विपक्षी एकता की कवायद
विपक्षी एकता की कवायद

दूसरी तरफ विपक्षी एकता के पास इन कवचों को भेदने का कोई अमोघ अस्त्र फिलहाल तो नहीं दिखता। इडी और सीबीआई जैसी सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग,महंगाई और बेरोजगारी जैसे ही हल्के फुल्के अस्त्रों के सहारे मोदी को परास्त नहीं किया जा सकता है। एंटी एनकंबेंसी के भरोसे जीत की गारंटी नहीं है। लेकिन इसके बाद भी विपक्ष को एकजुट करने का लगातार गंभीर प्रयास नीतीश कुमार के लिए भागीरथ प्रयास ही माना जाएगा अगर वो अपने मिशन में कामयाब हो जाते हैं तो।

दूसरी तरफ अगर नीतीश कुमार विपक्षों को एकजुट करने में असफल रहे और लोकसभा चुनाव में भाजपा को पराजित करने में असफल रहे, तो उनका राजनैतिक कद प्रभावित हो सकता है। उनकी अबतक उपलब्धियों और राजनीतिक परिपक्वता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। जाने अंजाने नीतीश कुमार राजनीति की जिस दिशा में अपना कदम बढ़ा चुके हैं उस दिशा में कई अग्नि परीक्षा से उन्हें गुजरना पड़ सकता है। ऐसा भी नहीं है कि नीतीश कुमार को इन सब का एहसास नहीं था। उनके राजनीति कौशल पर भी कोई बुद्धिमान आदमी संदेह नहीं कर सकता है। तो क्या उनके तरकश में कुछ अदृश्य अस्त्र भी हैं, जो लोगों को या राजनीति के जानकारों को अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं। जिसका उपयोग वो समय के साथ अपने पक्ष में करेंगे।

क्या होगा 2024 में, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है और कभी भी कुछ भी हो सकता है। जो भी हो अभी नीतीश कुमार को विपक्ष को एकजुट करने की मशक्कत झेलनी होगी। इनके एकजुट होने के बाद भी नेता चयन को लेकर भी संघर्ष करना पड़ सकता है। फिर सीट बंटवारे को लेकर कम माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ेगी। तो क्या इन सबसे निबटने के लिए कोई तुरुप का पत्ता है उनके पास। लोगोें के मन में यह सवाल भी बार बार उठता है। इसके साथ अगर नीतीश कुमार अगर अपनी अगुवाई में 2024 को जीतना चाहते हैं तो उन्हें कई चुनावी दिव्यास्त्रों की जरूरत पड़ेगी। कई चुनावी रथी, महारथी और अधिरथी की जरूरत भी पड़ेगी। विपक्षी एकता के बहाने वो महारथियों को तो एकत्रित कर रहे हैं, लेकिन इनमें से कौन कितना और कब तक इनका साथ देगा यह कहना अभी मुश्किल है।

दूसरी तरफ उनके अपने राज्य की कानून व्यवस्था और सुशासन को फिर से स्थापित करना होगा ताकि देश को और विपक्षी नेताओं को ये भरोसा हो सके कि देश संभालने और चलाने की आलौकिक क्षमता अब भी उनमें शेष है। उन्हें राष्ट्रीय परिपेक्ष के लिए खुद को तैयार करने साथ ही देशभर में स्थापित भी करना होगा। तुष्टीकरण की नीति से ऊपर उठ कर आम लोगों को संतुष्ट करना होगा। कुछ बयानवीरों को ढूंढना और मौका देना होगा। अपनी निष्क्रिय पीआर टीम सहित सोशल मीडिया टीम को या तो बदलना होगा या नये एक्सपर्ट लोगों को जोड़ कर सक्रिय करना होगा, जो विरोधियों को तार्किक जवाब दे सके, राष्ट्रीय स्तर पर उनकी उपलब्धियों का प्रचार कर सके और विरोधियों पर राजनीतिक रूप से हमलावर रहे। इसके अलावा आकर्षक और प्रलोभित-उद्वेलित करने वाले जुमले और नारे गढ़ने वालों की जरूरत भी उनको पड़ सकती है।

यह सच है कि लोकतंत्र में कोई व्यक्ति या पार्टी अपराजेय नहीं होता लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कमार के लिए 2024 जीत का डगर आसान नहीं है। फिर भी फिलहाल फीएम पद की लालसा नहीं होने के उनके बयान और इसके साथ विपक्षी एकता को लेकर विभिन्न प्रदेशों का दौरा देख कर तो कहा ही जा सकता है नीतीश कुमार कहीं जयप्रकाश नारायण की राह पर तो नहीं चल पड़े हैं।